Advt

Monday 30 June 2014

सारे काम इस से हो सकते हे प्रथम ..जब कोई जटिल काम हो जो न हो रहा हो तो ..आप जो बताया जा रहा हे उसे आजमा कर अनुभव ले ...जब आप सुबह उठे तो उठते बराबर सर्वप्रथम अपने दोनों हथेलियों को अपने चेहरे पर से उतार कर एक साथ जोड़ कर देखे ..

सारे काम इस से हो सकते हे
प्रथम ..जब कोई जटिल काम हो जो न हो रहा हो तो ..आप जो बताया जा रहा हे उसे आजमा कर अनुभव ले ...जब आप सुबह उठे तो उठते बराबर सर्वप्रथम अपने दोनों हथेलियों को अपने चेहरे पर से उतार कर एक साथ जोड़ कर देखे ..फिर बिना हिले किसी से एक गिलास पानी मंग ले या रात को ही पास में रख ले क्यों की जब तक यह प्रयोग ना हो जाए तब तक किसी से बात नहीं करना हे मौन व्रत रखना हे . फिर उसमे से एक घूँट पानी जितना मुंह में आ सकता हे पिए लेकिन उसे निगले याने गले के निचे नहीं उतारे मुंह में ही रखे और जो काम करवाना हे या जो आपकी मन की इच्छा हे उसे कम से कम पांच बार दोहराए और जो देवता को आप मानते हे उनसे प्रार्थना करे ...इस दौरान आप नाक से सांस ले सकते हे .. ...और हां यह क्रिया होने के बाद आप पानी को गले के निचे उतार ले आहिस्ता आहिस्ता और फिर अपने दोनों पैरो के अंगूठे को क्रॉस याने दाहिने हाथ से बाया पैर और बाये हाथ से दाया पैर इस प्रकार छू कर अपने ललाट को स्पर्श कर उठे ...यह प्रयोग कभीसे भी शुरू कर सकते हे ...!यह प्रयोग जब तक कार्य सिद्ध ना हो तब तक याने की उतने दिनों तक .करें!
द्वितीय ....एक मंत्र हे जो बड़ा ही चमत्कारी हे इससे जेसा आप चाह रहे हे वेसा होगा पर न्यायोचित कार्य ही ...वो हे " चिमी चिमी" यह एक जादुई मंत्र हे किसी से मिलना हो वो नहीं मिल रहा हे तो घर से निकलने से लेकर उससे मिलने तक ..यह मंत्र जाप करे ..कोई गलत फहमी हो तो इसका जाप करे और मन ही मन दोहराएँ की गफलत दूर हो वो मुझे मिल जाए आदि ..याने जो कठिन लगे वो सारे काम इस से हो सकते हे ...!!
* ध्यान रहे एक बार में एक ही काम ..जब तक वो पूरा न हो दूसरा काम ना कहे ..
इन सब के अलावा एक चमत्कारी वस्तू हे "काली राई " जो हमारे रसोई घर में मसाले के डिब्बे में होती हे उसे ही एक पुडिया में रख कर घर से निकले और निकलते वक्त मेरा फलां काम सिद्ध हो ऐसा कह कर एक चुटूकी दरवाजे से निकलते वक्त गिरा कर जाएँ और जहाँ जाएं वहां भी द्वार पर गिरा दे तो अनुकूल परिस्थिति बन जाती हे और कई बार तो तुरंत ही चमत्कारी अनुभव आते हे ..
वेसे तो यह सिद्ध कर के देते हे पर मसाले के डिब्बे की भी चमत्कारी असर दिखाती हे बशर्ते श्रद्धा पूर्वक की जाए हो सकता हे एक दो बार शुरुआत में अनुभव न आये पर ५ से ७ बार में खुद ब खुद ही आता हे ..ऐसा लोगो को अनुभव आया हे जिसके आधार पर कहा जा रहा हे

आप सभी के लिए आज के जीवन में यही क्यों मेरा भाई हैं या मेरे निकटस्थ होते हुआ भी इनके प्रति मेरे स्नेह सम्बन्ध क्यों नहीं हैं , क्यों दूरस्थ होता हुआ भी व्यक्ति अपना सा लगता हैं, क्यों इतनी गरीबी या शरीर में इतने रोग हैं ...

आप सभी के लिए
आज के जीवन में यही क्यों मेरा भाई हैं या मेरे निकटस्थ होते हुआ भी इनके प्रति मेरे स्नेह सम्बन्ध क्यों नहीं हैं , क्यों दूरस्थ होता हुआ भी व्यक्ति अपना सा लगता हैं, क्यों इतनी गरीबी या शरीर में इतने रोग हैं आदि आदि अनेक प्रश्नों के उत्तर भी मिल जाते हैं ,
क्या इस जीवन में जो गुरु हैं या सदगुरुदेव हैं क्या वह विगत जीवन में भी या उससे भी पहले के जीवन से जुड़े हैं और क्या कारण था की /और कहाँ से संपर्क टुटा , सब तो इस पूर्व जीवन दर्शन से संभव हैं,
आजकल अनेको प्रविधिया विकसित हैं ध्यानके माध्यमसे व्यक्ति धीरे धीरे पीछे जा सकता हैं पर ठीक बाल्य काल की ४ वर्ष कि आयु से पहले जाना बहुत ही कठिन हैं , इस अवरोध को पास करना कठिन हैं .
सम्मोहन भी एक विधा हैं पर उसके लिए उच्चस्तरीय सम्मोहनकर्ता होना चाहिए , साथ ही साथ मानव मस्तिष्क इतना शक्तिशाली हैं की वह जो नहीं हैं वह भी आपको दिखा सकता हैं , इन तथ्योंको जांच करना जरुरी हैं .
साधना क्षेत्र में भी अनेको साधनाए हैं पर सभी इतनी क्लिष्ट हैं इन सभी को ध्यान में रखते हुए एक सरल प्रभाव दायक साधना आप सभी के लिए ..
मन्त्र :
क्लीं पूर्वजन्म दर्शनाय फट्
सामान्य साधनात्मक नियम :

· जप में काले रंग की हकीक माला का उपयोग करें
· साधना बुध वार से प्रारंभ करसकते हैं
· जप काल में दिशा दक्षिण रहेगी
· साधन काल में धारण किये जाने वाले वस्त्र और आसन लाल रंग के होंगे
· धृत के दीपक को देखते हुए रात्रि काल १० बजे के बाद(10PM) मे 31 माला मन्त्र जप होना चाहिए
· यह क्रम ११ दिन तक चले अर्थात कुल ११ दिन तक साधना चलनी चाहिए .
सफलता पूर्वक होने पर आपको स्वप्न या तन्द्रा अवस्था मे पूर्व जन्म सबंधित द्रश्य दिखाई देते है. जिनके माध्यम से आपके जीवन की अनेक रहस्य खुलती जाती हैं.

कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र माँ दुर्गा के लोक कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र 1. सब प्रकार के कल्याण के लिये......................

कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र

माँ दुर्गा के लोक कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र ..................

1. सब प्रकार के कल्याण के लिये
“सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१०)

अर्थ :- नारायणी! तुम सब प्रकार का मङ्गल प्रदान करनेवाली मङ्गलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।

2. दारिद्र्य-दु:खादिनाश के लिये

“दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता॥” (अ॰४,श्लो॰१७)

अर्थ :- माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दु:ख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिये सदा ही दया‌र्द्र रहता हो।

3॰ बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये
“सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥” (अ॰१२,श्लो॰१३)

अर्थ :- मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा- इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

4॰ बन्दी को जेल से छुड़ाने हेतु
“राज्ञा क्रुद्धेन चाज्ञप्तो वध्यो बन्धगतोऽपि वा।
आघूर्णितो वा वातेन स्थितः पोते महार्णवे।।” (अ॰१२, श्लो॰२७)

5॰ संतान प्राप्ति हेतु
“नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भ सम्भवा।
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी” (अ॰११, श्लो॰४२)
6॰ अचानक आये हुए संकट को दूर करने हेतु
“ॐ इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति।
तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम्ॐ।।” (अ॰११, श्लो॰५५)

7॰ बाधा शान्ति के लिये
“सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥” (अ॰११, श्लो॰३८)

अर्थ :- सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।

8॰ सुलक्षणा पत्‍‌नी की प्राप्ति के लिये

पत्‍‌नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥

अर्थ :- मन की इच्छा के अनुसार चलनेवाली मनोहर पत्‍‌नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसारसागर से तारनेवाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो।

9॰ भय नाश के लिये
“सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्।
पातु न: सर्वभीतिभ्य: कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥
ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥ ” (अ॰११, श्लो॰ २४,२५,२६)

अर्थ :- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्ति यों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है। कात्यायनी! यह तीन लोचनों से विभूषित तुम्हारा सौम्य मुख सब प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करे। तुम्हें नमस्कार है। भद्रकाली! ज्वालाओं के कारण विकराल प्रतीत होनेवाला, अत्यन्त भयंकर और समस्त असुरों का संहार करनेवाला तुम्हारा त्रिशूल भय से हमें बचाये। तुम्हें नमस्कार है।

10॰ आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

अर्थ :- मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

11॰ विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥

अर्थ :- शरणागत की पीडा दूर करनेवाली देवि! हमपर प्रसन्न होओ। सम्पूर्ण जगत् की माता! प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरि! विश्व की रक्षा करो। देवि! तुम्हीं चराचर जगत् की अधीश्वरी हो।

12॰ प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव॥

अर्थ :- विश्व की पीडा दूर करनेवाली देवि! हम तुम्हारे चरणों पर पडे हुए हैं, हमपर प्रसन्न होओ। त्रिलोकनिवासियों की पूजनीया परमेश्वरि! सब लोगों को वरदान दो।

13॰ महामारी नाश के लिये
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

अर्थ :- जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो।

14॰ रोग नाश के लिये
“रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥” (अ॰११, श्लो॰ २९)

अर्थ :- देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवाञ्छित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं।

15॰ विपत्ति नाश के लिये
“शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१२)

अर्थ :- शरण में आये हुए दीनों एवं पीडितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीडा दूर करनेवाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है।

16. विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिये
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी
शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:।

अर्थ :- वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मङ्गल करे तथा सारी आपत्तियों का नाश कर डाले।

17॰ भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिये
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

18॰ पापनाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिये
नतेभ्यः सर्वदा भक्तया चण्डिके दुरितापहे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

19 स्वप्न में सिद्धि-असिद्धि जानने के लिये

दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय॥

20॰ प्रबल आकर्षण हेतु
“ॐ महामायां हरेश्चैषा तया संमोह्यते जगत्,
ज्ञानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।” (अ॰१, श्लो॰५५)

 कार्य सिद्धि के लिये स्वतंत्र रुप से भी इनका पुरश्चरण किया जा सकता है।

Saturday 28 June 2014

रोगों में भी गजब काम करता है। इलाज रामबाण जो करने मे आसान बाजार में सैकडों दर्द निवारक तेल बिक रहे हैं और किस तेल का कितना असर है कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं ऐसे में परेशान होने की जरूरत नहीं.....

रोगों में भी गजब काम करता है।
इलाज रामबाण जो करने मे आसान
बाजार में सैकडों दर्द निवारक तेल बिक रहे हैं और किस तेल का कितना असर है कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं ऐसे में परेशान होने की जरूरत नहीं, आप खुद ही घर पर बैठकर एक अच्छा दर्द निवारक तेल तैयार कर सकते हैं। आदिवासियों के ज्ञान पर आधारित इस नुस्खे के क्लिनिकल प्रमाण भी चौंकाने वाले हैं।
काली उडद (करीब 10 ग्राम), बारीक पीसा हुआ अदरक (4 ग्राम) और पिसा हुआ कर्पूर (2 ग्राम) को खाने के तेल (50 मिली) में 5 मिनिट तक गर्म किया जाए और इसे छानकर तेल अलग कर लिया जाए।
जब तेल गुनगुना हो जाए तो इस तेल से दर्द वाले हिस्सों या जोड़ों की मालिश, जल्द ही दर्द में तेजी से आराम मिलता है, ऐसा दिन में 2 से 3 बार किया जाना चाहिए। यह तेल आर्थरायटिस जैसे दर्दकारक रोगों में भी गजब काम करता है।

Thursday 26 June 2014

बिमारियों का नाशक है हठयोगप्रदीपिका पश्चिमासन..............

