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Wednesday 30 July 2014

ऊँकारं बिंदुसंयुक्तं नित्यं ध्यायंति योगिन:। कामदं मोक्षदं चैव ओंकाराय नमो नम:।। नमंति ऋषयो देवा नमंत्यप्सरसां गणा:। नरा नमंति देवेशं नकाराय नमो नम:।।


ऊँकारं बिंदुसंयुक्तं नित्यं ध्यायंति योगिन:।
कामदं मोक्षदं चैव ओंकाराय नमो नम:।।
नमंति ऋषयो देवा नमंत्यप्सरसां गणा:।
नरा नमंति देवेशं नकाराय नमो नम:।।
महादेवं महात्मानं महाध्यानं परायणम्।
महापापहरं देवं मकाराय नमो नम:।।
शिवं शान्तं जगन्नाथं लोकनुग्रहकारकम्।
शिवमेकपदं नित्यं शिकाराय नमो नम:।।
वाहनं वृषभो यस्य वासुकि: कंठभूषणम्।
वामे शक्तिधरं देवं वकाराय नमो नम:।।
यत्र यत्र स्थितो देव: सर्वव्यापी महेश्वर:।
यो गुरु: सर्वदेवानां यकाराय नमो नम:।।
षडक्षरमिदं स्तोत्रं य: पठेच्छिवसंनिधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।

Sunday 27 July 2014

ऐसे ही व्यक्ति मुनि या योगी बन पाते है। तांत्रिक पंच मकार का अर्थ - वाम मार्ग के तंत्र में इसका विशेष स्थान है, इसके बिना किसी भी प्रकार की साधना पूरी हो ही नहीं सकती और ये पंचमकार मद्य, मांस , मीन , मुद्रा और मैथुन है, ये पांचों प्रक्रियाएं साधन विशेष रूप से विधि-विधान सहित संपन्न होने चाहिए तभी साधक को तांत्रिक साधना में सफलता प्राप्त होती है !....


ऐसे ही व्यक्ति मुनि या योगी बन पाते है।
तांत्रिक पंच मकार का अर्थ -
वाम मार्ग के तंत्र में इसका विशेष स्थान है, इसके बिना किसी भी प्रकार की साधना पूरी हो ही नहीं सकती और ये पंचमकार मद्य, मांस , मीन , मुद्रा और मैथुन है, ये पांचों प्रक्रियाएं साधन विशेष रूप से विधि-विधान सहित संपन्न होने चाहिए तभी साधक को तांत्रिक साधना में सफलता प्राप्त होती है !
कुलार्णव तंत्र के अनुसार
मद्य मांस च मीनं मुद्रा मैथुनमेव च।
मकार पंचकं प्रदुर्योगिनाम मुक्तिदाय्काम।।
अर्थात मद्य, मांस , मीन , मुद्रा और मैथुन
यह पांच मकार ही योगियों को पूर्ण सिद्धि एवं मुक्ति प्रदान करने वाले है। यदि सामान्य रूप से इसकी व्याख्या की जाये तो यह तो एक असम्भव सी स्थिति स्पष्ट होगी और इस प्रकार की क्रियाओं को उपयोग मे लेन वाला व्यक्ति असामान्य व्यक्ति ही माना जायेगा क्योंकि मध और मांस तामसिक प्रकृति के पदार्थ है, और इनके प्रयोग से तमोगुण की वृद्धि होती है। जब की तंत्र के ज्ञान से तो सिद्धि और मुक्ति प्राप्त होनी चाहिए। यही मूल बिंदु है जिसकी व्याख्या आवश्यक है। केवल शाब्दिक अर्थों पर जाकर तंत्र शास्त्र को गलत द्रष्टि से देखना या दुराचार का मार्ग मानना उचित नहीं है। थोड़े से फेर बदल के साथ अलग अलग ग्रंथो मे जो पंच मकार की व्याख़्या क़ी गयी है उसका सार प्रस्तुत है -
मद्य या मदिरा -
"योगिनी तंत्र " में स्पष्ट कहा गया है की मदिरा का तात्पर्य है शक्तिदायक रस अर्थात शिव और शक्ति के संयोग से जो महातत्व उत्पन्न होता है वही मदिरा है। कुलार्णव तंत्र के अनुसार गुड और अदरक का मेल ब्राह्मण के लिए मदिरा है , कांसे के पात्र में नारियल का पानी क्षत्रिय के लिय और कांसे के पात्र में शहद वैश्य के लिए सुरा अर्थात मदिरा कही गई है, जहाँ किसी तंत्र साधना में सुरा का प्रयोग हो , वहां इस प्रकार की सुरा विशिष्ट वर्ण वाले व्यक्ति को प्रयोग में लानी चाहिय !
जिसके पीने से अशुभ कर्मों का प्रवाह नष्ट हो जाता है तथा साधक परम तत्व, ज्ञान प्राप्य कर मुक्ति या मोक्ष प्राप्त करता है, ऐसे ही व्यक्ति मुनि या योगी बन पाते है।
मांस
मांस तांत्रिक साधनाओ में बलि स्वरुप प्रयोग मे लाया जाता है। मूल रूप साधना में पशु या मानव बलि का उल्लेख ही नहीं है। मांस का तात्पर्य है शरीर का तत्व और इसी का साधना के दौरान यज्ञ मे बलि स्वरुप अर्पित करना उचित है "योगनी तंत्र " में लिखा है 
माँ शब्दाद रसना ज्ञेया संद्शान रसनाप्रियां।
एतद यो भक्षयेद देवी स एव मांससाधक:।।
अत: यह स्पष्ट है की बलि देना और तांत्रिक साधनों में मांस का भक्षण करना आवश्यक नहीं है यह तो उन पाखंडी, ढोगी और ठग तांत्रिको ने अपने स्वाद की पूर्ति करने हेतु मांस का भक्षण करना आवश्यक बना दिया। यह तो तांत्रिकों द्वारा शास्त्रों मे प्राचीन ऋषियों द्वारा दिए गए मन्त्रों के अर्थों का अनर्थ कर मांस को ही आवश्यक मान लिया गया है , इसी कारण तो आज भी श्रेष्ठ कार्यो में , देवी पूजन में नारियल को होम किया जाता है और वही पूर्ण सिद्धिदायक है।
मीन-मत्स्य
मीन अर्थात मछली तांत्रिको क्रियाओं के मंत्रो मे विशेष रूप से आई है और इसका शाब्दिक अर्थ कर इसे केवल मछली मन लिया गया है। मूल रूप से इसका तात्पर्य है, की जब हम किसी प्रकार की तांत्रिक किया संपन्न करते हैं तो छ: प्रकार की मछलियों अर्थात अहंकार , दंभ, मद, पशुता , मत्सर, द्धेष, शरीर में विचरण करने वाले इन छ: प्रकार के दोषों को नष्ट कर , अपने आपको शुद्ध कर देवता की आराधना में समर्पित कर देना है। केवल मछली खाने से ही यदि तांत्रिक क्रियायां संपन्न हो जाये तो शायद आज आधे से अधिक संसार तांत्रिक होता। तंत्र शास्त्र में तो लाक्षणिक शब्द दिए होते है , इनकी व्याख्या कर मूल भाव समझने की आवश्यकता है। साधक का शरीर भी जल -स्वरुप ही है और इसमें भी श्वास और प्रश्वास दो मत्स्य है। जो साधक प्राणायाम के द्वारा उसको रोक कर कुम्बक करते है, वे ही मत्स्य साधक है। यदि साधक अपनी इंद्रियां को वश मे कर सकता है , तभी वह वशीकरण क्रियाओं में सिद्ध हो सकता है। कुलार्ण तंत्र के अनुसार जहाँ -जहाँ तांत्रिक क्रियाओं मे मत्स्य का विधान है, वहा वैगन , मूली अथवा पानी-फल (नारियल ) को अर्पित करना चाहिए और हवन मे भी इन पदार्थों को अर्पित करना चाहिए , न की जीवित मछली को।
मुद्रा
मुद्रा का केवल उपासनाओं और साधनाओ में ही नहीं , अपितु अन्य रूप से भी विशेष महत्त्व है , मुद्रा का तात्पर्य आंतरिक भावों को प्रकट करना है, साधना काल मे साधक जो साधना कर रहा है , उस समय अपने मन के भावों को अपने इष्ट से वार्ता हेतु किस रूप से प्रकट करता है क्योकि ह्रदय और मन के भावों को बाह्य अंगों द्वारा प्रकट किया जा सकता है और जब हाथो, उँगलियों और पैरों की सहायता से ये मुद्राए बनाई जाती है, तो ये मुद्राए आंतरिक भावो का रूप ले लेती है, साधनाओ मे प्रत्येक प्रकार के लिए अलग -अलग मुद्राएँ है।
मैथुन
मैथुन का तात्पर्य है मिलन या संभोग , इस संभोग प्रक्रिया का प्रत्येक तंत्र साधना मे विशेष स्थान है लेकिन क्या संभोग का तात्पर्य स्त्री और पुरुष का मिलन ही है ? क्या तांत्रिक प्रक्रियाओं में स्त्री का उपयोग अनिवार्य है ? उत्तर है - जी नहीं।
स्त्री का तात्पर्य कुण्डलिनी शक्ति है जो भीतर स्थित है और इसका स्थान मूलाधार है। सहस्त्रार में शिव का स्थान है इस शिव और शक्ति के मिलन को ही मैथुन कहा गया है।
साधना की प्रक्रिया द्वारा अपने शरीर तत्व को उस स्थिति तक पंहुचा देना की शक्ति -तत्व पूर्ण रूप से प्राप्त हो जाय वही वास्तविक मैथुन है !
मूल रूप से पुष्प लताएँ ही स्त्री स्वरूप है और जब इनका समर्पण साधना मे किया जाता है तो वह स्त्री तत्व का समर्पण ही है। शरीर का विलास प्रिय होना तंत्रोक्त मैन्थुन नहीं है बल्कि पराशक्ति -तत्व को प्राप्त कर अपने भीतर के शिव तत्व से विलास रस का संगम ही पूर्ण मैथुन है। इसलिए शुद्ध तंत्र सदनों में तथा पूर्ण सिद्धि प्राप्त करने हेतु विभिन्न प्रकार के पुष्पों का प्रयोग विशेष रूप से करना चाहिए।
साधना के दौरान मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखना चाहिए। मंत्र-साधक के बारे में यह बात किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि वो किस मंत्र का जप करता है या कर रहा है।
हमारे पुराणों में मंत्रों की असीम शक्ति का वर्णन किया गया है। यदि साधना काल में नियमों का पालन न किया जाए तो कभी-कभी इसके बड़े घातक परिणाम सामने आ जाते हैं। प्रयोग करते समय तो विशेष सावधानी‍ बरतनी चाहिए। मंत्र आपकी वाणी, आपकी काया, आपके विचार को प्रभावपूर्ण बनाते हैं। इसलिए सही मंत्र उच्चारण ही सर्वशक्तिदायक बनाता है। मंत्र उच्चारण की जरा-सी त्रुटि हमारे सारे किये -कराए पर पानी फेर सकत‍ी है। इसलिए गुरु के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन साधक को अवश्‍य करना चाहिए।

Saturday 26 July 2014

यही मोक्ष का द्वार है 1. मूलाधार चक्र : यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला यह 'आधार चक्र' है। 99.9% लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। ...


