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Sunday 14 September 2014

भाग्य में बाधा आती है. आपकी कुंडली में सप्तम भाव लग्न अनुसार : जीवन साथी का साथ ज्योतिषशास्त्र के अनुसार भाग्य बलवान होने से जीवन में मुश्किलें कम आती हैं....


भाग्य में बाधा आती है.
आपकी कुंडली में सप्तम भाव लग्न अनुसार : जीवन साथी का साथ 

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार भाग्य बलवान होने से जीवन में मुश्किलें कम आती हैं, व्यक्ति को अपने कर्मों का फल जल्दी प्राप्त होता है. भाग्य का साथ मिले तो व्यक्ति को जीवन का हर सुख प्राप्त होता. यही कारण है कि लागों में सबसे ज्यादा इसी बात को लेकर उत्सुकता रहती है कि उसका भाग्य कैसा होगा. कुण्डली के भाग्य भाव में सातवें घर का स्वामी बैठा होने पर व्यक्ति का भाग्य कितना साथ देता है यहां इसकी चर्चा की जा रही है. 

मेष लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in aries ascendant) 
मेष लग्न की कुण्डली में सातवें घर में तुला राशि होती है जिसका स्वामी शुक्र ग्रह होता है. शुक्र मेष लग्न में दूसरे घर का भी स्वामी होता है अत: दो मारक भावों का स्वामी होने के कारण पूर्ण मारकेश होता है. मेष लग्न में भग्य स्थान का स्वामी गुरू होता है जो शुक्र के शत्रु ग्रह की राशि होती है. 
शत्रु ग्रह की राशि में बैठा शुक्र भाग्य को कमज़ोर बनाता है. भाग्य भाव में शुक्र के साथ बुध भी हो तो यह भाग्य को बहुत ही कमज़ोर बना देता है. 
मेष लग्न वालों की कुण्डली में सप्तमेश भाग्य भाव में बैठा हो तो व्यक्ति को जीवनसाथी के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए. जीवनसाथी से सहयोग एवं सलाह लेकर कार्य करना भी फायदेमंद होता है. 

वृष लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in Taurus ascendant) 
वृष लग्न की कुण्डली में सप्तमेश मंगल होता है. वृष लग्न में भाग्य स्थान में बैठा मंगल अपनी उच्च राशि में होता है फिर भी यह व्यक्ति के भाग्य में बाधक होता है. विशेषतौर पर विवाह के पश्चात भाग्य में अधिक अवरोध आता है. लेकिन, मंगल कुण्डली में यदि 10'से 13'तक हो तो शुभ फल देता है. मंगल यदि नवम भाव में नीच गुरू के साथ हो तो यह भाग्य को अधिक कमज़ोर बनाता है. 

कर्क लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in Cancer ascendant) 
कर्क लग्न की कुण्डली में शनि सप्तम भाव के स्वामी होते हैं. कर्क लग्न में शनि अष्टमेश भी होते हैं अत: नवम भाव में सम राशि में होने पर भी भाग्योदय में सहायक नहीं होते हैं. हालांकि कुण्डली में 13'से 20' के बीच में होने पर शानि भाग्य को बलवान बना सकते हैं. अन्य स्थितियों में शनि से अधिक शुभ फल की उम्मीद करना फायदेमंद नहीं होगा. 

सिंह लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in Leo ascendant) 
सिंह लग्न की कुण्डली में सातवें घर में कुम्भ राशि होती है इसलिए सिंह लग्न में शनि को सप्तमेश माना जाता है. भाग्य स्थान में शनि होने पर व्यक्ति के भाग्य में रूकावट आती रहती है विशेषतौर पर विवाह के पश्चात शनि भाग्योदय में सहायता नहीं करते हैं. इसका कारण यह है कि सिंह लग्न स्थिर लग्न है और स्थिर लग्न में नवम भाव बाधक होता है. बाधक भाव में नीच शनि होने की वजह से भाग्य कमज़ोर हो जाता है. 

कन्या लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in Virgo ascendant) 
गुरू कन्या लग्न में सप्तमेश होते हैं. कन्या लग्न की कुण्डली में गुरू भाग्य भाव में स्थित हो तो शुभ फल देते हैं यानी भाग्य को बल मिलता है. हालांकि नवम भाव में गुरू अपने शत्रु राशि में होते हैं तथा कन्या लग्न में गुरू को केन्द्रधिपति दोष लगता है. कन्या लग्न की कुण्डली में गुरू बुध के साथ भाग्य भाव में होने पर भाग्य बहुत बलवान हो जाता है. इसके विपरीत मंगल के साथ गुरू होने पर भाग्य में बाधा आती है. 