बिमारियों का नाशक है

हठयोगप्रदीपिका

पश्चिमासन

१. पैरों को जमीन पर सीधा कर के (साथ साथ लंबे रख करे), जब दोनो हाथों से पैरों की उँगलीयाँ पकडी जायें और सिर को पट्टों पर रखा जाये, तो उसे पश्चिम तन आसन कहते हैं । इस आसन से शरीर के अन्दर की हवा आगे से शरीर के पीछे के भाग की तरफ जाती है । इस से gastric fire को बढावा मिलता है, मोटापा कम होता है और मनुष्य की सभी बिमारियां ठीक होती हैं । (यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण आसन है)

मयुरासन

१. हाथों के तलवों को जमीन पर रखें और अपनी elbows को साथ साथ लायें । फिर पेट की धुन्नि (navel) को अपनी elbows के ऊपर रखें और इस प्रकार अपने भार को हाथों (elbows) पर टिकाते हुये, शरीर को डंडे के समान सीधा करें । इसे म्यूर आसन कहते हैं ।
२. इस आसन से जल्द ही सभी बिमारियां नष्ट हो जाती हैं, पेट के रोग मिट जाते हैं, और बलगम, bile, हवा आदि के विकारों को दूर करता है, भूख बढाता है और खतरनाख जहर का अन्त करता है ।

सेवासन

१. धरती पर मृत के समान लंबा लेटना, इसे शव आसन कहा जाता है । इस से थकावट दूर होती है और मन को आराम मिलता है ।
२. इस प्रकार भगवान शिवजी नें ८४ मुख्य आसन बताये हैं । लेकिन उन में से पहले चार सबसे जरूरी हैं । यहां मैं उन का वर्णन करता हूँ ।
३. ये चार हैं – सिद्धासन, पद्मासन, सिंहासन और भद्रासन । इन में से भी सिद्धासन बहुत सुखदायी है – इसका सदा अभ्यास करना चाहिये ।

सिद्धासन

१. अपने दायें पैर की एडी को अपने perineum (लिंग के नीचे की हड्डी) के साथ अच्छे से लगायें, और अपने दूसरी ऐडी को अपने लिंग के उपर रखें । अपनी ठोडी (chin) को अपनी छाती से लगायें और शान्ति से बैठें । अपनी इन्द्रियों को संयम कर, अपने माथे के बिच (eyebrows) की तरफ एक टक देखें । इसे सिद्धासन कहा जाता है – जो मुक्ति का द्वार खोलता है ।
२. इसे अपने दायने पैर को अपने लिंग (penis) के उपर और बायें को उसके साथ रख कर भी किया जा सकता है ।
३. कुछ लोग इसे सिद्धासन कहते हैं, कुछ वज्रासन भी कहते हैं । दूसरे कुछ लोग इसे मुक्तासन या गुप्तासन भी कहते हैं ।
४. जैसे कम खाना यमों में पहला यम है, और जैसे अहिंसा (किसी भी प्राणी की हिंसा न करना) पहला नियम है, उसी प्रकार ऋषियों ने सिद्धासन को सभी आसनों में प्रमुख बताया है ।
५. ८४ आसनों में सिद्धासन का सदा अभ्यास करना चाहिये क्योंकि यह ७२००० नाडियों को शुद्ध करता है ।
६. स्वयं पर ध्यान करते हुये, कम खाते हुये, और सिद्धासन का बारह वर्ष तक अभ्यास कर योगी सफलता प्राप्त कर लेता है ।
७. जब सिद्धासन में सफलता प्राप्त हो चुकी हो, और केवल-कुम्भक द्वारा प्राण वायु शान्त और नियमित हो चुकी हो, तो दूसरे किसी आसन की कोई आवश्यकता नहीं है ।
८. केवल सिद्धासन में ही अच्छी तरह स्थिर हो जाने से मनुष्य को उन्मनी प्राप्त हो जाती है और तीनो बंध भी स्वयं ही पूर्ण हो जाते हैं ।
९. सिद्धासन जैसा कोई आसन नहीं है, और ‘केवल’ जैसा कोई कुम्भक नहीं है । केचरी जैसी कोई मुद्रा नहीं है, और नाद (अनहत नाद) जैसी कोई लय नहीं है ।

पद्मासन

१. अपने दायें पैर को अपने बायें पट्ट पर रख कर, और बायें पैर को अपने दायें पट्ट पर रख कर, अपने हाथों को पीछे से ले जाकर पैरों की उंगलीयों को पकड कर बैठना । फिर अपनी ठोडी को छाती से लगाना और अपने नाक के अगले भाग की तरफ देखना । इसे पद्मासन कहा जाता है, यह साधक की बिमारियों का नाशक है ।
२. अपने पैरों को पट्टों पर रख कर, पैरों के तलवे ऊपर की ओर, और हाथों को पट्टों पर रख कर, हाथों के तलवो भी ऊपर की ओर ।
३. नाक के अगले भाग की तरफ देखते हुये, अपनी जीभ को ऊपर के दाँतों की जड पर टीका कर, और ठोडी को छाती के साथ लगाते हुये, धीरे से हवा को ऊपर की ओर खींच कर ।
४. इसे पद्मासन कहा जाता है, यह सभी बिमारियों का नाशक है । यह सब के लिये प्राप्त करना कठिन है, लेकिन समझदार लोग इसे सीख सकते हैं ।
५. दोनो हाथों को अपनी गोदी में साथ साथ रख कर, पद्मासन करते हुये, अपनी ठोडी को छाती से लगा कर, और भगवान पर ध्यान करते, अपनी अपान वायु को ऊपर का तरफ खीचते, और फिर साँस लेने के बाद नीचे को धकेलते – इस प्रकार प्राण और अपान को पेट में मिलाते, योगी परम बुद्धि को प्राप्त करता है शक्ति के जागने के कारण ।
६. जो योगी, इस प्रकार पद्मासन में बैठे, अपनी साँस पर काबू पा लेता है, वह बंधन मुक्त है, इस में कोई शक नहीं है ।

सिंहासन

१. दोनो ऐडीयों को अपने लिंग के नीचे वाली हड्डी से लगा कर ।
२. अपने हाथों को अपने पट्टों पर रख कर, अपने मूँह को खुला रख कर, और अपने मन को संयमित कर, नाक के आगे वाले भाग की तरफ देखते हुये ।
३. यह सिंहासन है, जिसे महान योगी पवित्र मानते हैं । यह आसन तीन बंधों की पूर्ति में सहायक होता है ।

भद्रासन

१. दोनो ऐडीयों को अपने लिंग के नीचे वाली हड्डि से लगा कर (keeping the left heel on the left side and the right one on the right side), पैरों को हाथों से पकड कर एक दूसरे से अच्छे से जोड कर बैठना । इसे भद्रासन कहा जाता है । इस से भी सभी बिमारियों का अन्त होता है ।
२. योग ज्ञाता इसे गोरक्षासन कहते हैं । इस आसन में बैठने से थकावट दूर होती है ।
३. यह आसनों का वर्णन था । नाडियों को मुद्राओं, आसनों, कुम्भक आदि द्वारा शुद्ध करना चाहिये ।
४. नाद पर बारीकी से ध्यान देने से, ब्रह्मचारी, कम खाता और अपनी इन्द्रियों को नियमित करता, योग का पालन करता हुआ सफलता को एक ही साल में प्राप्त कर लेता है – इस में कोई शक नहीं ।
५. सही खाना वह है, जिस में अच्छे से पके, घी और शक्कर वाले खाने से, भगवान शिव को अर्पित करने के पश्चात खाकर ¾ भूख ही मिटाई जाये ।

चन्द्र+शनि = दुःख। मानसिक तनाव। नज़र की खराबी। माता तथा धन के लिए ठीक नहीं। हर काम में रूकावट। गरीबी। शराबी। उदास ,सन्यासी। स्त्री सुख में कमी। . चन्द्र+राहू = पानी से डर। शरीर पर दाग। विदेश यात्रा। जिस भाव में स्थित हो उसकी हानी। ....

चन्द्र+शनि = दुःख। मानसिक तनाव। नज़र की खराबी। माता तथा धन के लिए ठीक नहीं। हर काम में रूकावट। गरीबी। शराबी। उदास ,सन्यासी। स्त्री सुख में कमी।
. चन्द्र+राहू = पानी से डर। शरीर पर दाग। विदेश यात्रा। जिस भाव में स्थित हो उसकी हानी।
. चन्द्र+केतू=विद्या में रूकावट। मूत्र वीकार। जोड़ों में दर्द। केमिष्ट।
 मंगल+शनि = दुर्घटना। इंजीनियर। डॉक्टर। भाइयों से अनबन। धन संग्रह में रूकावट। चमड़ी तथा खून में वीकार। साहसिक कार्यों में सफलता। धन-दौलत चोरी। डाकू। ड्राइवर। सरकारी अधिकारी।
. मंगल+बुध=साहसिक कार्यो से लाभ। बुद्धी और साहस का योग। खोजी निगाह। स्पष्ट वक्ता। इंजीनियर। डाक्टर। दुर्घटना आदि।               सूर्य+शनि =पिता-पुत्र में बिगाड़ अथवा जुदाई। युवावस्था में संकट, राज दरबार बुरा। स्वास्थ कमजोर। पिता की मृत्यु , गरीबी। घरेलू अशांति। पत्नी का स्वास्थ कमजोर।
 सूर्य+राहू =सरकारी नौकरी में परेशानी। चमड़ी पर दाग , खर्च हो। घरेलू अशांति , परिवार की बदनामी का डर। श्वसुर की धन की स्थिति कमजोर। सूर्य को ग्रहण।
 सूर्य+केतू=सरकारी काम अथवा सरकारी नौकरी में उतार-चढ़ाव। संतान का फल बुरा।
 चन्द्रमा+मंगल=मन की स्थिति डांवाडोल। दुर्घटना। साहसिक कामों से धन लाभ। उत्तम धन।
. चन्द्र+बुध=उत्तम वक्ता। बुद्धिमत्ता। लेखन शक्ति। गहन चिंतन। स्वास्थ में गड़बड़। दो विवाह योग। मानसिक असंतुलन।
. चन्द्र+गुरू= उत्तम स्थिति। धन प्राप्ति। बैंक में अधिकारी। उच्च पद। मान-सम्मान। धनी। यदि पाप दृष्टी हो तो विद्द्या में रूकावट।
 चन्द्र+शुक्र=दो विवाह योग। अन्य स्त्री से सम्बन्ध। विलासी। शान-शौकत का प्रेमी। रात का सुख।

सुखी जीवन के अनमोल उपाय ..............