यही मोक्ष का द्वार है

1. मूलाधार चक्र :
यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच
चार पंखुरियों वाला यह 'आधार चक्र' है। 99.9%
लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और
वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में
भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है
उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित
रहती है।
मंत्र : लं
चक्र जगाने की विधि : मनुष्य तब तक पशुवत है,
जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसीलिए
भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस
चक्र पर लगातार ध्यािन लगाने से यह चक्र
जाग्रत होने
लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है
यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में
रहना।
प्रभाव : इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के
भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव
जाग्रत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के
लिए वीरता, निर्भीकता और
जागरूकता का होना जरूरी है।
2. स्वाधिष्ठान चक्र-
यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर
स्थित है जिसकी छ: पंखुरियां हैं। अगर
आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है
तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन,
घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने
की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए
ही आपका जीवन कब व्यतीत
हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ
फिर भी खाली रह जाएंगे।
मंत्र : वं
कैसे जाग्रत करें : जीवन में मनोरंजन जरूरी है,
लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन
भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है।
फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप
जो अनुभव करते हैं वह आपके बेहोश जीवन जीने
का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते।
प्रभाव : इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व,
आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास
आदि दुर्गणों का नाश
होता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है
कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त
हो तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।
3. मणिपुर चक्र :
नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र
शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है,
जो दस
कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस
व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे
काम करने की धुन-सी
रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग
दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।
मंत्र : रं
कैसे जाग्रत करें : आपके कार्य को सकारात्मक
आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे।
पेट से श्वास लें।
प्रभाव : इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या,
चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-
कल्मष दूर हो
जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान
करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए
आत्मवान होना
जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव
करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं।
आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के
साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।
4. अनाहत चक्र-
हृदय स्थल में स्थित स्वर्णिम वर्ण का द्वादश
दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश
स्वर्णाक्षरों से
सुशोभित चक्र ही अनाहत चक्र है। अगर
आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है, तो आप एक
सृजनशील
व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने
की सोचते हैं। आप चित्रकार, कवि, कहानीकार,
इंजीनियर आदि हो सकते हैं।
मंत्र : यं
कैसे जाग्रत करें : हृदय पर संयम करने और ध्यान
लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। खासकर
रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने
से यह अभ्यास से जाग्रत होने लगता है और
सुषुम्ना
इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है।
प्रभाव : इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट,
हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और
अहंकार
समाप्त हो जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से
व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण
होता है।
इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान
स्वत: ही प्रकट होने लगता है।व्यक्ति अत्यंत
आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से
जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित
व्यक्तित्व बन जाता हैं। ऐसा व्यक्ति अत्यंत
हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के
मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।
5. विशुद्ध चक्र-
कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां विशुद्ध चक्र
है और जो सोलह पंखुरियों वाला है। सामान्यतौर
पर
यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास
एकत्रित है तो आप अति शक्तिशाली होंगे।
मंत्र : हं
कैसे जाग्रत करें : कंठ में संयम करने और ध्यान
लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।
प्रभाव : इसके जाग्रत होने कर सोलह कलाओं
और सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके
जाग्रत
होने से जहां भूख और प्यास
को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव
को भी रोका जा सकता है।
6. आज्ञाचक्र :
भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में
आज्ञा चक्र है। सामान्यतौर पर जिस
व्यक्ति की ऊर्जा यहां
ज्यादा सक्रिय है तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से
संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन
जाता है
लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन
रहता है। इस बौद्धिक सिद्धि कहते हैं।
मंत्र : ऊं
कैसे जाग्रत करें : भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए
साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने
लगता है।
प्रभाव : यहां अपार शक्तियां और
सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र
का जागरण होने से ये सभी
शक्तियां जाग पड़ती हैं और व्यक्ति एक
सिद्धपुरुष बन जाता है।
7. सहस्रार चक्र :
सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है
अर्थात जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति यम,
नियम
का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह
आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे
व्यक्ति को
संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब
नहीं रहता है।
कैसे जाग्रत करें :
मूलाधार से होते हुए ही सहस्रार तक
पहुंचा जा सकता है। लगातार ध्यान करते रहने से
यह चक्र जाग्रत
हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त
कर लेता है।
प्रभाव : शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक
महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत
का संग्रह है। यही मोक्ष का द्वार है।

अपने वश में करने का प्रयत्न किया है सम्मोहन को अंग्रेजी में हिप्नोटिज्म कहा जाता है ,जिसका शाब्दिक अर्थ है निद्रा ,,किन्तु यह निद्रा प्राकृतिक एवं स्वाभाविक निद्रा नहीं होती है ,,इसे एक एक विशेष प्रकार की तंत्रिका की निद्रा या प्रेरित निद्रा भी कह सकते हैं ...


अपने वश में करने का प्रयत्न किया है
सम्मोहन को अंग्रेजी में हिप्नोटिज्म कहा जाता है ,जिसका शाब्दिक अर्थ है निद्रा ,,किन्तु यह निद्रा प्राकृतिक एवं स्वाभाविक निद्रा नहीं होती है ,,इसे एक एक विशेष प्रकार की तंत्रिका की निद्रा या प्रेरित निद्रा भी कह सकते हैं |प्राकृतिक निद्रा में व्यक्ति बेखबर होकर सोता है जबकि सम्मोहित निद्रा या अवस्था में व्यक्ति सम्मोहनकर्ता के आदेशों और निर्देशों के प्रति सजग होता है |खुद भी साधक अपने पर यह प्रयोग कर सकता है |
सम्मोहन मानव मन की उस दशा का नाम है जिसमे पहुचकर उसका मन सम्मोहनकर्ता अथवा स्वयं को दी गयी आज्ञाओं या निर्देशों का पालन करने लगता है |इस अवस्था में मानव मन प्रयोगकर्ता के निर्देशों द्वारा निद्रा अवस्था में आ जाता है |यह ठीक वैसी अवस्था होती है जैसी निद्रागमन के समय मन की होती है |उस समय मनुष्य की बुद्धि तेजी से काम करने लगती है और उसकी कल्पनाशक्ति उच्चतम शिखर पर पहुच जाती है |
स्वसम्मोहन या आत्म सम्मोहन एक ऐसी विशिष्ट अवस्था है जिसके माध्यम से साधक स्वयं कृत्रिम निद्रा में सो जाता है |इस अवस्था में साधक अपनी प्रतिकूल परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर ,अपने अचेतन व् निष्क्रिय शरीर के भीतर छिपे हुए चेतन मन ,प्राण शक्ति एवं संकल्प के द्वारा असाध्य कार्यों को भी सिद्ध कर जाता है |योग निद्रा की इस अवस्था में साधक पर काल प्रक्रिया निष्प्रभावी हो जाती है |सम्मोहन कई तरह का होता है ,व्यक्ति सम्मोहन ,स्वसम्मोहन ,समूह सम्मोहन आदि |
सम्मोहन का इतिहास बहुत पुराना है ,वैदिक काल में ऋषियों के आश्रमों में सम्मोहन विद्या पराकाष्ठ पर थी ,विदेशी इसे इजिप्सियन ,पर्सियन ,ग्रीक एवं रोमन सभ्यता की दें मानते हैं ,,कणव् ऋषि के आश्रम में शेर व् बकरी एक घाट पर पानी पीते थे ,नेवला व् सर्प एक वृक्ष की छाया में बैठते थे ,सम्मोहन की इस अवस्था में हिंसक प्राणियों का नैसर्गिक बैरभाव भी नष्ट हो जाता था ,,तात्विक दृष्टि से देखा जाए तो वासुदेव कृष्ण सम्मोहन विद्या के आदि अवतार थे ,,इन्होने व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक दृष्टि से इसके अनेक प्रयोग किये |कृष्ण ने सारे गोकुल- मथुरा- वृन्दावन को सम्मोहित कर रखा था |कृष्ण बंसी के मधुर संगीत के माध्यम से सार्वजनिक सम्मोहन कर देते थे |स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो के स्प्रिंगफील्ड मैदान में प्रवचन करते हुए समूह सम्मोहन के माध्यम से आधा मील दूर तक श्रोताओं को खींच ले गए जब उन्होंने कृष्ण के सम्मोहन प्रभाव के बारे में प्रश्न किया तो |इस सम्मोहन शक्ति को हमारे प्राचीन ग्रंथों में माया या निशाचरी माया का नाम दिया गया है |कुम्भकरण ,मेघनाद आदि ने राम की सेना को निशाचरी माया से मूर्छित कर दिया था ,यह एक प्रकार का सम्मोहन ही था ,,,वैज्ञानिकों के गहन अनुसन्धान -अध्ययन से यह सिद्ध हो गया है की मनुष्य के शरीर में एक विद्युतीय आवेश ,विद्युतीय गंघ [चुम्बकीय आकर्षण शक्ति ]निरंतर प्रवाहित होती रहती है |यह गंध उसके द्वारा प्रयोग की हुई वस्तुओं में भी प्रवाहित हो जाती है और वातावरण में भी फैलती है और काफी समय तक विद्यमान रहती है |यह औरा और फेरोमोंन होते हैं आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में |यह आसपास के व्यक्तियों को प्रभावित करते हैं स्वयमेव |म्मंसिक शक्ति के साथ इनका विस्तार व्यक्ति को सम्मोहित कर सकता है |
सृष्टि के मूल में सम्मोहन है |जड़ -चेतन सभी किसी न किसी रूप में एक-दुसरे के प्रति सम्मोहित होते हैं ,आकर्षित होते हैं ,,वे जाने-अनजाने अपने आपको किसी न किसी के प्रति समर्पित करने के लिए तैयार रहते हैं ,जुड़ने को तैयार रहते है ,आकर्षित होते हैं ,खींचते हैं | यह सामान्य सम्मोहन -आकर्षण है |मनुष्य बुद्धिमान प्राणी है ,वह सम्मोहित ही नहीं होता अपितु दूसरों को भी सम्मोहित करके उनसे अपने मनोनुकूल कार्य करना चाहता है |यह प्राणी में किसी न किसी के प्रति सम्मोहित होने की भावना जानता है |इसी मानवीय भावना को समझकर बुद्धिमान व्यक्तियों ने अन्य व्यक्तियों ,अपने को ,समूह को प्रयत्नपूर्वक अपने वश में करने का प्रयत्न किया है और उपाय सोचे हैं ,इसका मुख्य रूप सम्मोहन है| सम्मोहन से लोगो से मनचाहे कार्य कराये जा सकते हैं ,उनको असाध्य रोगों -दुर्व्यसनों से मुक्ति दिलाई जा सकती है ,रोग दूर किये जा सकते हैं ,मानसिक भय दूर किया जा सकता है ,मनोविकार दूर किये जा सकते हैं, मन में नए उत्साह-ऊर्जा का संचार किया जा सकता है ,हीन भावना समाप्त की जा सकती है ,भावों -सोचों में परिवर्तन किया जा सकता है ,सफ़लता बधाई जा सकती है ,ईष्ट तक की प्राप्ति हो सकती है |सम्मोहन उपचार को हिप्रोथेरैपी नाम दिया गया है जिससे ह्रदय रोग ,स्वाशनली में सूजन ,उच्च रक्त चाप ,गर्भावस्था की उलटी ,प्रसव पीड़ा ,अनिद्रा ,अंधापन ,मनोरोग ,फोबिया ,धूम्रपान ,वजन में कमी आदि रोग दूर करने में सहायता मिली है ,मानसिक बल और जीवनी शक्ति बढ़ाकर असाध्य रोगों में भी अच्छी सफलता प्राप्त होती है |
सम्मोहन की शक्ति प्राप्त करने की पहली सीढ़ी त्राटक है ,अर्थात ध्यान का केन्द्रीकरण अर्थात मन का एकाग्रीकरण ,इसकी अनेक प्रारम्भिक विधियाँ हैं जो बाद में एक दुसरे में समायोजित होती चली जाती हैं |यह क्रियाएं क्रमिक रूप से चलती है चरणबद्ध रूप से 