तुला लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in Libra ascendant) 
तुला लग्न में सप्तमेश मंगल होता है. मंगल तुला लग्न में दूसरे घर का भी स्वामी होता है अत: दोनों मारक भावों का स्वामी होने के कारण भाग्योदय में मंगल बाधक होता है. तुला लग्न में नवम नवम भाव में मंगल शत्रु राशि में भी होता है अत: दोनों ही तरह से मंगल को भाग्य में अवरोध कहा जाता है. मंगल के साथ यदि अन्य कोई ग्रह हो तो शत्रुओं के कारण भाग्य में बाधा आती रहती है. ज्योतिषशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार तुला लग्न में भाग्य भाव में बैठा मंगल भाग्य में बाधक होते हुए भी कुछ स्थितियों में शुभ फल दे सकता है 

वृश्चिक लग्न में सप्तम भाव के स्वामी (The lord of the seventh house in scorpio ascendant) 
शुक्र वृश्चिक लग्न में सप्तमेश होते हैं. शुभ ग्रह होने के बावजूद भी भाग्य स्थान में बैठने पर शुक्र भाग्य को बलवान बनाने में अक्षम होते हैं क्योंकि, स्थिर लग्न में नवम भाव बाधाक भाव होता है. बाधक भाव में शुक्र होने के कारण शुक्र का शुभ प्रभाव कम हो जाता है. इस स्थिति में यदि शुक्र की बुध के साथ युति हो तो भाग्य में अधिक बाधाएं आएंगी. 

धनु लग्न में सप्तम भाव के स्वामी (The lord of the seventh house in sagittarius ascendant) 
धनु लग्न में बुध सातवें घर का स्वामी होता है. धनु लग्न में नवम भाव में सिंह राशि होती है जो बुध की मित्र राशि है. मित्र राशि में बुध केन्द्राधिपति दोष के बावजूद शुभ फल देगा. इससे विवाह के पश्चात व्यक्ति का भाग्य अधिक उन्नत होगा. बुध शुक्र युति होने पर भाग्य में अवरोध आ सकता है. 

मकर लग्न में सप्तम भाव के स्वामी (The lord of the seventh house in Capricorn ascendant) 
मकर लग्न में सप्तम भाव में कर्क राशि होती है. कर्क राशि का स्वामी चन्द्र होता है. मकर लग्न की कुण्डली में बुध नवम भाव में शत्रु राशि में होता है फिर भी यह शुभ फल देता है. इस लग्न में चन्द्र केन्द्राधिपति दोष से पीड़ित होने के बावजूद व्यक्ति के भाग्य को मजबूत बनाता है. मकर लग्न में सूर्य यदि भाग्य स्थान में होगा तो भाग्योदय में बाधा आ सकती है. 

कुम्भ लग्न में सप्तम भाव के स्वामी (The lord of the seventh house in Aquarius ascendant) 
कुम्भ लग्न की कुण्डली में सातवें घर में सिंह राशि होती है अत: कुम्भ में सूर्य को सप्तमेश कहा गया है. सप्तमेश सूर्य कुम्भ लग्न में नवम भाव में होने पर वह अपनी नीच राशि तुला में होता है. इसके अलावा स्थिर लग्न में नवम भाव बाधक स्थान होता है. इन दोनों कारणों से कुम्भ लग्न में सप्तमेश सू्र्य भाग्य भाव में बैठकर भाग्य को बलवान बनाने में अक्षम होता है. सूर्य के साथ चन्द्र यदि भाग्य भाव में बैठा हो तो यह अधिक बाधक होता है. 

मीन लग्न में सप्तम भाव के स्वामी (The lord of the seventh house in Pisces ascendant) 
मीन लग्न की कुण्डली में कन्या राशि सातवें घर में होती है. इस राशि का स्वामी बुध होता है. मीन लग्न में भाग्य स्थान में वृश्चिक राशि होती है. वृश्चिक में बुध नीच का होता है, इसलिए भाग्य भाव में बैठा बुध भाग्य को बलवान नहीं बना पाता है. दूसरी बात यह है कि मीन लग्न में बुध को केन्द्राधिपति दोष लगता है इसलिए भी बुध का भाग्य भाव में होना व्यक्ति के लिए कम शुभ फलदायी होता है. 

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