सुखी जीवन के अनमोल उपाय
१) जब भी बाहर से घर आए कुछ ना कुछ लेकर ही आए खाली हाथ कभी घर ना आए चाहे अखबार ही लाये|
२) भोजन के लिए बनी पहली रोटी गाय को खिलाये|
३) हर तीन माह में चींटियों हेतु सूखे नारियल में खांड आदि भरकर किसी वृक्ष के नीचे आधा दबाकर आये|
४) प्रात : काल नाश्ते से पूर्व झाडू अवश्य लगाये व रात को झूठे बर्तन रसोई में ना रखे|
५) संध्या से पूर्व घर पर पूजा प्रतिदिन नियत समय पर करे|
६) खाली पेट कभी भी घर से ना निकले|
७)धन सम्बन्धी कार्य सोमवार व बुधवार को करे, बैंक जाते समय लक्ष्मी का कोई भी मंत्र जपा करे|
८) घर के कुलदेवता की नित्य पूजा करे व उन्हें प्रसाद (भोग) अवश्य अर्पण करे|
९)किसी भी देवी देवता की एक से ज्यादा तस्वीर,मूर्ति पूजा घर पर ना रखे|
१०)यथासक्ति गरीबो,असहाय, व्यक्तियों की मदद करे उन्हें दान इत्यादि दिया करे|
११) सभी रिश्तेदारों का सम्मान करे ,संबंध बनाकर रखे बिगाडे नही बेशक लड़ाई होती हो|
१२) शनिवार को ही घर की साफ़ सफाई का नियम बनाए |
१३) सफ़ेद वस्तुए हर माह दान किया करे |
१४) काली हल्दी शुभ मुहूर्त में अपने गल्ले में रखे |
१५) प्रतिदिन सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ अवस्य पढ़े |
१६) रुपया पैसा कभी भी थूक लगाकर ना गिने |
१७) साबुत फिटकरी घर या दूकान के बाहर टाँगे |
१८) अपने जन्मदिन के दिन १० अंधे व्यक्तियों को भोजन कराया करे|
१९) प्रातः उठते ही हस्तदर्शन किया करे फ़िर दोनों हथेलियों को चूमकर मुख्मार्जन किया करे|
२०) किसी भी समारोह जो शुक्रवार को हो उसमे शामिल ना हो तथा काले रंग की वस्तुए ,लोहा आदि शनिवार को ना ले|
२१) घर में प्रतिदिन पानी में नमक डालकर पौंछा लगाया करे और पानी में गंगाजल मिला कर स्नान किया करे|
२२) शनिवार को नाखून व मंगलवार को बाल ना कटाया करे|
२३) सोने के आभूषण पीले कपड़े में लपेटकर रखा करे|
२४) घर की महिला सदस्यों का अपमान कभी ना करे|
२५) तीर्थ इत्यादि की यात्रा करते रहे|
१) जब भी बाहर से घर आए कुछ ना कुछ लेकर ही आए खाली हाथ कभी घर ना आए चाहे अखबार ही लाये|
२) भोजन के लिए बनी पहली रोटी गाय को खिलाये|
३) हर तीन माह में चींटियों हेतु सूखे नारियल में खांड आदि भरकर किसी वृक्ष के नीचे आधा दबाकर आये|
४) प्रात : काल नाश्ते से पूर्व झाडू अवश्य लगाये व रात को झूठे बर्तन रसोई में ना रखे|
५) संध्या से पूर्व घर पर पूजा प्रतिदिन नियत समय पर करे|
६) खाली पेट कभी भी घर से ना निकले|
७)धन सम्बन्धी कार्य सोमवार व बुधवार को करे, बैंक जाते समय लक्ष्मी का कोई भी मंत्र जपा करे|
८) घर के कुलदेवता की नित्य पूजा करे व उन्हें प्रसाद (भोग) अवश्य अर्पण करे|
९)किसी भी देवी देवता की एक से ज्यादा तस्वीर,मूर्ति पूजा घर पर ना रखे|
१०)यथासक्ति गरीबो,असहाय, व्यक्तियों की मदद करे उन्हें दान इत्यादि दिया करे|
११) सभी रिश्तेदारों का सम्मान करे ,संबंध बनाकर रखे बिगाडे नही बेशक लड़ाई होती हो|
१२) शनिवार को ही घर की साफ़ सफाई का नियम बनाए |
१३) सफ़ेद वस्तुए हर माह दान किया करे |
१४) काली हल्दी शुभ मुहूर्त में अपने गल्ले में रखे |
१५) प्रतिदिन सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ अवस्य पढ़े |
१६) रुपया पैसा कभी भी थूक लगाकर ना गिने |
१७) साबुत फिटकरी घर या दूकान के बाहर टाँगे |
१८) अपने जन्मदिन के दिन १० अंधे व्यक्तियों को भोजन कराया करे|
१९) प्रातः उठते ही हस्तदर्शन किया करे फ़िर दोनों हथेलियों को चूमकर मुख्मार्जन किया करे|
२०) किसी भी समारोह जो शुक्रवार को हो उसमे शामिल ना हो तथा काले रंग की वस्तुए ,लोहा आदि शनिवार को ना ले|
२१) घर में प्रतिदिन पानी में नमक डालकर पौंछा लगाया करे और पानी में गंगाजल मिला कर स्नान किया करे|
२२) शनिवार को नाखून व मंगलवार को बाल ना कटाया करे|
२३) सोने के आभूषण पीले कपड़े में लपेटकर रखा करे|
२४) घर की महिला सदस्यों का अपमान कभी ना करे|
२५) तीर्थ इत्यादि की यात्रा करते रहे|

स्वप्न में अपना उत्तर मिल जाता है स्वप्न के माध्यम से अपने किसी भी प्रकार के प्रश्नों का समाधान प्राप्त हो सकता है.....

स्वप्न में अपना उत्तर मिल जाता है
स्वप्न के माध्यम से अपने किसी भी प्रकार के प्रश्नों का समाधान प्राप्त हो सकता है. ऐसा ही एक सरल और गोपनीय विधान है देवी स्वप्नेश्वरी के सबंध में. अन्य प्रयोगों की अपेक्षा यह प्रयोग सरल और तीव्र है.
इस साधना को साधक किसी भी सोमवार की रात्रिकाल में ११ बजे के बाद शुरू करे.
साधक के वस्त्र आसान वगेरा सफ़ेद रहे. दिशा उत्तर.
साधक को अपने सामने सफ़ेदवस्त्रों को धारण किये हुए देवी स्वप्नेश्वरी का चित्र या यन्त्र स्थापित करना चाहिए. अगर ये उपलब्ध ना हो तो सफ़ेद वस्त्र माला को धारण किये हुए अंत्यंत ही सुन्दर और प्रकाश तथा दिव्य आभा से युक्त चतुर्भुजा शक्ति का ध्यान कर के अपने प्रश्न का उतर देने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए. उसके बाद साधक अपने प्रश्न को साफ़ साफ़ अपने मन ही मन ३ बार दोहराए. उसके बाद मंत्र जाप प्रारंभ करे. इस साधना में ११ दिन रोज ११ माला मंत्र जाप करना चाहिए. यह मंत्रजाप सफ़ेदहकीक, स्फटिक या रुद्राक्ष की माला से किया जाना चाहिए.
ॐ स्वप्नेश्वरी स्वप्ने सर्व सत्यं कथय कथय ह्रीं श्रीं ॐ नमः
मन्त्र जाप के बाद साधक फिर से प्रश्न का तिन बार मन ही मन उच्चारण कर जितना जल्द संभव हो सो जाए. निश्चित रूप से साधक को साधना के आखरी दिन या उससे पूर्व भी स्वप्न में अपना उत्तर मिल जाता है और समाधान प्राप्त होता है. जिस दिन उत्तर मिल जाए साधक चाहे तो साधना उसी दिन समाप्त कर सकता है. साधक को माला को सुरक्षित रख ले. भविष्य में इस प्रयोग को वापस करने के लिए इसी माला का प्रयोग किया जा सकता है.

Wednesday 25 June 2014

संकट मुक्ती हेतु...............शक्ति शाली है यह मंतर। …………………।

संकट मुक्ती हेतु.............................शक्ति शाली है यह मंतर। …………………।

नमस्ते रुद्ररुपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनी
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषामर्दिनी
नमस्ते शुम्भहन्त्रे च निशुम्भासुरघातिनी
जाग्रतं हि महादेवी जपं सिद्धं कुरुष्व मे
ऐँकारी सृष्टिरुपायै ह्रीँकारी प्रतिपालिका
क्लीँकारी कामरुपिण्यै बीजरुपे नमोऽस्तु ते
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायनी
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररुपिणि
धां धीँ धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीँ वूं वागधीश्वरी
क्रां क्रीँ क्रूं कालिका देवि शां शीँ शूं मेँ शुभं कुरु
हुं हुं हुंकाररुपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी
भ्रां भ्रीँ भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमोँ नमः
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा
पां पीँ पूं पार्वती पूर्णा खां खीँ खुं खेचरी तथा
सां सीँ सूं सप्तशतिदेव्या मंत्रसिद्धी कुरुष्व मे
इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेवते
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वती।

नित्य दुर्गा जी के पूजन के बाद 11 बार पाठ करने से,आयु सम्मान प्रतिष्ठा मे वृर्द्धी होती है हर संकट से मुक्ती प्राप्त होती है।

यदि कोई व्यक्ती अकारण अपनी पत्नी को मारता पीटता हो। उसे छोड किसी अन्य स्त्री पर मोहित हो तो मै आज एसी बहनो हेतु प्रयोग दे रहा हूँ जिससे आप के जीवन मे परिवर्तन आ सकता है।......

यदि कोई व्यक्ती अकारण अपनी पत्नी को मारता पीटता हो। उसे छोड किसी अन्य स्त्री पर मोहित हो तो मै आज एसी बहनो हेतु प्रयोग दे रहा हूँ जिससे आप के जीवन मे परिवर्तन आ सकता है।
1 अपने पति का कोई पुराना वस्त्र लेँ लोहे की कील से कपडे मे 17 छेद करेँ उस कपडे के साथ 3 काली चूडी बांध कर नदि या तालाब मे डाल देँ
अब अपने सर से पैर तक काला धागा नापे उसे 17 टुकडो मे काटे उसे तवे पर गर्म करेँ राख बन जाने पर उष भस्म को अपने सिर के 8 बाल कटहल के पत्ते पर हरसिंगार की 3 इंच की शाखा के साथ रखेँ। इसे काले कपङे पर लपेट कर आप अपने सोने के पलंग आदी मे छुपा कर बांध दे।
2 अपने पति की दाऐँ पैर की मिट्टी उठाकर उसमे काले तिल व गोलोचन मिलाऐँ उसे डिब्बे मेँ बंद कर के अपने पास रख ले।
3 सामग्री- नाग नागिन का जोडा तांबे का बना हुआ।, दीपक घी का,एक कटोरी कच्चा दूध,पति की फोटो
विधी - दीपक जला कर दीपक के पास नाग जोडा रखेँ। उसके पास पति का चित्र उल्टा कर रख देँ। अर्थात चित्र वाला भाग भूमी पर हों अब उस चित्र पर पैर रख कर नाग नागिन को दूध अर्पित करेँ।अब अपना पैर हटा कर चित्र को भूमी पर पडे रहने देँ ब्लेड से उसके दो भाग कर दे जो भाग उठ जाए उसे दीपक मे जला देँ शेष भाग अपने पास सुरक्षित कर ले। जोडे को वीरान जगह पर छोड आवेँ।
4पति की फोटो पर श्वेत गुंजा की 1इंच की जड लाल धागे पर बांध कर नदी या तालाब मे डाल देँ
5 सास से परेशान बहन अपनी सास के नाम से 9 कील शनिवार को पीपल के व्रक्ष पर गाड देँ तो आराम होता है एक बार मे न हो तो दुहराऐँ

Tuesday 24 June 2014

कुछ लोगों की जन्म कुंडली नहीं होती न ही उन्हें अपने जन्म समय का अच्छी तरह से ज्ञान होता है ! ऐसी दशा में कैसे पता लगाया जाए कि आप पर किस ग्रह का प्रभाव चल रहा है ! खासकर तब जब आपका बुरा समय चल रहा हो तो आपको किसी दैवज्ञ या विद्वान ज्योतिषी की सहायता लेनी पड़ेगी ! कम से कम जन्मकुंडली की तो हर उस व्यक्ति को आवश्यकता पड़ती है जो की समस्याओं से जूझ रहा हो !..

कुछ लोगों की जन्म कुंडली नहीं होती न ही उन्हें अपने जन्म समय का अच्छी तरह से ज्ञान होता है ! ऐसी दशा में कैसे पता लगाया जाए कि आप पर किस ग्रह का प्रभाव चल रहा है ! खासकर तब जब आपका बुरा समय चल रहा हो तो आपको किसी दैवज्ञ या विद्वान ज्योतिषी की सहायता लेनी पड़ेगी ! कम से कम जन्मकुंडली की तो हर उस व्यक्ति को आवश्यकता पड़ती है जो की समस्याओं से जूझ रहा हो !

परन्तु जब आपके पास कुंडली ना हो तो भी ज्योतिषी आपसे बात करके आपकी समस्याओं से अनुमान लगाकर आपकी कुछ परेशानी तो कम कर ही सकता है !

कुछ लक्षण ऐसे होते हैं जिनका सीधा सम्बन्ध किसी ख़ास योग या ग्रह से होता है ! जैसे कि :-

» अगर आपके बाल झड जाएँ और आपकी हड्डियों के जोड़ों मैं कड़क कड़क की आवाज आने लगे, पिता से झगडा हो जाए, मुकदमा या कोर्ट केस मैं फंस जाएँ, आपकी आत्मा दुखी हो जाए, आलसी प्रवृत्ति हो जाये तो आपको समझ लेना चाहिए की सूर्य का अशुभ प्रभाव आप पर हो रहा है ! ऐसी दशा मैं सबसे अच्छा उपाय है की हर सुबह लाल सूर्य को मीठा डालकर अर्ध्य दें ! इनकम टैक्स का भुगतान कर दें व् पिता से सम्बन्ध सुधरने की कोशिश करें !