माँ दुर्गा के लोक कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र 1. सब प्रकार के कल्याण के लिये “सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१०)...


माँ दुर्गा के लोक कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र

माँ दुर्गा के लोक कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र 

1. सब प्रकार के कल्याण के लिये
“सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। 
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१०)

अर्थ :- नारायणी! तुम सब प्रकार का मङ्गल प्रदान करनेवाली मङ्गलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।

2. दारिद्र्य-दु:खादिनाश के लिये

“दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: 
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या 
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता॥” (अ॰४,श्लो॰१७)

अर्थ :- माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दु:ख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिये सदा ही दया‌र्द्र रहता हो।

3॰ बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये
“सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:। 
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥” (अ॰१२,श्लो॰१३)

अर्थ :- मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा- इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

4॰ बन्दी को जेल से छुड़ाने हेतु
“राज्ञा क्रुद्धेन चाज्ञप्तो वध्यो बन्धगतोऽपि वा।
आघूर्णितो वा वातेन स्थितः पोते महार्णवे।।” (अ॰१२, श्लो॰२७)

5॰ संतान प्राप्ति हेतु
“नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भ सम्भवा।
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी” (अ॰११, श्लो॰४२)
6॰ अचानक आये हुए संकट को दूर करने हेतु
“ॐ इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति।
तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम्ॐ।।” (अ॰११, श्लो॰५५)

7॰ बाधा शान्ति के लिये
“सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। 
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥” (अ॰११, श्लो॰३८)

अर्थ :- सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।

8॰ सुलक्षणा पत्‍‌नी की प्राप्ति के लिये

पत्‍‌नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। 
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥

अर्थ :- मन की इच्छा के अनुसार चलनेवाली मनोहर पत्‍‌नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसारसागर से तारनेवाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो।

9॰ भय नाश के लिये
“सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। 
भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्। 
पातु न: सर्वभीतिभ्य: कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥
ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्। 
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥ ” (अ॰११, श्लो॰ २४,२५,२६)

अर्थ :- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्ति यों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है। कात्यायनी! यह तीन लोचनों से विभूषित तुम्हारा सौम्य मुख सब प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करे। तुम्हें नमस्कार है। भद्रकाली! ज्वालाओं के कारण विकराल प्रतीत होनेवाला, अत्यन्त भयंकर और समस्त असुरों का संहार करनेवाला तुम्हारा त्रिशूल भय से हमें बचाये। तुम्हें नमस्कार है।

10॰ आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

अर्थ :- मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

11॰ विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद 
प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं 
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥

अर्थ :- शरणागत की पीडा दूर करनेवाली देवि! हमपर प्रसन्न होओ। सम्पूर्ण जगत् की माता! प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरि! विश्व की रक्षा करो। देवि! तुम्हीं चराचर जगत् की अधीश्वरी हो।

12॰ प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि। 
त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव॥

अर्थ :- विश्व की पीडा दूर करनेवाली देवि! हम तुम्हारे चरणों पर पडे हुए हैं, हमपर प्रसन्न होओ। त्रिलोकनिवासियों की पूजनीया परमेश्वरि! सब लोगों को वरदान दो।

13॰ महामारी नाश के लिये
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। 
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

अर्थ :- जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो।

14॰ रोग नाश के लिये
“रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। 
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥” (अ॰११, श्लो॰ २९)

अर्थ :- देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवाञ्छित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं।

15॰ विपत्ति नाश के लिये
“शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे। 
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१२)

अर्थ :- शरण में आये हुए दीनों एवं पीडितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीडा दूर करनेवाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है।

16. विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिये
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी 
शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:।

अर्थ :- वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मङ्गल करे तथा सारी आपत्तियों का नाश कर डाले।

17॰ भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिये
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

18॰ पापनाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिये
नतेभ्यः सर्वदा भक्तया चण्डिके दुरितापहे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

19 स्वप्न में सिद्धि-असिद्धि जानने के लिये

दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय॥

20॰ प्रबल आकर्षण हेतु
“ॐ महामायां हरेश्चैषा तया संमोह्यते जगत्,
ज्ञानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।” (अ॰१, श्लो॰५५)

उपरोक्त मंत्रों को संपुट मंत्रों के उपयोग में लिया जा सकता है अथवा कार्य सिद्धि के लिये स्वतंत्र रुप से भी इनका पुरश्चरण किया जा सकता है। 

Friday 25 July 2014

खाली हाथ जाना पड़ेगा यह जिस्म तो किराये का घर है... एक दिन खाली करना पड़ेगा...|| सांसे हो जाएँगी जब हमारी पूरी यहाँ ... रूह को तन से अलविदा कहना पड़ेगा...।। वक्त नही है तो बच जायेगा गोली से भी समय आने पर ठोकर से मरना पड़ेगा...||......


खाली हाथ जाना पड़ेगा
यह जिस्म तो किराये का घर है...
एक दिन खाली करना पड़ेगा...||

सांसे हो जाएँगी जब हमारी पूरी यहाँ ...
रूह को तन से अलविदा कहना पड़ेगा...।।

वक्त नही है तो बच जायेगा गोली से भी
समय आने पर ठोकर से मरना पड़ेगा...||

मौत कोई रिश्वत लेती नही कभी...
सारी दौलत को छोंड़ के जाना पड़ेगा...||

ना डर यूँ धूल के जरा से एहसास से तू...
एक दिन सबको मिट्टी में मिलना पड़ेगा...||

सब याद करे दुनिया से जाने के बाद...
दूसरों के लिए भी थोडा जीना पड़ेगा...||

मत कर गुरुर किसी भी बात का ए दोस्त...
तेरा क्या है... क्या साथ लेके जाना पड़ेगा...||

इन हाथो से करोड़ो कमा ले भले तू यहाँ ...
खाली हाथ आया खाली हाथ जाना पड़ेगा...||

ना भर यूँ जेबें अपनी बेईमानी की दौलत से...
कफ़न को बगैर जेब के ही ओढ़ना पड़ेगा...||

यह ना सोच तेरे बगैर कुछ नहीं होगा यहाँ .... 
रोज़ यहाँ किसी को "आना"तो किसी को "जाना" पड़ेगा...||

Tuesday 22 July 2014

वजन घटाने में मददगार ताम्बे के बर्तन का पानी पिने के लाभ : हम में से ज्यादातर लोगों ने अपने दादा-दादी से तांबे के बर्तन में संग्रहीत पानी पीने के स्वास्थ्य लाभों के बारे में सुना होगा।.....


वजन घटाने में मददगार
ताम्बे के बर्तन का पानी पिने के लाभ :
हम में से ज्यादातर लोगों ने अपने दादा-दादी से तांबे के बर्तन में संग्रहीत पानी पीने के स्वास्थ्य लाभों के बारे में सुना होगा। कुछ लोग तो पानी पीने के लिए विशेष रूप से तांबे से बने गिलास और जग का उपयोग करते हैं। लेकिन क्‍या इस धारणा के पीछे वास्‍तव में कोई वैज्ञानिक समर्थन है? या यह एक मिथक है बस? तो आइए तांबे के बर्तन में पानी पीने के बेहतरीन कारणों के बारे में जानें. - 
हमारी संस्कृति हमारी सोच 
आयुर्वेद के अनुसार, तांबे के बर्तन में संग्रहीत पानी में आपके शरीर में तीन दोषों (वात, कफ और पित्त) को संतुलित करने की क्षमता होती है और यह ऐसा सकारात्मक पानी चार्ज करके करता है। तांबे के बर्तन में जमा पानी 'तमारा जल' के रूप में भी जाना जाता है और तांबे के बर्तन में कम 8 घंटे तक रखा हुआ पानी ही लाभकारी होता है। 
जब पानी तांबे के बर्तन में संग्रहित किया जाता है तब तांबा धीरे से पानी में मिलकर उसे सकारात्‍मक गुण प्रदान करता है। इस पानी के बारे में सबसे अच्‍छी बात यह है कि यह कभी भी बासी (बेस्‍वाद) नहीं होता और इसे लंबी अवधि तक संग्रहित किया जा सकता है। 
बैक्‍टीरिया समाप्‍त करने में मददगार 
तांबे को प्रकृति में ओलीगोडिनेमिक के रूप में (बैक्‍टीरिया पर धातुओं की स्‍टरलाइज प्रभाव) जाना जाता है और इसमें रखे पानी के सेवन से बैक्‍टीरिया को आसानी से नष्‍ट किया जा सकता है। तांबा आम जल जनित रोग जैसे डायरिया, दस्‍त और पीलिया को रोकने में मददगार माना जाता है। जिन देशों में अच्‍छी स्‍वच्‍छता प्रणाली नहीं है उन देशों में तांबा पानी की सफाई के लिए सबसे सस्‍ते समाधान के रूप में पेश आता है। 
थायरेक्सीन हार्मोन के असंतुलन के कारण थायराइड की बीमारी होती है। थायराइड के प्रमुख लक्षणों में तेजी से वजन घटना या बढ़ना, अधिक थकान महसूस होना आदि हैं। कॉपर थायरॉयड ग्रंथि के बेहतर कार्य करने की जरूरत का पता लगाने वाले सबसे महत्‍वपूर्ण मिनरलों में से एक है। थायराइड विशेषज्ञों के अनुसार, कि तांबे के बर्तन में रखें पानी को पीने से शरीर में थायरेक्सीन हार्मोन नियंत्रित होकर इस ग्रंथि की कार्यप्रणाली को भी नियंत्रित करता है। 
तांबे में मस्तिष्‍क को उत्तेजित करने वाले और विरोधी ऐंठन गुण होते हैं। इन गुणों की मौजूदगी मस्तिष्‍क के काम को तेजी और अधिक कुशलता के साथ करने में मदद करते है। 
गठिया में फायदेमंद 
गठिया या जोड़ों में दर्द की समस्‍या आजकल कम उम्र के लोगों में भी होने लगी है। यदि आप भी इस समस्या से परेशान हैं, तो रोज तांबे के पात्र का पानी पीये। तांबे में एंटी-इफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह गुण दर्द से राहत और दर्द की वजह से जोड़ों में सूजन का कारण बने - गठिया और रुमेटी गठिया के मामले विशेष रूप से फायदेमंद होते है। 
त्‍वचा पर सबसे अधिक प्रभाव आपकी दिनचर्या और खानपान का पड़ता है। इसीलिए अगर आप अपनी त्‍वचा को सुंदर बनाना चाहते हैं तो रातभर तांबे के बर्तन में रखें पानी को सुबह पी लें। ऐसा इसलिए क्‍योंकि तांबा हमारे शरीर के मेलेनिन के उत्‍पादन का मुख्‍य घटक है। इसके अलावा तांबा नई कोशिकाओं के उत्‍पादन में मदद करता है जो त्‍वचा की सबसे ऊपरी परतों की भरपाई करने में मदद करती है। नियमित रूप से इस नुस्खे को अपनाने से त्‍वचा स्‍वस्‍थ और चमकदार लगने लगेगी। 
पाचन क्रिया को दुरुस्‍त रखें 
पेट जैसी समस्‍याएं जैसे एसिडिटी, कब्‍ज, गैस आदि के लिए तांबे के बर्तन का पानी अमृत के सामान होता है। आयुर्वेद के अनुसार, अगर आप अपने शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना चाहते हैं तो तांबे के बर्तन में कम से कम 8 घंटे रखा हुआ पानी पिएं। इससे पेट की सूजन में राहत मिलेगी और पाचन की समस्याएं भी दूर होंगी। 
उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करें 
अगर आप त्‍वचा पर फाइन लाइन को लेकर चिंतित हैं तो तांबा आपके लिए प्राकृतिक उपाय है। मजबूत एंटी-ऑक्‍सीडेंट और सेल गठन के गुणों से समृद्ध होने के कारण कॉपर मुक्त कणों से लड़ता है---जो झुर्रियों आने के मुख्‍य कारणों में से एक है---और नए और स्वस्थ त्वचा कोशिकाओं के उत्पादन में मदद करता है। 
खून की कमी दूर करें 
ज्‍यादातर भारतीय महिलाओं में खून की कमी या एनीमिया की समस्‍या पाई जाती है। कॉपर के बारे में यह तथ्य सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक है कि यह शरीर की अधिकांश प्रक्रियाओं में बेहद आवश्यक होता है। यह शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को अवशोषित कर रक्त वाहिकाओं में इसके प्रवाह को नियंत्रित करता है। इसी कारण तांबे के बर्तन में रखे पानी को पीने से खून की कमी या विकार दूर हो जाते हैं। 
वजन घटाने में मददगार 
गलत खान-पान और अनियमित जीवनशैली के कारण कम उम्र में वजन बढ़ना आजकल एक आम समस्‍या हो गई है। अगर आप अपना वजन घटाना चाहते हैं तो एक्सरसाइज के साथ ही तांबे के बर्तन में रखा पानी पीना आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। इस पानी को पीने से शरीर की अतिरिक्त वसा कम हो जाती है। 
कैंसर से लड़ने में सहायक 
तांबे के बर्तन में रखा पानी वात, पित्त और कफ की शिकायत को दूर करने में मदद करता है। इस प्रकार से इस पानी में एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं, जो कैसर से लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार तांबे कैंसर की शुरुआत को रोकने में मदद करता है, कैसे इसकी सटीक कारण अभी तक ज्ञात नहीं है, लेकिन कुछ अध्ययनों के अनुसार, तांबे में कैंसर विरोधी प्रभाव मौजूद होते है। 
घाव को तेजी से भरें 
तांबा अपने एंटी-बैक्‍टीरियल, एंटीवायरल और एंटी इफ्लेमेटरी गुणों के लिए जाना जाता है। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि तांबा घावों को जल्‍दी भरने के लिए एक शानदार तरीका है। 
दिल को स्‍वस्‍थ रखें 
दिल के रोग और तनाव से ग्रसित लोगों की संख्या तेजी बढ़ती जा रही है। यदि आपके साथ भी ये परेशानी है तो तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से आपको लाभ हो सकता है। तांबे के ।बर्तन में रखे हुए पानी को पीने से पूरे शरीर में रक्त का संचार बेहतरीन रहता है। कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल में रहता है और दिल की बीमारियां दूर रहती हैं। 

सभी भक्तों को क्यों नहीं होते श्री कृष्ण के दर्शन वो मनुष्य बड़ा सौभाग्यशाली होता है जिसकी प्रभु के नाम सिमरण में रूचि होती है। आंतरी गांव में ऐसे ही एक परम भगवत भक्त गोविंद दास जी निवास करते थे।..