» अगर आपको वहम हो जाए, जरा जरा सी बात पर मन घबरा जाए, आत्मविश्वास मैं कमी आ जाए, सभी मित्रों पर से विशवास उठ जाए, ब्लड प्रेशर की बीमारी हो जाए, जुकाम ठीक न हो या बार बार होने लगे, आपकी माता की तबियत खराब रहने लगे ! अकारण ही भय सताने लगे और किसी एक जगह पर आप टिक कर ना बैठ सकें, छोटी छोटी बात पर आपको क्रोध आने लगे तो समझ लें की आपका चन्द्रमा आपके विपरीत चल रहा है ! इसके लिए हर सोमवार का व्रत रखें और दूध या खीर का दान करें !

» आपको खून की कमी हो जाए, बार बार दुर्घटना होने लगे या चोट लगने लगे, सर मैं चोट, आग से जलना, नौकरी मैं शत्रु पैदा हो जाएँ या ये पता न चल सके की कौन आपका नुक्सान करने की चेष्टा कर रहा है, व्यर्थ का लड़ाई झगडा हो, पुलिस केस, जीवन साथी के प्रति अलगाव नफरत या शक पैदा हो जाए, आपरेशन की नौबत आ जाए, कर्ज ऐसा लगने लगे की आसानी से ख़त्म नहीं होगा तो आप पर मंगल ग्रह क्रुद्ध हैं ! हनुमान जी की यथासंभव उपासना शुरू कर दें ! हनुमान जी के छार्नों मैं से तिलक लेकर माथे पर प्रतिदिन लगायें, अति गंभीर परिस्थितियों मैं रक्त दान करें तो जो रक्त आपका आपरेशन, चोट या दुर्घटना आदि के कारण निकलना है, नहीं होगा !

» अगर आपको अचानक धन हानि होने लगे ! आपके पैसे खो जाएँ, बरकत न रहे, दमा या सांस की बीमारी हो जाए, त्वचा सम्बन्धी रोग उत्पन्न हों, कर्ज उतर न पाए, किसी कागजात पर गलत दस्तखत से नुक्सान हो तो आप पर बुध ग्रह का कुप्रभाव चल रहा है ! इसके लिए बुधवार को किन्नरों को हरे वस्त्र दान करें और गाय को हरा चारा इसी दिन खिलाएं !

» अगर बुजुर्ग लोग आपसे बार बार नाराज होते हैं, जोड़ों मैं तकलीफ है, शरीर मैं जकरण या आपका मोटापा बढ़ रहा है, नींद कम है, पढने लिखने में परेशानी है किसी ब्रह्मण से वाद विवाद हो जाए अथवा पीलिया हो जाए तो समझ लेना चाहिए की गुरु का अशुभ प्रभाव आप पर पढ़ रहा है ! अगर सोना गम हो जाए पीलिया हो जाए या पुत्र पर संकट आ जाए तो निस्संदेह आप पर गुरु का अशुभ प्रभाव चल रहा है ! ऐसी स्थिति में केसर का तिलक वीरवार से शुरू करके २७ दिन तक रोज लगायें, सामान्य अशुभता दूर हो जाएगी किन्तु गंभीर परिस्थितियों में जैसे अगर नौकरी चली जाए या पुत्र पर संकट, सोना चोरी या गम हो जाए तो बृहस्पति के बीज मन्त्रों का जाप करें या करवाएं ! तुरंत मदद मिलेगी ! मंत्र का प्रभाव तुरंत शुरू हो जाता है !

» अगर आपकी स्त्रियों से नहीं बनती, किसी स्त्री से धोखा या मान हानि हो जाए, किसी शुभ काम को करते वक्त कुछ न कुछ अशुभ होने लगे, आपका रूप पहले जैसा सुन्दर न रहे ! लोग आपसे कतराने लगें ! वाहन को नुक्सान हो जाए ! नीच स्त्रियों से दोस्ती, ससुराल पक्ष से अलगाव तथा शूगर हो जाए तो आपका शुक्र बुरा प्रभाव दे रहा है ! उपाय के लिए महालक्ष्मी की पूजा करें, चीनी, चावल तथा चांदी शुक्रवार को किसी ब्राह्मण की पत्नी को भेंट करें, बड़ी बहन को वस्त्र दें, २१ ग्राम का चांदी का बिना जोड़ का कड़ा शुक्रवार को धारण करें ! अगर किसी के विवाह में देरी या बाधाएं आ रही हों तो जिस दिन रिश्ता देखने जाना हो उस दिन जलेबी को किसी नदी मैं प्रवाहित करके जाएँ ! इन में से किसी भी उपाय को करने से आपका शुक्र शुभ प्रभाव देने लगेगा ! किसी सुहागन को सुहाग का सामन देने से भी शुक्र का शुभ प्रभाव होने लगता है ! ध्यान रहे, शुक्रवार को राहुकाल में कोई भी उपाय न करें !

» अगर आपके मकान मैं दरार आ जाए ! घर में प्रकाश की मात्रा कम हो जाए ! जोड़ों में दर्द रहने लगे विशेषकर घुटनों और पैरों में या किसी एक टांग पर चोट, रंग काला हो जाए, जेल जाने का डर सताने लगे, सपनों मैं मुर्दे या शमशान घात दिखाई दे, अंकों मैं मोतिया उतर आये, गठिया की शिकायत हो जाए, परिवार का कोई वरिष्ठ सदस्य गंभीर रूप से बीमार या मृत्यु को प्राप्त हो जाए तो आप पर शनि का कुप्रभाव है जिसके निवारण के लिए शनिवार को १ लीटर सरसों का तेल लोहे के कटोरे में डाल कर अपना मुह उसमे देख कर किसी काले वर्ण वाले ब्राह्मण को दान में दें ! ऐसा हर शनिवार करें ! बीमारी की अवस्था में किसी गरीब, बीमार व्यक्ति को दवाई दिलवाएं !

स्थिति में भी सुधार होगा. वास्तु दोष दूर करने के उपाय वास्तु पूजन के पश्चात् भी कभी-कभी मिट्टी में किन्हीं कारणों से कुछ दोष रह जाते हैं जिनका निवारण कराना आवश्यक है। रसोई घर गलत स्थान पर हो तो अग्निकोण में एक बल्ब लगा दें और सुबह-शाम अनिवार्य रूप से जलाये।....

स्थिति में भी सुधार होगा.
वास्तु दोष दूर करने के उपाय
वास्तु पूजन के पश्चात् भी कभी-कभी मिट्टी में किन्हीं कारणों से कुछ दोष रह जाते हैं जिनका निवारण कराना आवश्यक है।

रसोई घर गलत स्थान पर हो तो अग्निकोण में एक बल्ब लगा दें और सुबह-शाम अनिवार्य रूप से जलाये।

द्वार दोष और वेध दोष दूर करने के लिए शंख, सीप, समुद्र झाग, कौड़ी लाल कपड़े में या मोली में बांधकर दरवाजे पर लटकायें।

बीम के दोष को शांत करने के लिए बीम को सीलिंग टायल्स से ढंक दें।

बीम के दोनों ओर बांस की बांसुरी लगायें।

घर के दरवाजे पर घोड़े की नाल (लोहे की) लगायें। यह अपने आप गिरी होनी चाहिए

घर के सभी प्रकार के वास्तु दोष दूर करने के लिए मुख्य द्वार पर एक ओर केले का वृक्ष दूसरी ओर तुलसी का पौधा गमले में लगायें।

दुकान की शुभता बढ़ाने के लिए प्रवेश द्वार के दोनों ओर गणपति की मूर्ति या स्टिकर लगायें। एक गणपति की दृष्टि दुकान पर पड़ेगी, दूसरे गणपति की बाहर की ओर।

यदि दुकान में चोरी होती हो या अग्नि लगती हो तो भौम यंत्र की स्थापना करें। यह यंत्र पूर्वोत्तर कोण या पूर्व दिशा में, फर्श से नीचे दो फीट गहरा गङ्ढा खोदकर स्थापित किया जाता है।

यदि प्लाट खरीदे हुये बहुत समय हो गया हो और मकान बनने का योग न आ रहा हो तो उस प्लाट में अनार का पौधा पुष्य नक्षत्र में लगायें।

अगर आपका घर चारों ओर बड़े मकानों से घिरा हो तो उनके बीच बांस का लम्बा फ्लेग लगायें या कोई बहुत ऊंचा बढ़ने वाला पेड़ लगायें।

फैक्ट्री-कारखाने के उद्धाटन के समय चांदी का सर्प पूर्व दिशा में जमीन में स्थापित करें।

अपने घर के उत्तरकोण में तुलसी का पौधा लगाएं

हल्दी को जल में घोलकर एक पान के पत्ते की सहायता से अपने सम्पूर्ण घर में छिडकाव करें। इससे घर में लक्ष्मी का वास तथा शांति भी बनी रहती है

अपने घर के मन्दिर में घी का एक दीपक नियमित जलाएं तथा शंख की ध्वनि तीन बार सुबह और शाम के समय करने से नकारात्मक ऊर्जा घर से बहार निकलती है.

घर में सफाई हेतु रखी झाडू को रस्ते के पास नहीं रखें.

यदि झाडू के बार-बार पैर का स्पर्थ होता है, तो यह धन-नाश का कारण होता है. झाडू के ऊपर कोई वजनदार वास्तु भी नहीं रखें.। ध्यान रखें की बाहर से आने वाले व्यक्ति की दृष्टि झारू पड़ न परे।

अपने घर में दीवारों पर सुन्दर, हरियाली से युक्त और मन को प्रसन्न करने वाले चित्र लगाएं. इससे घर के मुखिया को होने वाली मानसिक परेशानियों से निजात मिलती है.

वास्तुदोष के कारण यदि घर में किसी सदस्य को रात में नींद नहीं आती या स्वभाव चिडचिडा रहता हो, तो उसे दक्षिण दिशा की तरफ सिर करके शयन कराएं.इससे उसके स्वभाव में बदलाव होगा और अनिद्रा की स्थिति में भी सुधार होगा.

अपने घर के ईशान कोण को साफ़ सुथरा और खुला रखें. इससे घर में शुभत्व की वृद्धि होती है.

अपने घर के मन्दिर में देवी-देवताओं पर चढ़ाए गए पुष्प-हार दूसरे दिन हटा देने चाहिए और भगवान को नए पुष्प-हार अर्पित करने चाहिए.

घर के उत्तर-पूर्व में कभी भी कचरा इकट्ठा न होने दें और न ही इधर भारी मशीनरी रखें.

अपने वंश की उन्नति के लिये घर के मुख्यद्वार पर अशोक के वृक्ष दोनों तरफ लगाएं.

यदि आपके मकान में उत्तर दिशा में स्टोररूम है, तो उसे यहाँ से हटा दें. इस स्टोररूम को अपने घर के पश्चिम भाग या नैऋत्य कोण में स्थापित करें.

घर में उत्पन्न वास्तुदोष घर के मुखिया को कष्टदायक होते हैं. इसके निवारण के लिये घर के मुखिया को सातमुखी रूद्राक्ष धारण करना चाहिए.

यदि आपके घर का मुख्य द्वार दक्षिणमुखी है, तो यह भी मुखिया के के लिये हानिकारक होता है. इसके लिये मुख्यद्वार पर श्वेतार्क गणपति की स्थापना करनी चाहिए.

अपने घर के पूजा घर में देवताओं के चित्र भूलकर भी आमने-सामने नहीं रखने चाहिए इससे बड़ा दोष उत्पन्न होता है.

अपने घर के ईशान कोण में स्थित पूजा-घर में अपने बहुमूल्य वस्तुएँ नहीं छिपानी चाहिए.

पूजाकक्ष की दीवारों का रंग सफ़ेद हल्का पीला अथवा हल्का नीला होना चाहिए.

यदि आपके रसोई घर में रेफ्रिजरेटर नैऋत्य कोण में रखा है, तो इसे वहां से हटाकर उत्तर या पश्चिम में रखें.