श्री कृष्ण के दर्शन हेतु
सभी भक्तों को क्यों नहीं होते श्री कृष्ण के दर्शन
वो मनुष्य बड़ा सौभाग्यशाली होता है जिसकी प्रभु के नाम सिमरण में रूचि होती है। आंतरी गांव में ऐसे ही एक परम भगवत भक्त गोविंद दास जी निवास करते थे। बचपन से ही श्री कृष्ण लीलाओं में उनकी बहुत रूची थी। श्री कृष्ण को अपना सखा मान, उनकी मानसी सेवा किया करते थे।
गान विद्या, मधुर कण्ठ और माधुर्यातिपति श्री कृष्ण की मधुरतम लीलाएं तीनों का एक साथ संयोग होने से ये शीध्र ही आसपास के गांवों में गोविंद स्वामी के नाम से प्रसिद्ध हो गए। जैसे-जैसे प्रसिद्धि बढ़ने लगी गोविंद स्वामी के सम्मुख अपने प्राण जीवन श्यामसुंदर के साथ मानसी एकांत क्रिड़ाओं में भी बाधाएं आने लगी। जब गोविंद स्वामी जी की सहन शक्ति की इति हो गई तो एक रात्रि वे अपना गांव छोड़ कर मथुरा की ओर निकल पड़े।
महावन में श्री कृष्ण के अवश्य ही दर्शन होंगे इस विश्वास के साथ वह वहीं बस गए। टकटकी लगाए वह अपने प्रियतम की प्रतिक्षा करते रहते, विरह वेदना बढ़ने लगी। कभी वे सोचते श्री कृष्ण मिलेंगे तो उनसे कैसे भेंट करूंगा? उनके मधुर स्पर्श से मेरे रोम-रोम कितने पुलक उठेंगे? विरह के आंसूओं से स्निग्ध भक्त की कोमल पदावली व्रजवीथियों में गूंज उठी। कभी पछाड़ खाकर धरती पर गिरते एवं कभी धूल में लोटने लगते।
गोकुल में गोस्वामी विट्ठलदास जी के पास इनका वृतांत पहुंचा। गोस्वामी जी ने अपने एक परम प्रेमी वैष्णव को गोविंद दास जी के पास भेजा। जब वो इनके समीप गए तो वे झट से आकर उनके गले से लग गए और उनसे प्रश्न करते हैं," भाई! तुम बताओगे मुझे श्री कृष्ण के दर्शन क्यों नहीं होते?"
वैष्णव उनका प्रश्न सुन कर भावुक हो गए और अवरूद्ध कंठ से बोले," श्री कृष्ण तुम्हारे प्रेम वश तुम्हारे पास आना तो चाहते हैं परंतु वे तो आजकल गोकुल में गोस्वामी विट्ठलदास जी के वश में हैं।"
अत: अगर सच में उन से मिलना चाहते हो तो यहां से गोकुल चले चलो। भक्त के अधीर ह्रदय को फिर इतना चैन कहां शांति की सांस इन्होंने तभी ली जब कि ये गोसाई जी के चरणों में लिपटकर श्री कृष्ण के दर्शन हेतु प्रार्थना करने का अवसर प्राप्त कर चुके।
गोसाई जी की कृपा से इन्होंने भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन एवं भगवल्लीला सांनिध्य दोनों ही प्राप्त हुए। ये गोस्वामी विट्ठलदास जी के शिष्य होने के पश्चात उनके अष्टछाप में ले लिए गए। इनका कण्ठ इतना सुरीला था की तानसेन तक इनका गाना सुनने आया करते थे। बादशाह अकबर ने इनका गाना सुनने के लिए इन्हें अनेक प्रलोभन दिए मगर यह श्री नाथ जी के सिवाय किसी के सामने नहीं गाते थे। जब बादशाह हर तरफ से निराश हो गया तो बीरबल ने चोरी से छिप कर इनका गाना सुनवा दिया। जब गोविंद दास जी को इस बात का पता चला तो उन्होंने वो राग गाना ही छोड़ दिया क्योंकि उनका कहना था कि बादशाह अकबर ने राग को झूठा कर दिया है।
गोस्वामी विट्ठलदास जी गोविंद दास जी का अत्यंत प्रेम एवं आदर करते थे। भावावेश में किए गए व्यवहार को लोग दम्भ एवं अनाचार समझ इनकी अनेक शिकायतें गोस्वामी जी से किया करते थे।
एक बार श्री नाथ जी की किसी गोपनीय लीला को इन्होंने गोस्वामी जी के समक्ष प्रकट कर दी। गोस्वामी जी श्री नाथ जी का श्रृंगार कर रहे थे। इन्होंने पद कीर्तन करते हुए अपने पद में वह वस्तु प्रकट कर दी। श्री नाथ जी ने इनको मना करने के लिए सात कंकड़ियां मारी, किंतु यह नहीं मानें। आठवीं ककड़ी जैसे ही श्री नाथ जी ने उठाई इन्होंने भी पास पड़ी ककड़ी को उठा लिया और दौड़े मंदिर को ओर मारने। मंदिर के लोग बिगड़ने लगे। गोस्वामी जी ने लोगों को शांत किया। जब गोविंद दास जी को धैर्य बंधाया तो वो बच्चे की तरह फूट-फूट कर रोने लगे और बोले," आपके इस श्री नाथ ने मुझे आठ कंकड़ियां मारी हैंं। यदि मैं इसे मारता नहीं तो यह रूकता थोड़े ही।"

Wednesday 16 July 2014

शत्रुओं का नाश होता है। क्यों करते हैं शिवजी का अभिषेक? अभिषेक शब्द का अर्थ है स्नान करना या कराना। यह स्नान भगवान मृत्युंजय शिव को कराया जाता है। अभिषेक को आजकल रुद्राभिषेक के रुप में ही ज्यादातर पहचाना जाता है। अभिषेक के कई प्रकार तथा रुप होते हैं। ....


शत्रुओं का नाश होता है।
क्यों करते हैं शिवजी का अभिषेक? 

अभिषेक शब्द का अर्थ है स्नान करना या कराना। यह स्नान भगवान मृत्युंजय शिव को कराया जाता है। अभिषेक को आजकल रुद्राभिषेक के रुप में ही ज्यादातर पहचाना जाता है। अभिषेक के कई प्रकार तथा रुप होते हैं। किंतु आजकल विशेष रूप से रुद्राभिषेक ही कराया जाता है। रुद्राभिषेक का मतलब है भगवान रुद्र का अभिषेक यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है।शिवपुराण में सनकादि ऋषियों के पूछने पर स्वयं भगवान शिव ने अभिषेक का महत्व बताते हुए कहा है कि सभी प्रकार की आसक्तियों से रहित होकर जो मेरा अभिषेक करता है वह सभी कामनाओं को प्राप्त करता है।
शास्त्रों में भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना जाता है। भगवान रुद्र से सम्बंधित मंत्रों का वर्णन बहुत ही पुराने समय से मिलता है। रुद्रमंत्रों का विधान ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में दिये गए मंत्रों से किया जाता है। रुद्राष्टाध्यायी में अन्य मंत्रों के साथ इस मंत्र का भी उल्लेख मिलता है।
जलाभिषेक स्वयं मे रहे 'प्रेम प्रवाह ' 'भाव प्रवाह ' 'भक्ति प्रवाह' 'ज्ञानप्रवाहआवत' को स्मरण करने के लिए है । भगवान से हमारा सम्बन्ध तैल धारावत सतत रहे इसका स्मरण करने के लिए संभवतः जलाभिषेक करते हैं। गोरस के प्रति हमारे अन्दर विशिष्ट भाव उत्पन्न हो यह भावना भी हमारे ऋषियों की रही होगी । हम गोपालन करें , माँ की सेवा करें। उनके आशीर्वाद स्वरुप गोरस ( दुग्ध ) को भगवान पर अर्पित करें और प्रसाद रूप मे ग्रहण करें यह सिखाने वाली हमारी भारतीय संस्कृति है ।
अभिषेक में उपयोगी वस्तुएं: अभिषेक साधारण रूप से तो जल से ही होता है। विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों में गोदुग्ध या अन्य दूध मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है। विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है। तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है।
भगवान शिव ही ऐसे देवता हैं जो मात्र जल चढ़ाने से प्रसन्न हो जाते हैं। शिवपुराण के अनुसार अलग-अलग कामनाओं की सिद्धि के लिए भगवान शिव का अनेक द्रव्यों से अभिषेक किया जाता है।
यजुर्वेदीय ऋचाओं के साथ भगवान का अभिषेक करने से भगवान आशुतोष शीघ्र प्रसन्न होते हैं। अभिषेक से मनुष्य की अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की कामना की सिद्धि होती है।
शास्त्रों में कामना की प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार के द्रव्यों से अभिषेक का वर्णन है--
१ - जल की धारा भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है, अत: शुद्ध जल से भगवान शिव का अभिषेक करने पर भरपूर जलवृष्टि होती है। जल से अभिषेक करने से तेज ज्वर से भी शांत हो जाता है।
२ - लक्ष्मी प्राप्ति के लिए गन्ने के रस से भगवान का अभिषेक करना चाहिए।
३ - गाय के दूध से अभिषेक करने पर सर्व सिद्धि प्राप्त होती है।
४ - शक्कर ‍‍‍मिश्रित दूध से अभिषेक करने पर बुद्धि की जड़ता समाप्त हो जाती है और बुद्धि श्रेष्ठ होती है।
५ - शहद से अभिषेक करने पर पापों का नाश हो जाता है। तापादी रोग से छुटकारा मिलता है।
६ - घी से अभिषेक करने पर जीवन में आरोग्यता आती है और वंशवृद्धि होती है।
७ - सरसों के तेल के भगवान का ‍अभिषेक करने पर शत्रुओं का नाश होता है।
८ - मोक्ष की कामना के लिए तीर्थों के जल द्वारा अभिषेक किया जाता है।
इन रसों द्वारा शुद्ध चित्त के साथ विधानुसार भगवान शिव का अभिषेक करने पर भगवान भक्त की सभी कामनाओं की पूर्ति करते हैं। श्रावण ,शिववास , विशेष पर्व शिवरात्री आदि में भगवान शिव का अभिषेक विशेष फलदायी होता है।

हर मनोकामना पूर्ण करते है जीवन की सभी समस्याओ से निजात पाने के लिए इस सावन के पवित्र महीने के पहले सोमवार के दिन यानि आज सभी बारह राशियों के जातक अपनी राशि और अपनी कामनाओं अथवा परेशानियों के निवारण के लिए यदि अपनी राशि अनुसार भगवान शिव की आरधना करते है तो निश्चित तौर पर भगवान भोले नाथ प्रसन्न होकर अपने सभी भक्तो की हर मनोकामना पूर्ण करते है .......


हर मनोकामना पूर्ण करते है
जीवन की सभी समस्याओ से निजात पाने के लिए इस सावन के पवित्र महीने के पहले सोमवार के दिन यानि आज सभी बारह राशियों के जातक अपनी राशि और अपनी कामनाओं अथवा परेशानियों के निवारण के लिए यदि अपनी राशि अनुसार भगवान शिव की आरधना करते है तो निश्चित तौर पर भगवान भोले नाथ प्रसन्न होकर अपने सभी भक्तो की हर मनोकामना पूर्ण करते है ।जानते हैं कि किस राशि के व्यक्ति को किस पूजा सामग्री से शिव पूजा अधिक शुभ फल देती है।
मेष राशि– मेष राशि के जातक इस सावान माह में जल में गुड़ मिलाकर भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करें। लाल चंदन व कनेर के फूल चढ़ावें। शक्कर या गुड़ की मीठी रोटी बनाकर भगवान शंकर को भोग लगाएं। 'ॐ ममलेश्वराय नम:' मंत्र का जाप करें।भूमि, भवन आदि अचल संपत्ति प्राप्त होगी।
वृष राशि- इस राशि के जातक दही से शिव का अभिषेक करें इसके अलावा चावल, सफेद चंदन, सफेद फूल और अक्षत यानि चावल चढ़ावें। ऐसा करने से आप पर भगवान शिव की कृपा बनी रहेगी| 'ॐ नागेश्वराय नम:' मंत्र का जापकरें।परिवार में सुख-शांति आएगी।
मिथुन राशि– मिथुन राशि वाले इस सावन में भगवान शिव का गन्ने के रस से अभिषेक करे। इसके अलावा मूंग, दूर्वा और कुशा भी अर्पित करें। ' ॐ भूतेश्वराय नम: मंत्र का जाप करें।धन लाभ होगा।
कर्क राशि– इस राशि के शिवभक्त भगवान शिव का अभिषेक घी से करें। साथ ही कच्चा दूध, सफेद आंकड़े का फूल और शंखपुष्पी भी चढ़ावें। महादेव के 'द्वादश नाम' का स्मरण करें।व्यक्तित्व विकास होगा। चिंता का नाश होगा।
सिंह राशि– सिंह राशि के व्यक्ति गुड़ के जल से शिव अभिषेक करें। गेहूं और मंदार के फूल भी चढ़ाएं और गुड़ व चावल से बनी खीर का भोग लगाएं। 'ॐ नम: शिवाय' की रोज एक माला करें।आत्मसुख मिलेगा। बिगड़े काम बन जाएंगे।
कन्या राशि– कन्या राशि वालों के लिए भी गन्ने के रस से शिव का अभिषेक करना फलदाई रहेगा इसलिए इस राशि के जातक जहाँ तक हो सके गन्ने के रस से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करें| इसके अलावा भांग, दुर्वा व पान चढ़ाएं। 'शिव-चालिसा' का पाठकरें। रोजगार के अवसर मिलेंगे।
तुला राशि– तुला राशि वाले इत्र या सुगंधित तेल से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करें और दही, शहद और श्रीखंड का प्रसाद चढ़ाएं। सफेद फूल भी पूजा में शिव को अर्पित करें। 'शिवाष्टक' का पाठ करें।कार्य में आ रही बाधाएं दूर होंगी।
वृश्चिक राशि– इस राशि के जातकों के लिए पंचामृत से शिव का अभिषेक करना शीघ्र फल देने वाला माना जाता है। साथ ही लाल फूल भी शिव को जरुर चढ़ाएं। 'ॐ अंगारेश्वराय नम:' का जाप करें।धन लाभ होगा।
धनु राशि– धनु राशि के जातकों के लिए दूध में हल्दी मिलाकर शिव का अभिषेक करना बहुत ही फलदाई माना गया है| इसलिए इस राशि वाले इस सावन में हल्दी मिले दूध से शिव का अभिषेक करें| इसके साथ ही भगवान को चने के आटे और मिश्री से मिठाई तैयार कर भोग लगाएं। पीले या गेंदे के फूल पूजा में अर्पित करें। 'ॐ रामेश्वराय नम:' का जाप करें।रोगों से मुक्ति मिलेगी।
मकर राशि – मकर राशि के जातक इस सावन में नारियल के पानी से शिव का अभिषेक करें। साथ ही उड़द की दाल से तैयार मिष्ठान्न का भगवान को भोग लगाएं। नीले कमल का फूल भी भगवान को चढ़ाएं। 'शिव सहस्त्रनाम' का उच्चारणकरें। विवाह के लिए रिश्ते आएंगे।
कुंभ राशि– कुम्भ राशि वाले तिल के तेल से भगवान शिव का अभिषेक करें। यह शनि पीड़ा को भी कम करता है। साथ ही उड़द से बनी मिठाई का भोग लगाएं और शमी के फूल से पूजा में अर्पित करें। 'ॐशिवाय नम:' का जाप करें।प्रतियोगी परीक्षा में सफलता मिलेगी।
मीन राशि – मीन राशि वाले इस सावन माह में दूध में केशर मिलाकर शिव पर चढ़ाएं। चावल और दही मिलाकर भोग लगाएं। पीली सरसों और नागकेसर से शिव को चढ़ाएं। 'ॐ भौमेश्वराय नम:' का जाप करें। परिवार में प्रेम बढ़ेगा।

शिव के १०८ नामों से:पुष्प, विल्व पत्र चढ़ाएँ शिव के १०८ नामों से:पुष्प, विल्व पत्र चढ़ाएँ ॐ अस्य श्रीशिवाष्टोत्तरशतनाममन्त्रस्य नारायणऋषि: अनुष्टुप् छन्द: श्रीसदाशिवो देवता गौरी उमाशक्ति: श्रीसाम्बसदाशिवप्रातये अष्टोत्तरशतनामभि: शिवपूजने विनियोग:।( थोड़ा जल चढ़ाएँ )....


शिव के १०८ नामों से:पुष्प, विल्व पत्र चढ़ाएँ
शिव के १०८ नामों से:पुष्प, विल्व पत्र चढ़ाएँ
ॐ अस्य श्रीशिवाष्टोत्तरशतनाममन्त्रस्य नारायणऋषि: अनुष्टुप् छन्द: श्रीसदाशिवो देवता गौरी उमाशक्ति: श्रीसाम्बसदाशिवप्रातये अष्टोत्तरशतनामभि: शिवपूजने विनियोग:।( थोड़ा जल चढ़ाएँ )
ध्यान :-शान्ताकारं शिखरिशयनं नीलकण्ठं सुरेशं
विश्वाधारं स्फटिकसद्दशं शुभ्रवर्णं शुभाड्गम् ।
गौरीकान्तं त्रितयनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे शम्भुं भवमयहरं सवलोकैकनाथम् ॥
ॐ शिवाय नम: ॥१॥
ॐ महेश्वराय नम: ॥२॥
ॐ शम्भवे नम: ॥३॥
ॐ पिनाकिने नम: ॥४॥
ॐ शशिशेखराय नम: ॥५॥
ॐ वामदेवाय नम: ॥६॥
ॐ विरुपाक्षाय नम: ॥७॥
ॐ कपर्दिने नम: ॥८॥
ॐ नीललोहिताय नम: ॥९॥
ॐ शंकराय नम: ॥१०॥
ॐ शूलपाणये नम: ॥११॥
ॐ खट्‌वाङ्गिने नम: ॥१२॥
ॐ विष्णुवञ्जभाय नम: ॥१३॥
ॐ शिपिविष्टाय नम: ॥१४॥
ॐ अम्विकानाथाय नम: ॥१५॥
ॐ श्रीकण्ठाय नम: ॥१६॥
ॐ भक्तवत्सलाय नम: ॥१७॥
ॐ भवाय नम: ॥१८॥
ॐ शर्वाय नम: ॥१९॥
ॐ त्रिलोकीशाय नम: ॥२०॥
ॐ शितिकण्ठाय नम: ॥२१॥
ॐ शिवाप्रियाय नम: ॥२२॥
ॐ उग्राय नम: ॥२३॥
ॐ कपालिने नम: ॥२४॥
ॐ कामारये नम: ॥२५॥
ॐ अन्धकासुरसूदनाय नम: ॥२६॥
ॐ गंगाधराय नम: ॥२७॥
ॐ ललाटाक्षाय नम: ॥२८॥
ॐ कालकालाय नम: ॥२९॥
ॐ कृपानिधये नम: ॥३०॥
ॐ भीमाय नम: ॥३१॥
ॐ परशुइस्ताय नम: ॥३२॥
ॐ मृगपाणये नम: ॥३३॥
ॐ जटाधराय नम: ॥३४॥
ॐ कैलामवासिने नम: ॥३५॥
ॐ कवचिने नम: ॥३६॥
ॐ कठोराय नम: ॥३७॥
ॐ त्रिपुरान्तकाय नम: ॥३८॥
ॐ वृषाङ्काय नम: ॥३९॥
ॐ वृषभारूढाय नम: ॥४०॥
ॐ भस्मोद्‌धूलितविग्रहाय नम: ॥४१॥
ॐ सामप्रियाय नम: ॥४२॥
ॐ स्वरमयाय नम: ॥४३॥
ॐ त्रिमूर्त्तये नम: ॥४४॥
ॐ अश्विनीश्वराय नम: ॥४५॥
ॐ सर्वज्ञाय नम: ॥४६॥
ॐ परमात्मने नम: ॥४७॥
ॐ सोमसूर्य्याग्निलोचनाय नम: ॥४८॥
ॐ हावषे नम: ॥४९॥
ॐ यज्ञमयाय नम: ॥५०॥
ॐ पञ्चवक्त्राय नम: ॥५१॥
ॐ सदाशिवाय नम: ॥५२॥
ॐ विश्वेश्वराय नम: ॥५३॥
ॐ वीरभद्राय नम: ॥५४॥
ॐ गणनाथाय नम: ॥५५॥
ॐ प्रजापतये नम: ॥५६॥
ॐ हिरण्यरेतसे नम: ॥५७॥
ॐ दुर्द्धर्षाय नम: ॥५८॥
ॐ गिरीशाय नम: ॥५९॥
ॐ गिरिशाय नम: ॥६०॥
ॐ अनधाय नम: ॥६१॥
ॐ भुजङ्गभूषणाय नम: ॥६२॥
ॐ भर्गाय नम: ॥६३॥
ॐ गिरिधन्वने नम: ॥६४॥
ॐ गिरिप्रियाय नम: ॥६५॥
ॐ अष्टमूर्त्तये नम: ॥६६॥
ॐ अनेकात्मने नम: ॥६७॥
ॐ सात्त्विकाय नम: ॥६८॥
ॐ शुभविग्रहाय नम: ॥६९॥
ॐ शाश्वताय नम: ॥७०॥
ॐ खण्डपरशवे नम: ॥७१॥
ॐ अजाय नम: ॥७२॥
ॐ पाशविमोचकाय नम: ॥७३॥
ॐ कृत्तिवाससे नम: ॥७४॥
ॐ पुरारातये नम: ॥७५॥
ॐ भगवते नम: ॥७६॥
ॐ प्रमथाधिपाय नम: ॥७७॥
ॐ मृत्युञ्जजाय नम: ॥७८॥
ॐ सूक्ष्मतनवे नम: ॥७९॥
ॐ जगद्‌त्र्यापिने नम: ॥८०॥
ॐ जगद्‌गुरवे नम: ॥८१॥
ॐ व्योमकेशाय नम: ॥८२॥
ॐ महासेनाय नम: ॥८३॥
ॐ जनकाय नम: ॥८४॥
ॐ चारुविक्रमाय नम: ॥८५॥
ॐ रुद्राय नम: ॥८६॥
ॐ भूतपतये नम: ॥८७॥
ॐ स्थाणवे नम: ॥८८॥
ॐ अहिर्बुध्न्याय नम: ॥८९॥
ॐ दिगम्बराय नम: ॥९०॥
ॐ मृडाय नम: ॥९१॥
ॐ पशुपतये नम: ॥९२॥
ॐ देवाय नम: ॥९३॥
ॐ महादेवाय नम: ॥९४॥
ॐ अव्ययाय नम: ॥९५॥
ॐ हरये नम: ॥९६॥
ॐ पुष्पदन्तभिदे नम: ॥९७॥
ॐ भगनेत्रभिदे नम: ॥९८॥
ॐ अपवर्गप्रदाय नम: ॥९९॥
ॐ अव्यग्राय नम: ॥१००॥
ॐ अव्यक्ताय नम: ॥१०१॥
ॐ अनन्ताय नम: ॥१०२॥
ॐ दक्षाध्वरहराय ॥१०३॥
ॐ सहस्त्राक्षाय नम: ॥१०४॥
ॐ तारकाय नम: ॥१०५॥
ॐ हराय नम: ॥१०६॥
ॐ सहस्त्रपदे नम: ॥१०७॥
ॐ श्रीपरमेश्वराय नम: ॥१०८॥
जो मनुष्य पूरे श्रावण में शिवजी का पूजन, जप-तप, आराधना, भक्ति करता है। वह अवश्य इस लोक में सुख भोग कर शिवलोक को प्राप्त होता है।