दीपावली अथवा अन्य किसी शुभ मुहूर्त में अपने घर में पूजास्थल में वास्तुदोशनाशक कवच की स्थापना करें और नित्य इसकी पूजा करें. इस कवच को दोषयुक्त स्थान पर भी स्थापित करके आप वास्तुदोषों से सरलता से मुक्ति पा सकते हैं.

अपने घर में ईशान कोण अथवा ब्रह्मस्थल में स्फटिक श्रीयंत्र की शुभ मुहूर्त में स्थापना करें. यह यन्त्र लक्ष्मीप्रदायक भी होता ही है, साथ ही साथ घर में स्थित वास्तुदोषों का भी निवारण करता है.

प्रातःकाल के समय एक कंडे पर थोड़ी अग्नि जलाकर उस पर थोड़ी गुग्गल रखें और 'ॐ नारायणाय नमन' मंत्र का उच्चारण करते हुए तीन बार घी की कुछ बूँदें डालें. अब गुग्गल से जो धूम्र उत्पन्न हो, उसे अपने घर के प्रत्येक कमरे में जाने दें. इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा ख़त्म होगी और वातुदोशों का नाश होगा.

प्रतीदिन शाम के समय घर मे कपूर जलाएं इससे घर मे मौजूद नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है।

परिचय- सेक्स एक ऐसा विषय है जिसके बारे में चाहे स्त्री हो पुरुष सभी उत्सुक रहते हैं। वैसे भी जिस तरह जीवन जीने के लिए भोजन, हवा, पानी आदि जरूरी है उसी तरह सेक्स भी बहुत ही जरूरी है। इसके लिए सबसे जरूरी है सेक्स के बारे में पूरी जानकारी होना क्योंकि बिना ज्ञान के किया गया कोई भी काम सफल नहीं होता है। ....