सुख -समृद्धि और सफलता मिलती है | आर्थिक सम्पन्नता हेतु नित्य उपयोगी स्वर्णिम सूत्र ================================== कुछ टोटके ,बातें या आदतें ऐसे भी होते हैं जिनका हम यदि नित्य प्रति प्रयोग करें तो अनायास ही हमें शान्ति ,सुख-समृद्धि ,वैभव ,विलासिता मान-सम्मान और अन्य अनेक प्रकार के सुखों की प्राप्ति होने लगता है |....


सुख -समृद्धि और सफलता मिलती है |
आर्थिक सम्पन्नता हेतु नित्य उपयोगी स्वर्णिम सूत्र
==================================
कुछ टोटके ,बातें या आदतें ऐसे भी होते हैं जिनका हम यदि नित्य प्रति प्रयोग करें तो अनायास ही हमें शान्ति ,सुख-समृद्धि ,वैभव ,विलासिता मान-सम्मान और अन्य अनेक प्रकार के सुखों की प्राप्ति होने लगता है |इन नित्य उपयोगी बातों को अपनाने के लिए आपको किसी भी रूप में गंडे-ताबीज अथवा तंत्र -मंत्र -यन्त्र का सहारा लेने की कटाई आवश्यकता नहीं है |आपको तो बस इन स्वर्णिम सूत्रों को अपनी दिनचर्या में शामिल कर लेना है और फिर इन्हें आदत बना लेना है |
१. प्रातः काल सोकर उठने के पश्चात ,सर्वप्रथम अपने दोनों हाथों की हथेलियों को कुछ देर तक देखें ,उन्हें चूमे तथा अपने चेहरे पर तीन-चार बार फेरें |
२. घर के मुख्या द्वार के ऊपर अन्दर तथा बाहर दोनों ही तरफ श्री गणेश जी की मूर्ती या फोटो लगायें तथा प्रतिदिन उन्हें दूर्वा अर्पित करें |
३. सुबह सोकर उठने के बाद नाक के छिद्रों पर एकाग्र हो जानने का प्रयास करें की कौन से नाक से अधिक सांस अन्दर बाहर हो रही है |जिस नाक से अधिक सांस चल रही हो उसी तरफ के पैर को पहले जमीन पर रखें |
४. स्नान करने के बाद "ॐ घ्रिणी सूर्याय आदित्याय ॐ कहते हुए ताम्बे की लुटिया में जल भरकर सूर्य देव को अर्ध्य अर्पित करें |तत्पश्चात ही कोई पूजा उपासना करें |अर्ध्य देते समय ध्यान दें की अर्ध्य का जल आपके पैरों पर न गिरे |नदी स्नान कर रहे हों तो कमर तक जल में अंजुली से ही अर्ध्य दें |
५. घर के पूजा स्थल में सदैव एकाक्षी नारियल रखें |
६. नियमित रूप से हनुमान चालीसा ,हनुमान बाहुक ,हनुमान अष्टक आदि का पाठ करें |
७. बंदरों को चने अथवा फल खिलाएं |इससे हनुमान कृपा प्राप्त होती है |
८. ऋण लेने से सदा बचें ,कर्म और श्रम प्रधान बनें ,सदैव आशावादी रहें |
९. कार्यालय ,दूकान ,शो रूम इत्यादि खोलते समय सर्व प्रथम अपने ईष्टदेव का स्मरण अवश्य किया करें |
१०. बड़ों तथा सत्पुरुषों का सम्मान करें तथा उनको प्रसन्न करके उनका आशीर्वाद लेने से सुख -समृद्धि और सफलता मिलती है |
११. शुभ कार्य हेतु अथवा धन सम्बन्धी या व्यापार कार्य हेतु बाहर निकलने से पूर्व कुछ न कुछ मीठा अथवा दही -शक्कर खाकर ही घर से निकलें ,सफलता बढ़ जायेगी |
१२. श्वेत वस्तुओं का दान करने से महालक्ष्मी की प्रसन्नता होती है ,किन्तु यह दान सुपात्र को ही दें |
१३. सूर्य देव को प्रसन्न करने हेतु उन्हें नियमित रूप से नित्य प्रति लाल पुष्प ,लाल चन्दन ,गोरोचन ,केशर ,जावित्री ,जौ अथवा तिल युक्त जल अर्पित करें |
१४. जहाँ तक संभव हो शनिवार को ही गेहूं पिसवाएं और गेहूं में थोड़े से काले चने मिला कर पिसवाएं |

Tuesday 15 July 2014

आज हम आपको आपके मोबाईल नम्बर से आप की उम्र बताएँगे । विश्वास नहीँ हो रहा है ना ?? ये मजाक नही है, चलो ट्राई कर के देखते हैं ।...............


आज हम आपको आपके मोबाईल नम्बर से आप की उम्र बताएँगे ।
विश्वास नहीँ हो रहा है ना ??
ये मजाक नही है,
चलो ट्राई कर के देखते हैं ।
1- सबसे पहले अपने मोबाईल का आखरी अंक सोँचिये ।
2- अब उसको 2 से गुणा करिये ।
3- अब उसमें 5 जोड़ दीजिये ।
4- अब उसको 50 से गुणा करिये ।
5- अब उसमें 1764 जोड़िये ।
6- अब उसमें अपना जन्मवर्ष घटा दीजिये ।
7- आपको 3 अंक प्राप्त होंगे । इसमें पहला अंक आपके मोबाइल का आखरी अंक है और बचे 2 अंक आप की उम्र है ।

Friday 11 July 2014

भूल के कल की बीती बातें जीवन में आने वाले संघर्षों का सामना उत्साह एवं साहस से ही करना चाहिए ...गीता में भी भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है ....


भूल के कल की बीती बातें
जीवन में आने वाले संघर्षों का सामना उत्साह एवं साहस से ही करना चाहिए ...गीता में भी भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है कि जीवन एक संघर्ष है, एक चुनौती है, एक परीक्षास्थल है, एक रणक्षेत्र है ..जीवन जीना मतलब इसका सामना करना होगा, परीक्षा देनी होगी और संघर्ष तब तक चलेगा जब तक साँस चलेगी.... इसलिये संघर्ष से भागना नहीं स्थिर होकर उसका सामना करना होगा

मंजिल दूर तो है लेकिन, तुम हिम्मत कर के चलो!!
राह मुश्किल हों तो हों, तुम प्यार के रंग भर के चलो!!

जिंदगी तो सुलगती रहती है सदा कशमकश में मगर,
रोज़मर्रा की ज़दोजहद से तुम निकल उभर के चलो!!

कभी समझेगा कोई तेरी उलझनों के तानो-बानो को,
तुम इस ख्याल को अपने ज़ेहन से अलग कर के चलो!!

सुना करते थे के जिंदगी को जिंदादिली का नाम है,
सो तुम सीना तान के जूझो और हों निडर के चलो !!

ग़मों के अंधेरों में उम्मीदों का दिया जलाये रखना,
भूल के कल की बीती बातें, आज को बना संवर के चलो!! 

Wednesday 9 July 2014

1)➤दूसरों की गलतियों से सीखो अपने ही ऊपर प्रयोग करके सीखने को तुम्हारी आयु कम पड़ेगी। 2)➤किसी भी व्यक्ति को बहुत ईमानदार नहीं होना चाहिए। सीधे वृक्ष और व्यक्ति पहले काटे जाते हैं। 3)➤अगर कोई सर्प जहरीला नहीं है तब भी उसे जहरीला दिखना चाहिए वैसे दंश भले ही न दो पर दंश दे सकने....


1)➤दूसरों की गलतियों से सीखो अपने ही ऊपर प्रयोग करके सीखने को तुम्हारी आयु कम पड़ेगी।
2)➤किसी भी व्यक्ति को बहुत ईमानदार नहीं होना चाहिए। सीधे वृक्ष और व्यक्ति पहले काटे जाते हैं।
3)➤अगर कोई सर्प जहरीला नहीं है तब भी उसे जहरीला दिखना चाहिए वैसे दंश भले ही न दो पर दंश दे सकने
की क्षमता का दूसरों को अहसास करवाते रहना चाहिए।
4)➤हर मित्रता के पीछे कोई स्वार्थ जरूर होता है, यह कड़वा सच है।
5)➤कोई भी काम शुरू करने के पहले तीन सवाल अपने आपसे पूछो... मैं ऐसा क्यों करने जा रहा हूँ ? इसका क्या परिणाम होगा ? क्या मैं सफल रहूँगा?
6)➤भय को नजदीक न आने दो अगर यह नजदीक आये इस पर हमला कर दो यानी भय से भागो मत इसका सामना करो।
7)➤दुनिया की सबसे बड़ी ताकत पुरुष का विवेक और
महिला की सुन्दरता है।
8)➤काम का निष्पादन करो, परिणाम से मत डरो।
9)➤सुगंध का प्रसार हवा के रुख का मोहताज़ होता है पर अच्छाई सभी दिशाओं में फैलती है।"
10)➤ईश्वर चित्र में नहीं चरित्र में बसता है अपनी आत्मा को मंदिर बनाओ।
11)➤व्यक्ति अपने आचरण से महान होता है जन्म से नहीं।
12)➤ऐसे व्यक्ति जो आपके स्तर से ऊपर या नीचे के हैं उन्हें दोस्त न बनाओ,वह तुम्हारे कष्ट का कारण बनेगे। समान स्तर के मित्र ही सुखदायक होते हैं।
13)➤अपने बच्चों को पहले पांच साल तक खूब प्यार करो। छः साल से पंद्रह साल तक कठोर अनुशासन और संस्कार दो। सोलह साल से उनके साथ मित्रवत व्यवहार करो। आपकी संतति ही आपकी सबसे अच्छी मित्र है।"
14)➤अज्ञानी के लिए किताबें और अंधे के लिए दर्पण एक समान उपयोगी है।
15)➤शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। शिक्षित व्यक्ति सदैव सम्मान पाता है। शिक्षा की शक्ति के आगे युवा शक्ति और सौंदर्य
दोनों ही कमजोर है।

Saturday 5 July 2014

आप जिस स्थिति में रहते हैं हमारे जन्म का क्या प्रयोजन है ? हम क्यों जन्में ? - इस तरह बार - बार विचार करें और यह भी सोचें कि क्या उस प्रयोजन की प्राप्ति हो सकती है ? हमें पाप क्यों लगता है ? काम - क्रोध आदि क्यों होते हैं ? ....................


आप जिस स्थिति में रहते हैं
 हमारे जन्म का क्या प्रयोजन है ? हम क्यों जन्में ? - इस तरह बार - बार विचार करें और यह भी सोचें कि क्या उस प्रयोजन की प्राप्ति हो सकती है ? हमें पाप क्यों लगता है ? काम - क्रोध आदि क्यों होते हैं ? निरन्तर आनन्द और प्रसन्न क्यों नहीं रहते? हमें इन प्रश्नों का कोई जवाब नहीं मिलता ।
इसलिये यह समझना चाहिये कि ये सभी हमारे हित के हैं । मान लीजिये , एक पेड़ है । उसके फूल से फल लगते हैं । फूल फूलता , तो उसमें महक आती है , वह नाक का विषय बनता है । फलता , तो उसमें स्वाद आता है ।
स्वाद आने के पहले फूल की क्या हालत है ? फूल में कडुआ है , कच्चे में खट्टा है और फल में मीठा है । यही मीठा शान्ति है । शान्ति के आने पर सभी इच्छाएँ छूट जाती हैं । जैसे फूल में मधुरता पूर्ण रूप से आने पर वह नीचे गिर पड़ता है , यह तो स्वाभाविक है । उसी प्रकार हृदय में माधुर्य पूर्ण रूप से भर जाय , तो सारी आसक्तियाँ अपने - आप मिट जाती है । जब तक खट्टा है , तब तक आसक्ति है । कच्चे को तोड़ने से उसके कांण अर्थात् डन्टल से पानी टपकता है । तात्पर्य है कि पेड़ कच्चे को न छोड़ना चाहता है और न कच्चे भी पेड से अलग होने को । अतएव पूर्णरूप से स्वाद के भर आने पर आसक्ति स्वयं मिट जाती है तथा फल अपने - आप गिर जाता है । पेड़ भी फल छोड़ देता है । जलरहित होने से दोनों राजी पड़ते हैँ । अर्थात् बिना दुःख के आनन्द से अलग हो जाता है । इस क्रम से उन्नति करने पर मन पूर्णतया माधुर्यमय बनता है । इस स्थिति में हर व्यक्ति प्रसन्नता से संसार रूपी वृक्ष से अनायास मुक्त हो जाता है । फल के पकने से पहले अर्थात् प्रारंभिक दशा में जैसे कडुवा और खट्टा वश्य होता है , वैसे ही काम - क्रोध , तनाव - उद्वेग आदि का होना स्वाभाविक है । इससे स्पष्ट होता है कि प्रारम्भिक दशा में एक दूसरे से मुक्त होने में राजी नहीं होते । परन्तु यह विचार करें कि कौतूहल , आसक्ति , क्रोध , मान - बडाई आदि क्यों होती ? उनसे क्या उपयोग है ? इस तरह यदि हम विचार न करें , तो वे हमें ठगाने का प्रयास करेंगे और हम भी उनसे ठगे जायेंगे । विचार करना जरा !
परन्तु बात है कि उसी स्थिति में टिके न रहें , जैसे कच्चा फलदार होता है , वैसे ही हमें भी आगे बढ़ते हुए प्रेम और शान्ति की भावना में प्रवृत्त होना चाहिए । इस प्रकार के अभ्यास करने पर हमें और कहीं मोक्ष - वोक्ष को ढूँढ़ने की जरूरत नहीं होती । जिस समय जैसा कर्म का पालन करना चाहिए , उसे दायित्वपूर्वक निभाते आवें , तो स्वतः मोक्ष रूप माधुर्य समाविष्ट हो जाता है । ऐसा न करके , यदि अपूर्णावस्था में प्रयत्न करे , तो वह कच्चे में पकने की स्थिति है , जिससे स्वाद पूर्णतया नहीं आता और प्रयोजनकारी न हो जाता है ।
 आज हम - आप जिस स्थिति में रहते हैं , उसी पर टिके रहना उचित नहीं । हमारे कर्त्तव्य - कर्म ढ़ेर - के - ढ़ेर है । उन्हें पूर्ण करने में अग्रसर होना चाहिए । इस स्थिति मेँ हमें परम ज्ञान की प्राप्ति के लिए न अधिक प्रयास करें और न तड़पते रहें । परम - ज्ञान की प्राप्ति की खोज में कहीं नहीं निकलना भी चाहिए । यह निश्चय कर लें कि यदि वह इस जन्म में न प्राप्त होता , तो अगले जन्मों में सही मिल जायेगा । अतः उसकी चिन्ता छोड़ अपने कर्तव्य - कर्मो का आचरण करें । वेद - निधि के अनुसार धर्माचरण करें । फलतः ज्ञान अवश्य क्रमरूप में समुद्भूत हो जाता है । हम अपने सांप्रदायिक एवं धार्मिक विचारों से ओतप्रोत बाह्य आचरण भी क्यों न हो , उन्हीं से प्रारम्भ करें तथा क्रमिक विकास से , अर्थात् कच्चे से फलदार की ओर अग्रसर होकर आन्तरिक तत्त्वों को ग्रहण करने में सक्षम हो जायेंगे ।

Friday 4 July 2014

वशीकरण मंत्र सिद्द शाबर वशीकरण मंत्र .........................


वशीकरण मंत्र
सिद्द शाबर वशीकरण मंत्र

एक नमक रमता माता
दूसरा नमक विरह से आता
तीसरा नमक ओरी बोरी
चोथा नमक रहे कर जोरी
यहाँ नमक 1----------- खाए
२--------को छोड़ दूसरा नहीं जाए
दुहाई पीर औलिया की
जो कहे सो सुने जो मांगे सो देय
दुहाई गौरा पार्वती की
दुहाई कामाख्या देवी की 
दुहाई गुरु गोरखनाथ की |

थोडा सा नामक लेकर इस मन्त्र का २१ बार पाठ करके किसी खाने पिने की वस्तु में मिलाकर देने से वाशिकर्ण हो जाता है 
१ जाहा लिखा है वंहा जिसको खिलाना हो उसका नाम बोले
२ जंहा लिखा है वंहा अपना नाम बोले

Tuesday 1 July 2014

मंत्र जो शुगर और कैंसर का काल है आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने चाहे जितनी प्रगति कर ली हो, पर बीमारियों पर नियंत्रण का उसका सपना आज तक अधूरा है। आंकड़े तो यहां तक बयान करते हैं कि दवाओं के अनुपात में रोगों की वृद्धि अधिक तेजी से हो रही है।....

मंत्र जो शुगर और कैंसर का काल है
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने चाहे जितनी प्रगति कर ली हो, पर बीमारियों पर नियंत्रण का उसका सपना आज तक अधूरा है। आंकड़े तो यहां तक बयान करते हैं कि दवाओं के अनुपात में रोगों की वृद्धि अधिक तेजी से हो रही है। किन्तु ऐसी विकट स्थिति में भी निराश होने की आवश्यकता नहीं है। प्राचीन समय में भारत में यंत्र-तंत्र और मंत्र के रूप में एक ऐसे विज्ञान का प्रचलन रहा है, जो बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारी है। आज जिन बीमारियों को लाइलाज माना जा रहा है, उनका मंत्रों के द्वारा स्थाई निवारण संभव है। तो आइये जाने ऐसे ही कुछ दुर्लभ और गुप्त मंत्र-
कैंसर रोग: कैंसर के रोगी इंसान को नीचे दिये गए सूर्य गायत्री मंत्र का प्रतिदिन कम से कम पांच माला और अधिक से अधिक आठ माला जप, नियम पूर्वक एवं पूरी श्रृद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिये। इसके अतिरिक्त दूध में तुलसी की पत्ती का रस मिलाकर पीना चाहिए। सूर्य-गायत्री का का जप एक अभेद्य कवच का काम करता है-
सूर्य गायत्री मंत्र - :ॐ भास्कराय विद्यहे, दिवाकराय च धींमहि, तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।
मधुमेह रोग: मधुमेह यानि कि शुगर की बीमारी से छुटकारा पाने के लिये नौ दिन तक रुद्राक्ष की माला से आगे दिये गए निम्र मंत्र का 5 माला जप करें।
मंत्र - ॐ हौं जूँ सा ॐ