तकनीक ज्यादा महत्वपूर्ण होती है।
संभोग के बारे में कुछ जरूरी बातें


परिचय-
सेक्स एक ऐसा विषय है जिसके बारे में चाहे स्त्री हो पुरुष सभी उत्सुक रहते हैं। वैसे भी जिस तरह जीवन जीने के लिए भोजन, हवा, पानी आदि जरूरी है उसी तरह सेक्स भी बहुत ही जरूरी है। इसके लिए सबसे जरूरी है सेक्स के बारे में पूरी जानकारी होना क्योंकि बिना ज्ञान के किया गया कोई भी काम सफल नहीं होता है। सेक्स के बारे में जानकारी न होने के कारण अगर किसी व्यक्ति को कोई भी परेशानी हो और वह चाहे छोटी सी चींटी के समान हो उसे तो वह परेशानी बड़ा सा पहाड़ ही नजर आएगी। इसी नादानी के चक्कर में बहुत से लोग गलत तरह के लोगों के झांसे में आकर अपना पैसा़, समय और जीवन तक बर्बाद कर बैठते हैं।
यहां हम आपको कुछ ऐसी जरूरी बातें बता रहें हैं जिनको जानकर आपकी सेक्स संबंधी होने वाली बहुत सी भ्रांतियों (वहम) को दूर किया जा सकता है-
• संभोग क्रिया करने से पहले जब पुरुष का लिंग पूरी तरह उत्तेजित अवस्था में होता है तो उस समय लिंग के मूत्रमार्ग से द्रव की कुछ बूंदे निकलती हैं जिन्हें बहुत से लोग वीर्य समझ लेते हैं लेकिन यह वीर्य न होकर सिर्फ कुछ ग्रंथियों का रस होता है।
• बहुत से लोगों को हस्तमैथुन (हैंड प्रैक्टिस) करने की आदत पड़ी होती है जिसे वह बहुत बड़ा रोग समझ लेते हैं। हस्तमैथुन की आदत से ग्रस्त कुछ लोगों को वहम होता है कि इस आदत के कारण उन्हें शादी के बाद कई तरह की परेशानियां पैदा हो सकती हैं। लेकिन असल में हस्तमैथुन किसी प्रकार का रोग नहीं है और न ही इससे किसी प्रकार की शारीरिक या मानसिक परेशानी होती है। किशोरावस्था में यौन ग्रंथियों की परिपक्वता यौन तनाव को जन्म देती है। इसी यौन तनाव को दूर करने के लिए किशोरों या युवाओं को जब कोई दूसरा रास्ता नजर नहीं आता तो उनको यौन तनाव को दूर करने के लिए हस्तमैथुन करने का तरीका ही सबसे बेहतर लगता है। लेकिन यहां पर एक बात बताना और भी जरूरी है कि हस्तमैथुन को अगर महीने में सिर्फ 3-4 बार किया जाए तो किसी तरह के डर की बात नहीं है लेकिन अगर इसे रोजाना किया जाए तो जरूर कई तरह के शारीरिक और मानसिक विकार पैदा हो सकते हैं।
• स्त्री के साथ संभोग करते समय वीर्यपात होने से पहले बीच-बीच में लिंग को स्त्री के योनि में से बाहर निकालने से या संभोग करने के आसनों को बदलने से संभोग करने के समय को थोड़ा और बढ़ाया जा सकता है।
• कुछ लोगों को रात को सोते समय नींद में ही वीर्यपात होने की शिकायत होती है जिसको स्वप्नदोष कहा जाता है। अक्सर युवक इसे भी बहुत बड़ा रोग मान बैठते हैं और सोचते हैं कि शादी करने के बाद इस परेशानी के कारण वह सफल सेक्स करने में कामयाब नहीं होंगे। स्वप्नदोष भी युवावस्था में यौन-ग्रंथियों की पूर्ण परिपक्वता के कारण होता है। वीर्य के शरीर में बनने की क्रिया लड़के की किशोरावस्था से ही शुरू हो जाती है। शादी करने से पहले जब तक लड़का किसी लड़की के साथ सेक्स संबंध नहीं बनाता तो इस वीर्य का निकलना संभव नहीं होता है इसी कारण कुछ लोगों का यह वीर्य स्वप्नदोष के माध्यम से बाहर निकल जाता है। शरीर के बढ़ने के क्रम में स्वप्नदोष एक सहज और स्वाभाविक प्रक्रिया है। लेकिन स्वप्नदोष अगर महीने में 3-4 बार हो तो यह एक सामान्य क्रिया है लेकिन इससे ज्यादा हो तो यह परेशानी पैदा कर सकता है।
• शीघ्रपतन (इसमें पुरुष का वीर्य संभोग के समय जल्दी निकल जाता है) को बहुत से पुरुष अपनी बहुत बड़ी कमजोरी समझते है लेकिन यह कोई ऐसी कमजोरी नहीं है जिसको दूर न किया जा सके। शीघ्रपतन की चिकित्सा करवाने के साथ-साथ इससे ग्रस्त व्यक्ति को आत्मिक संयम तथा यौन विशेषज्ञ की सलाह लेना भी बहुत लाभ करता है।
• पुरुष का वीर्य गाढ़ा या ज्यादा होना ही इस बात का सबूत नहीं है कि पुरुष बाप बनने के काबिल है या स्त्री को गर्भ ठहराने में सक्षम है। स्त्री को गर्भ ठहराने में सबसे अहम बात यह होती है कि पुरुष के वीर्य में मौजूद शुक्राणुओं की संख्या पूरी हो और वह बिल्कुल स्वस्थ और गतिशील अवस्था में हो।
• जिन व्यक्तियों का वीर्य पतला और पानी जैसा होता है उनको वीर्य विकार का रोग होता है। ऐसे लोगों के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या बहुत कम होती है और शुक्राणु गतिशील अवस्था में भी नहीं होते। ऐसे व्यक्ति संतान पैदा करने में पूरी तरह सक्षम नहीं होते हैं।
• पुरुष का वीर्य जब लिंग के जरिए बाहर निकलता है तो वह बहुत गाढ़े और चिपचिपे रूप में होता है लेकिन कुछ ही समय में यह वीर्य पानी की तरह पतला हो जाता है क्योंकि स्खलन के बाद वीर्य के अंदर मौजूद शुक्राणु कुछ समय तक गतिशील होते हैं लेकिन धीरे-धीरे यह गतिहीन होते चले जाते हैं जिसके कारण वीर्य पतला हो जाता है।
• एक बार के स्खलन में कितने शुक्राणु बाहर निकलते हैं इसका अभी तक पूरी तरह से अंदाजा नहीं लगाया गया है लेकिन फिर भी अनुमानों के मुताबिक एक बार के स्खलन में लगभग 60 से 150 मिलियन तक शुक्राणु निकलते हैं।
• पुरुष के एक बार स्खलित होने पर लगभग 2 से 5 मिलीलीटर की मात्रा में वीर्य बाहर निकलता है।
• स्त्री के बच्चे को जन्म देने की तारीख पता करने के लिए उसके पिछले बार आए हुए मासिकधर्म की तारीख से 3 महीने और पीछे जाकर उसमें 7 दिन और जोड़ दें जैसे अगर गर्भवती स्त्री को आखिरी बार मासिकधर्म 20 जनवरी को हुआ हो तो उससे 3 महीने पीछे जाने पर 20 अक्टूबर आता है। इसके बाद इसमें 7 दिन और जोड़ने पर 27 अक्टूबर आ जाता है। इसी अगले आने वाले 27 अक्टूबर को स्त्री के द्वारा बच्चे को जन्म देने की तारीख माना जाएगा। इस तिथि से 2-4 दिन ऊपर-नीचे हो सकते हैं।
• अक्सर गर्भाशय व अंडाशय के निकल जाने के बाद स्त्रियों की सहवास संबंधी उत्तेजना पहले से काफी कम हो जाती है लेकिन इस कमी को भंगाकुर द्वारा उत्तेजना प्राप्त करके दूर किया जा सकता है। किसी अच्छे यौन चिकित्सक की सलाह से हार्मोंस द्वारा इलाज भी किया जा सकता है।
• संभोग करते समय जैसे ही पुरुष को महसूस होता है कि उसका वीर्यपात होने वाला है तो उससे कुछ ही क्षण पहले पुरुष को अपनी गुदा को कसकर भींच लेना चाहिए। इस तरह करने से वीर्य स्खलन के समय को अर्थात संभोग अवधि को बढ़ाया जा सकता है।
• संभोग करते समय कमर के द्वारा संचालन के कारण अगर स्त्री को योनि में दर्द होता है तो यह नहीं सोचना चाहिए कि स्त्री का योनि मार्ग संकरा अर्थात तंग है बल्कि यह गर्भाशय तथा गर्भ के मुंह में किसी तरह के रोग होने का संकेत देता है।
• संभोग क्रिया के दौरान एक बार पुरुष के स्खलित होने के बाद दुबारा संभोग करने पर पुरुष पहले की अपेक्षा दूसरी बार देर से स्खलित होता है लेकिन स्त्री पहली बार के संभोग की अपेक्षा जल्दी ही चरम सुख की प्राप्ति कर लेती है।
• हर स्त्री या तो रात में, बिल्कुल अंधेरे में या फिर चांदनी रात में ही संभोग क्रिया का मजा लेती है। जब स्त्री पूरी तरह से निश्चित हो जाती है तभी वह अपने पुरुष साथी को संभोग में ज्यादा से ज्यादा सहयोग दे पाती है। इसी तरह से पुरुष और स्त्री दोनों को ही अधिक यौनानंद प्राप्त होता है।
• स्त्रियों के अंदर पूरी तरह से काम उत्तेजना पैदा किए बिना उनको संभोग के चरम सुख तक नहीं पंहुचाया जा सकता। इसके लिए सबसे जरूरी है कि संभोग से पहले प्राकक्रीड़ा (फोर प्ले) के द्वारा स्त्री को पूरी तरह से उत्तेजित करके ही संभोग क्रिया की जाए।
• पुरुषों की यौन उत्तेजना स्त्रियों के मुकाबले बहुत ही तेजी से उठती है और उसी तेजी से समाप्त भी हो जाती है लेकिन स्त्रियों के साथ इसका उल्टा ही होता है उनके अंदर यौन उत्तेजना बहुत धीरे-धीरे पैदा होती है लेकिन काफी देर तक बनी रहती है।
• संभोग के प्रति उत्तेजना पैदा होने के बाद शर्म या संकोच के कारण स्त्री अपनी योनि में लिंग प्रवेश कराने के लिए कहे या न कहे लेकिन दूसरी कोशिशों के जरिए वह इस बात का साफ संकेत दे देती है कि वह अब अपनी योनि में पुरुष का लिंग प्रवेश कराना चाहती है। अगर स्त्री की नजर बार-बार नीचे योनि की तरफ उठती है तो समझ जाना चाहिए कि वह क्या चाहती है।
• मासिकधर्म की समाप्ति के बाद अक्सर स्त्री संभोग क्रिया में ज्यादा रुचि लेने लगती है। इसके अलावा मासिकधर्म के बाद स्त्रियों की यौन उत्तेजना कुछ तेज हो जाती है।
• साधारण आकार से ज्यादा बड़ा लिंग होने से यह नहीं कहा जा सकता कि इसके कारण संभोग क्रिया ज्यादा समय तक चल सकती है। संभोग करने के लिए लिंग के आकार की बजाय संभोग की कला और तकनीक ज्यादा महत्वपूर्ण होती है।
• कहा जाता है कि अगर स्त्री के साथ मासिकधर्म के समय संभोग किया जाए तो स्त्री को गर्भ नहीं ठहरता है।
• गर्भधारण करने के लिए डिंब प्रणाली बहुत जरूरी है क्योंकि साधारणतः डिंब प्रणाली में शुक्राणु डिंब से मिलकर गर्भाधान करता है।
• जिस पुरुष की अभी शादी हुई हो उसके लिए यह जानना बहुत मुश्किल है कि उसकी पत्नी ने उससे पहले किसी और से संबंध स्थापित किए है या नहीं। डाक्टरी जांच के द्वारा भी इस बात का पता लगाना बहुत मुश्किल है क्योंकि इसकी जांच करवाने का एकमात्र उपाय स्त्री की योनि के अंदर की कुमारीच्छद झिल्ली का उपस्थित होना है लेकिन किसी प्रकार की दुर्घटना या खेलते-कूदते समय शादी से पहले ही यह झिल्ली टूट सकती है।
• स्त्री को संभोग क्रिया में चरम सुख प्राप्त हुआ हो या नहीं लेकिन फिर भी वह गर्भधारण कर सकती है क्योंकि गर्भ के लिए डिंब के साथ शुक्राणुओं का मिलना भी जरूरी है। शारीरिक और मानसिक संतुष्टि से इसका किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं है।
• स्त्रियों में भंगाकुर, योनि, स्तन और स्तनों के निप्पल ही सबसे ज्यादा अनुभूतिशील अंग होते हैं। अगर इन अंगों को उत्तेजित किया जाए तो स्त्री के अंदर कुछ ही देर में काम उत्तेजना पैदा हो जाती है।
• अंडकोष सर्दी-गर्मी में तुरंत प्रभावित हो जाते हैं। अंडकोषों का तापमान शरीर के तापमान से कम रहता है क्योंकि शुक्राणु शरीर के तापमान पर जीवित नहीं रह सकते इसलिए शरीर से अलग अंडकोष सुरक्षित रहते हैं।
• अक्सर पुरुष के लिंग आदि को देखकर स्त्री इतनी जल्दी उत्तेजित नहीं होती जितना कि पुरुष स्त्री के स्तनों आदि को देखकर ही उत्तेजित हो जाता है।
• पुरुष के शुक्राणुओं को मौसम के असर से बचाने में अंडकोषों की थैली बहुत मदद करती है। इसलिए गर्मी में य़ह थैली ढीली होकर नीचे लटक जाती है और सर्दियों में सिकुड़ जाती है।
• बहुत से लोग इसी दुविधा में रहते हैं कि संभोग क्रिया कितनी देर तक जारी रहनी चाहिए लेकिन इसके लिए कोई भी समय सीमा निश्चित नहीं की जा सकती क्योंकि हर व्यक्ति अलग-अलग समय तक संभोग क्रिया जारी रख सकता है। ऐसी स्थिति में यह कहना मुश्किल है कि संभोग में एक निश्चित समय ही लगना चाहिए। पति और पत्नी जब काफी समय के बाद एक दूसरे से संभोग करने के लिए तैयार होते हैं तो उस समय पुरुष काफी उत्तेजित होते हैं और संभोग करते समय स्खलित होने में काफी कम समय लेते हैं। लेकिन इसके बाद उसी रात में दूसरी या तीसरी बार संभोग करते समय वह स्खलित होने में काफी समय लेते हैं। कोई भी पुरुष किसी तरह का उत्तेजक सीन आदि देखकर जब संभोग करता है तो ऐसे में वह शीघ्र ही स्खलित हो जाते हैं। बहुत से व्यक्ति संभोग के समय अपनी पत्नी से अश्लील बातें करते हैं और पत्नी से भी चाहते हैं कि वह भी इसी तरह की बातें करें क्योंकि उनके अनुसार ऐसी बातों से उत्तेजना और आनंद बढ़ता है। विद्वानों के अनुसार ऐसी बातों से आमतौर पर उत्तेजना तो अधिक महसूस होती है लेकिन आनंद ज्यादा मिले इसके बारे में पक्के तौर पर नहीं कहा जाता है क्योंकि ज्यादातर पुरुष अपनी उत्तेजना पर काबू नहीं रख पाते और तुरंत स्खलित हो जाते हैं और स्खलन के साथ ही आनंद भी समाप्त हो जाता है।
• संभोग करने के लिए रात सही है या दिन में संभोग क्रिया करना अच्छा रहता है यह बहुत ही जरूरी विषय है। वैज्ञानिकों के अनुसार संभोग करने के लिए दिन का समय अच्छा रहता है लेकिन फिर भी रात के समय ज्यादातर लोग सेक्स करने के पक्ष में रहते हैं क्योंकि दिन तो वास्तव में मनुष्य के कामकाज करने के लिए रहता है और रात सोने तथा दूसरे कामों को करने के लिए। इसके अलावा रात को किसी के द्वारा परेशान करने का डर नहीं रहता तथा दिन में संभोग करने लगो तो ऐसा महसूस होता है कि कोई आकर दरवाजा न खटखटा दें। एक बात और भी है कि रात के समय स्त्री का रूप और आकर्षण बढ़ जाता है जिससे संभोग करने का मजा और बढ़ जाता है। इसके अलावा संभोग के बाद चूंकि स्नायु थकते हैं इसके बाद एक बड़ी प्यारी नींद आती है उस समय काफी समय तक पूरी तरह आराम करना जरूरी होता है और यह सुविधा रात को ही ज्यादा मिल सकती है। इसलिए संभोग करने के लिए देखा जाए तो रात का ही समय सबसे बेहतर रहता है।
• कुछ लोग जैसे ही रात का भोजन करते हैं उसके तुरंत बाद ही वह संभोग करने लग जाते हैं लेकिन यह बात बिल्कुल ही सही नहीं है। भोजन करने और संभोग करने के बीच में कम से कम 2 घंटे का अंतर होना चाहिए क्य़ोंकि भोजन करने के बाद ज्यादातर खून और शक्ति भोजन को पचाने के लिए आमाशय की ओर चला जाता है इसलिए अगर भोजन करने के तुरंत बाद संभोग करने से इस खून और शक्ति को कामेन्द्रियों में आना होगा तो भोजन को पचाने की क्रिया ठीक तरह से नहीं हो पाएगी। भोजन करने के दो घंटे के बाद भोजन आमाशय से निकलकर ऐसी अवस्था में आ जाता है कि उसे ज्यादा खून की जरूरत नहीं रहती है इसी कारण से भोजन करने के कम से कम 2 घंटे के बाद ही संभोग करना चाहिए।
• जैसे-जैसे किसी व्यक्ति की उम्र बढ़ती है वैसे ही उसे एक बात बहुत परेशान करती है कि उनकी उम्र बढ़ने के साथ-साथ सेक्स करने की शक्ति भी घट रही है। प्रकृति हमेशा यह चाहती है कि पुरुष यौवन से लेकर मृत्यु के पूर्व तक संभोग करता रहे क्योंकि अंडकोषों द्वारा मौत से पहले तक शुक्र-कीटों का निर्माण होता रहता है जिससे पुरुष स्त्री डिम्ब को उत्पादक बना सकता है। इसके विपरीत स्त्रियों में यह बात नही होती। स्त्रियां आमतौर पर 45 से 50 साल तक की उम्र तक रजोनिवृत्ति प्राप्त कर लेती हैं अर्थात स्त्री के शरीर में इस उम्र तक डिम्बाणुओं का बनना और मासिकधर्म की क्रिया बंद हो जाती है और उनके गर्भधारण करने की क्षमता समाप्त हो जाती है लेकिन पुरुष तो 70-80 साल की उम्र में भी संभोग करने और संतान पैदा करने में समर्थ माना जाता है। वैसे भी 55-60 साल तक संभोग करना कोई बड़ी बात नहीं है।
संभोग करने की तैयारी-
• पति और पत्नी को जिस दिन संभोग करना हो तो उस दिन उन्हें रात का भोजन जल्दी ही कर लेना चाहिए। इससे संभोग क्रिया के समय पेट भारी-भारी सा नहीं लगेगा।
• संभोग क्रिया करने के लगभग आधे घंटे के बाद नहाना स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत अच्छा रहता है।
• संभोग करने के बाद दूध, जलेबी, खजूर या कुछ मीठे पदार्थ खाने से शरीर में शक्ति पैदा होती है।
• रात के समय भोजन में अचार, खट्टे पदार्थ, भारी भोजन आदि नहीं करने चाहिए क्योंकि यह पदार्थ वीर्य को दूषित और पतला कर देते हैं जिससे वीर्य जल्दी ही निकल जाता है और व्यक्ति को शीघ्रपतन का रोग लग जाता है।
• जब स्त्री का मासिक धर्म आए तो इस दौरान उसके पास नहीं जाना चाहिए क्योंकि इससे किसी तरह का रोग लग जाने का डर रहता है।
सावधानी-
• संभोग करने से पहले स्त्री और पुरुष दोनों को मूत्र त्याग करके आना चाहिए। ऐसा करने से जननेन्द्रियां पूरी तरह प्राकृतिक रूप से काम करती हैं।
• संभोग करने से पहले पानी नहीं पीना चाहिए या प्यास लगने की अवस्था में संभोग नहीं करना चाहिए। संभोग करने के बाद लगभग 15 मिनट तक पानी नहीं पीना चाहिए क्योंकि इससे जुकाम हो सकता है और संभोग शक्ति कम हो सकती है।
• संभोग करने से पहले अफीम, शराब, चरस, कोकीन आदि नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। यह पदार्थ रक्त में उत्तेजना पैदा करके शुरुआत में तो पुरुष की काम-उत्तेजना को तेज करते हैं और स्तंभन शक्ति बढ़ाते हैं लेकिन कुछ समय के बाद दिमाग को इतना कमजोर कर देते हैं कि फिर संभोग क्रिया कर ही नहीं पाता।
• जिस समय संभोग करना हो उस समय मन में किसी तरह की परेशानी या तनाव आदि नहीं रखना चाहिए।
संभोग के लिए सही और गलत अवस्था-
• दिन में संभोग करना किसी भी नजरिये से उचित नहीं रहता है क्योंकि दिन गर्म होता है और आपस में संभोग करने से भी गर्मी पैदा होती है। इसका नतीजा यह होता है कि शरीर में गर्मी पैदा होने का डर रहता है। दिन में संभोग करने से जो संतान पैदा होती है वह पित्त-प्रकृति वाली, गुस्सैल, कठोर स्वभाव की, बेशर्म और कामुक स्वभाव की होती है।
• मासिकधर्म के दिनों में स्त्री के साथ संभोग करने से दूर रहना चाहिए। नई-नवेली दुल्हन शर्म आदि के कारण पति को मासिकधर्म के बारे में नहीं बता पाती है। इसलिए पति के लिए यह जरूरी है कि इस बात का पूरी तरह निश्चय हो जाने के बाद ही संभोग करे जब लगे कि स्त्री का मासिकधर्म बंद हो चुका है।
• जहां तक हो सके एक रात में एक ही बार संभोग करना चाहिए और दूसरी बार संभोग करने के बीच में कम से कम 4-5 दिन का अंतर रखना चाहिए।
• जब यह बात पक्के तौर पर मालूम हो जाए कि स्त्री को गर्भ ठहर गया है तो शुरुआती 3 महीनों तक उसके साथ संभोग नहीं करना चाहिए। इसके बाद चौथे, पांचवे और छठे महीनें में दोनों की इच्छा से और सावधानी से संभोग क्रिया की जा सकती है।
• थकान होने पर, सिर में दर्द होने पर, वीर्य रोग में, जिगर, मूत्राशय, फेफड़े, आंख, मेदा, हृदय और मस्तिष्क में किसी रोग के हो जाने पर संभोग नहीं करना चाहिए।
• बच्चे के जन्म लेने के कम से कम 1.5 महीने तक स्त्री के साथ संभोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इतने समय से पहले स्त्री की बच्चेदानी अपने स्वाभाविक रूप में नहीं आ पाती है।
• अगर स्त्री का मासिकधर्म अनियमित हो, उसे श्वेतप्रदर आने का रोग हो, गर्भाशय टेढ़ा हो या उसे खुजली आदि हो तो उसके ठीक होने तक उसके साथ संभोग नहीं करना चाहिए।
• बच्चे को दूध पिलाने वाली स्त्री के साथ संभोग नहीं करना चाहिए क्योंकि अगर उसे गर्भ ठहर जाता है तो उसका दूध दूषित हो जाता है और जिसको पीने से बच्चे का स्वास्थ्य खराब हो सकता है।
• अगर पुरुष को स्वप्नदोष, प्रमेह या शीघ्रपतन आदि का रोग हो तो उसके साथ स्त्री को संभोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे उसका रोग बढ़ सकता है और स्त्री भी रोगी हो सकती है।

राहू हो बेठा कुंडली मे सुनो लगाकर ध्यान करता हे हरकते उल्टी फंस जाते सबके प्राण भावो एक से छे बेठा केसे होगा प्यारा विष इसका अमृत जो जाए उपाए बताऊँ न्यारा.....

राहू हो बेठा कुंडली मे सुनो लगाकर ध्यान
करता हे हरकते उल्टी फंस जाते सबके प्राण
भावो एक से छे बेठा केसे होगा प्यारा
विष इसका अमृत जो जाए उपाए बताऊँ न्यारा
एक हो कर बेठे तो दूध से करो स्नान
रंग काला नीला छोड़ो बिल्ली की जेर अपनाओ
चाँदी टुकड़ा धारण करो..निश्चिंत हो जाओ
दो होकर बेठे तो माँ का करो सम्मान
सोना चाँदी (गोली ) धारण करो
माथे पर केसर तिलक का लगाओ निशान
तीन जो होकर बेठे चंद्र का करो उपाए
हाथी दांत का सामान कभी न उसको भाए
दो पीपल पानी पक्षी दाना राहू को जो हो भगाना
चार को होकर बेठे तो सफाई का रखो ध्यान
काम अधूरा न कोई छोड़ो धनिया पानी बहाओ
सीडीयौ के नीचे रसोई न कभी बनवाओ
पाँच जो होकर बेठे दहलीज पे चाँदी पत्रा लगवाओ
हाथी दांत रखो घर मे चरित्र उतम हो परिणाम अच्छे पाओ
छे जो होकर बेठे काली गोली , भूरा कुत्ता ,सरस्वती पुजा
भाई -बहनो की सेवा ..पाओगे राहू से भी मेवा
दोस्तो
नेक कर्म उत्तम चरित्र , दान ,माँ बाप का सम्मान राहू के अच्छे फल प्राप्त करने मे सदा लाभकारी होते हें अपने फायदे के लिए ही सही ...इन रास्तो को अपनाओ ...ज़िंदगी अपनी ओर दूसरों की स्वर्ग बनाओ

एक ज्योतिषी के साथ वार्तालाप प्रश्न-कर्ता--- क्या आप किसी का भाग्य बदल सकते हैं ? ज्योतिषी--- ....

एक ज्योतिषी के साथ वार्तालाप
प्रश्न-कर्ता---
क्या आप किसी का भाग्य बदल सकते हैं ?
ज्योतिषी---
जी नहीं ! मगर हम ये बता सकते हैं कि किसी जातक का भाग्योदय कब होने वाला है,अगर भाग्योदय में कोई बाधा है तो वो क्या करने से दूर होगी। एक अच्छे और ज्ञानी ज्योतिषी कि सलाह भले ही आपका भाग्य नहीं बदल सकती किन्तु जीवन जरूर बदल सकती है ।
प्रश्न-कर्ता---
क्या रत्न, उपाय इत्यादि काम करते हैं ?
ज्योतिषी---
जी हाँ बिलकुल करते हैं। क्या एक कमजोर इंसान को विटामिन की गोलियाँ दो तो उसका स्वास्थ्य अच्छा नहीं होता ? मगर कोई इंसान ये आशा नहीं कर सकता कि विटामिन की गोलियाँ खाकर गामा पहलवान बन जायेगा। उसका स्वास्थ्य उतना अच्छा होगा जितना उसका शरीर झेल सकता है। अब कोई रत्न या उपाय से टाटा-बिरला बनने की सोचता है तो ये गलत बात है।
प्रश्न-कर्ता---
मगर कई लोग तो ये कह कर रत्न पहना देते है की इसे पहन लेने से सरकारी नौकरी मिल जाएगी ?
क्या ये संभव है?
ज्योतिषी---
जी नहीं-अगर कुंडली में सरकारी नौकरी का योग है और जो ग्रह सरकारी नौकरी देने की क्षमता रखता है वो यदि किसी कारण से कमजोर है तब उस ग्रह का रत्न पहनने से संभव है-किन्तु यदि कुंडली में योग नहीं है तो कोई भी रत्न पहन लेने से सरकारी नौकरी नहीं मिल जाएगी। अक्सर देखा गया है कई लोग सरकारी नौकरी के चक्कर में माणिक्य रत्न धारण कर लेते हैं जो कि गलत है।
प्रश्न-कर्ता---
क्या मांगलिक दोष वास्तविकता में होता है ?
ज्योतिषी---
जी हाँ अवश्य होता है किन्तु ये एक ज्योतिषी पर निर्भर करता है कि वह शुभ और अशुभ मंगल में अंतर कर सके, सिर्फ १,४,७,८,१२ भाव में मंगल देखते ही मांगलिक दोष होने की घोषणा नहीं कर देनी चाहिए।
प्रश्न-कर्ता---
काल-सर्प दोष का बहुत हल्ला सुनाई देता है आपका क्या विचार है इस पर ?
ज्योतिषी--
कालसर्प दोष का वर्णन ज्योतिष के किसी भी शास्त्र में नहीं है, यह सिर्फ अल्पज्ञों द्वारा फैलाई गई एक भ्रान्ति है, हाँ नागदोष का वर्णन जरूर मिलता है, यदि कालसर्प-दोष भी है तो फिर योग भी है। कई कुण्डलियों के अध्ययन के बाद पता चला है कि कालसर्प दोष व्यक्ति को कष्ट भी देता है तो राजयोग भी प्रदान करता है। यह कुण्डली देखने के बाद ही निर्धारित किया जा सकता है कि जातक के लिये कालसर्प दोष है या योग ?

पूर्व जन्म के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता- पिता, भाई-बहिन,पति पत्नि- प्रेमिका, मित्र- शत्रु, सगे -सम्बनधी.. इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते है सब मिलते है । क्यों कि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है ।.....

पूर्व जन्म के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता-
पिता, भाई-बहिन,पति पत्नि- प्रेमिका,
मित्र-
शत्रु, सगे -सम्बनधी.. इत्यादि संसार के जितने
भी रिश्ते नाते है सब मिलते है । क्यों कि इन
सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे
कुछ
लेना होता है ।
वेसे ही संतान के रूप में हमारा कोई पूर्व जन्म
का सम्बन्धी ही आकर जन्म लेता है ।
जिसे शास्त्रों में चार प्रकार
का बताया गया है ।
1. ऋणानुबन्ध :-- पूर्व जन्म का कोई एसा जीव
जिससे आपने ऋण
लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से
धन नष्ट
किया हो तो वो आपके घर में संतान बनकर
जन्म
लेगा ओर आपका धन बीमारी में, या व्यर्थ के
कार्यों में तब तक नष्ट करेगा जब तक
उसका हिसाब
पूरा ना हो ।
2. शत्रु पुत्र:--पूर्व जन्म का कोइ दुश्मन आपसे
बदला लेने के लिये आपके घर में संतान बनकर
आयेगा,
ओर बडा होने पर माता पिता से मारपीट
झगडा या उन्हे
सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार से
सताता ही रहेगा ।
3. उदासीन:-- इस प्रकार कि सन्तान
माता पिता को न तो कष्ट देती है ओर
ना ही सुख
। विवाह होने पर यह माता- पिता से अलग
हो जाते है ।
4. सेवक पुत्र:-- पूर्व जन्म में यदि आपने
किसी की खूब सेवा कि है तो वह
अपनी कि हुई
सेवा का ऋण उतारने के लिये आपकि सेवा करने
के लिये
पुत्र बनकर आता है ।
आप यह ना समझे कि यह सब बाते केवल मनुष्य पर
ही लागु होती है । इन चार प्रकार में कोइ
सा भी जीव आ सकता है ।
जैसे आपने किसी गाय कि निःस्वार्थ भाव
से
सेवा कि है तो वह भी पुत्र या पुत्री बनकर आ
सकती है ।यदि आपने गाय को स्वार्थ वश
पालकर
उसके दूध देना बन्द करने के पश्चात उसे घर से
निकाल
दिया हो तो वह ऋणानुबन्ध पुत्र
या पुत्री बनकर
जन्म लेगी ।
यदि आपने किसी निरपराध जीव
को सताया है
तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आयेगा ।
इसलिये जीवन में
कभी किसी का बुरा नहीं करे ।
क्यों कि प्रकृति का नियम है कि आप
जो भी करोगे
उसे वह आपको सौ गुना करके देगी । यदि आपने
किसी को एक रूपया दिया है
तो समझो आपके खाते में
सौ रूपये जमा हो गये है । यदि आपने
किसी का एक
रूपया छीना है
तो समझो आपकि जमा राशि से
सौ रूपये निकल गये ।

Monday 23 June 2014

महत्व पूरण जानकारी शरीर के विभिन्न भागों पर तिलों व अन्य चिन्हों का महत्व ( Separate update in English -जो मैंने इस विषय पर अङ्ग्रेज़ी में लिखा है, वह इससे भिन्न है। अतः जो मित्र हिन्दी व अङ्ग्रेज़ी दोनों जानते हैं, अगर वह दोनों को पढ़ेंगे तो अधिक लाभ होगा)...

महत्व पूरण जानकारी
शरीर के विभिन्न भागों पर तिलों व अन्य चिन्हों का महत्व ( Separate update in English -जो मैंने इस विषय पर अङ्ग्रेज़ी में लिखा है, वह इससे भिन्न है। अतः जो मित्र हिन्दी व अङ्ग्रेज़ी दोनों जानते हैं, अगर वह दोनों को पढ़ेंगे तो अधिक लाभ होगा)

सभी के शरीर पर अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न प्रकार के चिन्ह होते हैं। इन चिन्हों का ज्योतिष में गहरा महत्व बताया गया है। शरीर पर रहने वाले चिन्हों में तिल का महत्व काफी अधिक है।

शरीर पर तिल कहां है? इससे उस व्यक्ति के स्वभाव और भविष्य का अंदाजा लगाया जा सकता है।

ज्योतिष के अंतर्गत शरीर पर तिल हमारे स्वभाव दर्शाते हैं।

इस संबंध में ध्यान रखने योग्य बात यह है कि पुरुषों के लिए दाहिनी ओर के तिल शुभ माने गए हैं और स्त्रियों के लिए बाएं ओर के तिल अच्छा फल देने वाले होते हैं। वहीं कई बार शुभ तिल का प्रभाव कोई अशुभ तिल कम कर देता है। इसी वजह से कोई अच्छा फल देने वाला तिल हो तब भी हमें परेशानियां ही उठाना पड़ती है।

यदि किसी पुरुष के दाहिनी हाथ पर तिल हो तो ऐसे व्यक्ति के धन की कमी नहीं रहती है। वह हमेशा सुखी जीवन व्यतीत करता है। उसकी सभी जरूरतें अवश्य ही पूरी हो जाती हैं।

किसी पुरुष के दाहिने गाल पर तिल होना भी शुभ संकेत है। ऐसे व्यक्ति पैसों से जुड़ी समस्याओं से दूर ही रहते हैं। इन्हें अधिकतर सफलताएं ही प्राप्त होती हैं।

यदि किसी के व्यक्ति के माथे के दाहिने ओर तिल हो तो उसका धन हमेशा बढ़ता रहेगा। वह ऐश्वर्य के साथ जीवन व्यतीत करेगा।

दाहिनी भुजा पर तिल वाले व्यक्ति को समाज में और परिवार में मान-सम्मान मिलता है।

नाक पर तिल व्यक्ति को अत्यधिक यात्राएं करनी पड़ती हैं।

किसी पुरुष के दाहिने पैर पर तिल हो तो ऐसा व्यक्ति बुद्धिमान होता है और बुद्धि के बल पर ही धन प्राप्त करता है।

सभी के शरीर पर अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न प्रकार के चिन्ह होते हैं। इन चिन्हों का ज्योतिष में गहरा महत्व बताया गया है। शरीर पर रहने वाले चिन्हों में तिल का महत्व काफी अधिक है।

शरीर पर तिल कहां है? इससे उस व्यक्ति के स्वभाव और भविष्य का अंदाजा लगाया जा सकता है।

ज्योतिष के अंतर्गत शरीर पर तिल हमारे स्वभाव दर्शाते हैं।

इस संबंध में ध्यान रखने योग्य बात यह है कि पुरुषों के लिए दाहिनी ओर के तिल शुभ माने गए हैं और स्त्रियों के लिए बाएं ओर के तिल अच्छा फल देने वाले होते हैं। वहीं कई बार शुभ तिल का प्रभाव कोई अशुभ तिल कम कर देता है। इसी वजह से कोई अच्छा फल देने वाला तिल हो तब भी हमें परेशानियां ही उठाना पड़ती है।

यदि किसी पुरुष के दाहिनी हाथ पर तिल हो तो ऐसे व्यक्ति के धन की कमी नहीं रहती है। वह हमेशा सुखी जीवन व्यतीत करता है। उसकी सभी जरूरतें अवश्य ही पूरी हो जाती हैं।

किसी पुरुष के दाहिने गाल पर तिल होना भी शुभ संकेत है। ऐसे व्यक्ति पैसों से जुड़ी समस्याओं से दूर ही रहते हैं। इन्हें अधिकतर सफलताएं ही प्राप्त होती हैं।

यदि किसी के व्यक्ति के माथे के दाहिने ओर तिल हो तो उसका धन हमेशा बढ़ता रहेगा। वह ऐश्वर्य के साथ जीवन व्यतीत करेगा।

दाहिनी भुजा पर तिल वाले व्यक्ति को समाज में और परिवार में मान-सम्मान मिलता है।

नाक पर तिल व्यक्ति को अत्यधिक यात्राएं करनी पड़ती हैं।

किसी पुरुष के दाहिने पैर पर तिल हो तो ऐसा व्यक्ति बुद्धिमान होता है और बुद्धि के बल पर ही धन प्राप्त करता है।

सभी के शरीर पर अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न प्रकार के चिन्ह होते हैं। इन चिन्हों का ज्योतिष में गहरा महत्व बताया गया है। शरीर पर रहने वाले चिन्हों में तिल का महत्व काफी अधिक है।

शरीर पर तिल कहां है? इससे उस व्यक्ति के स्वभाव और भविष्य का अंदाजा लगाया जा सकता है।

ज्योतिष के अंतर्गत शरीर पर तिल हमारे स्वभाव दर्शाते हैं।

इस संबंध में ध्यान रखने योग्य बात यह है कि पुरुषों के लिए दाहिनी ओर के तिल शुभ माने गए हैं और स्त्रियों के लिए बाएं ओर के तिल अच्छा फल देने वाले होते हैं। वहीं कई बार शुभ तिल का प्रभाव कोई अशुभ तिल कम कर देता है। इसी वजह से कोई अच्छा फल देने वाला तिल हो तब भी हमें परेशानियां ही उठाना पड़ती है।

यदि किसी पुरुष के दाहिनी हाथ पर तिल हो तो ऐसे व्यक्ति के धन की कमी नहीं रहती है। वह हमेशा सुखी जीवन व्यतीत करता है। उसकी सभी जरूरतें अवश्य ही पूरी हो जाती हैं।

किसी पुरुष के दाहिने गाल पर तिल होना भी शुभ संकेत है। ऐसे व्यक्ति पैसों से जुड़ी समस्याओं से दूर ही रहते हैं। इन्हें अधिकतर सफलताएं ही प्राप्त होती हैं।

यदि किसी के व्यक्ति के माथे के दाहिने ओर तिल हो तो उसका धन हमेशा बढ़ता रहेगा। वह ऐश्वर्य के साथ जीवन व्यतीत करेगा।

दाहिनी भुजा पर तिल वाले व्यक्ति को समाज में और परिवार में मान-सम्मान मिलता है।

नाक पर तिल व्यक्ति को अत्यधिक यात्राएं करनी पड़ती हैं।

किसी पुरुष के दाहिने पैर पर तिल हो तो ऐसा व्यक्ति बुद्धिमान होता है और बुद्धि के बल पर ही धन प्राप्त करता है।

सभी के शरीर पर अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न प्रकार के चिन्ह होते हैं। इन चिन्हों का ज्योतिष में गहरा महत्व बताया गया है। शरीर पर रहने वाले चिन्हों में तिल का महत्व काफी अधिक है।

शरीर पर तिल कहां है? इससे उस व्यक्ति के स्वभाव और भविष्य का अंदाजा लगाया जा सकता है।

ज्योतिष के अंतर्गत शरीर पर तिल हमारे स्वभाव दर्शाते हैं।

इस संबंध में ध्यान रखने योग्य बात यह है कि पुरुषों के लिए दाहिनी ओर के तिल शुभ माने गए हैं और स्त्रियों के लिए बाएं ओर के तिल अच्छा फल देने वाले होते हैं। वहीं कई बार शुभ तिल का प्रभाव कोई अशुभ तिल कम कर देता है। इसी वजह से कोई अच्छा फल देने वाला तिल हो तब भी हमें परेशानियां ही उठाना पड़ती है।

यदि किसी पुरुष के दाहिनी हाथ पर तिल हो तो ऐसे व्यक्ति के धन की कमी नहीं रहती है। वह हमेशा सुखी जीवन व्यतीत करता है। उसकी सभी जरूरतें अवश्य ही पूरी हो जाती हैं।

किसी पुरुष के दाहिने गाल पर तिल होना भी शुभ संकेत है। ऐसे व्यक्ति पैसों से जुड़ी समस्याओं से दूर ही रहते हैं। इन्हें अधिकतर सफलताएं ही प्राप्त होती हैं।

यदि किसी के व्यक्ति के माथे के दाहिने ओर तिल हो तो उसका धन हमेशा बढ़ता रहेगा। वह ऐश्वर्य के साथ जीवन व्यतीत करेगा।

दाहिनी भुजा पर तिल वाले व्यक्ति को समाज में और परिवार में मान-सम्मान मिलता है।

नाक पर तिल व्यक्ति को अत्यधिक यात्राएं करनी पड़ती हैं।

किसी पुरुष के दाहिने पैर पर तिल हो तो ऐसा व्यक्ति बुद्धिमान होता है और बुद्धि के बल पर ही धन प्राप्त करता है।

हमारे शरीर पर कई प्रकार के जन्मजात अथवा जीवन काल के दौरान निकले निशान पाए जाते हैं। जिन्हे हम तिल, मस्सा एवं लाल मस्सा के नाम से सुनते आए हैं। शास्त्रों के अनुसार हमारे शरीर पर पाए गए यह निशान हमारे भविष्य और चरित्र के बारे में बहुत कुछ दर्शाते हैं। मैं आज शरीर पर इन तिलों के होने का महत्त्व वर्णन कर रहा हूँ।

अपने २० साल के अनुभव से तथा अनेक लोगों पर परिक्षण करने के उपरांत ही मैं इस अनुभव को आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ।

तिल तथा मस्से का होना दोनों एक ही प्रभाव देता है। तिल आपके सभी प्रकार के शारीरिक, आर्थिक एवं चरित्र के बारे में काफी कुछ दर्शा देता है। तिल का प्रभाव हमारे लिंग से कभी भी अलग नही होता। तिल का प्रभाव स्त्री एवं पुरूष दोनों के लिए एक सामान होता है.

मस्तक ,माथा अथवा ललाट :

१> ललाट के मध्य भाग में तिल का होना भाग्यवान माना जाता है।

२> ललाट पर बाएँ भंव के ऊपर तिल होना विलासिता को दर्शाता है। ऐसे व्यक्ति अपने रखे धन सम्पति को विलासिता में लिप्त होकर बरबाद कर देते हैं।

३> ललाट पर दाँए भंव के ऊपर तिल होना भी विलासिता को दर्शाता है परन्तु ऐसे व्यक्ति स्वयं धन अर्जित कर के उसे बरबाद कर देते हैं।

कान अथवा कर्ण:

१> बाएँ कान के सामने की तरफ़ कहीं भी तिल का होना व्यक्ति के रहस्यमयी होने के गुण को दर्शाता है। साथ ही साथ ऐसे व्यक्ति का विवाह अधिक उम्र होने के पश्चात् होता है।

२> बाएँ कान के पीछे की तरफ़ तिल का होना व्यक्ति के ग़लत कार्यो के प्रति झुकाव को दर्शाता है।

३> दाँए कान के सामने की तरफ़ कही भी तिल हो तो वह व्यक्ति बहुत कम आयु में ही धनवान हो जाता है। साथ ही साथ व्यक्ति का जीवन साथी सुंदर होता है।

४> दाँए कान के पीछे अगर तिल है तो यह तिल कान में किसी भी प्रकार के रोग होने की सम्भावना व्यक्त करता है।

आँख,नेत्र अथवा नयन:

१> बाएँ आँख के भीतर सफ़ेद भाग में तिल का होना चरित्र हीनता का सूचक है।

२> बाएँ आँख के पुतली पर तिल का होना भी चरित्र हीनता का सूचक है परन्तु इसका प्रभाव भीतर के तिल से कम होता है।

३> बाएँ आँख की नीचे की पलकों पर तिल होना व्यक्ति के आलसीपन और विलासी चरित्र को दर्शाता है। ४> दाँए आँख के भीतर सफ़ेद भाग में अगर तिल हो तो वह व्यक्ति भी चरित्रहीन होता है अथवा ऐसे व्यक्ति के जीवन का अंत या तो हत्या से होता है या फ़िर वह आत्मदाह कर लेता है

५> दाँए आँख के ऊपर का तिल आँखों से सम्बंधित रोग का सूचक है। एवं ऐसे व्यक्ति अविश्वासी होते हैं। ना यह किसी पर विश्वास करते है और न ही विश्वास के पात्र होते हैं।

६> दाँए आँख के नीचे की पलकों पर तिल का होना उस व्यक्ति के कम आयु से ही विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण का सूचक है।

नाक:

१> नाक के अग्र भाग पर तिल हो तो ऐसे व्यक्ति लक्ष्य बना कर चलने वाले होते हैं तथा किसी भी कार्य को उस समय तक नही करते जब तक की वह उस कार्य के लिए स्वयं को पूर्ण सुरक्षित महसूस न कर लें। साथ ही साथ यह व्यक्ति भी विपरीत लिंग के प्रति बहुत आकर्षित होता है।

२> इसके अलावा अगर नाक पर कहीं भी तिल हो तो व्यक्ति को नाक सम्बंधित कोई भी रोग हो सकता है।

३> नाक के नीचे (मूछ वाली जगह ) पर दाँए अथवा बाएँ अगर कहीं भी तिल हो वह व्यक्ति भी अधिक विलासी होगा तथा नींद बहुत अधिक पसंद करेगा।

होंठ:

१> उपरी होंठ के बाएँ तरफ़ तिल होना जीवनसाथी के साथ लगातार विवाद होने का सूचक है।

२> उपरी होंठ के दाँए तरफ़ तिल हो तो जीवनसाथी का पूर्ण साथ मिलता है।

३> निचले होंठ के बाएँ तरफ़ तिल होना किसी विशेष रोग के होने का सूचक होता है एवं ऐसे व्यक्ति अच्छे भोजन खाने तथा नए वस्त्र पहनने के शौकीन होते हैं।

४> निचले होंठ के दाँए तरफ़ तिल हो तो वह व्यक्ति अपने क्षेत्र में बहुत प्रसिद्दि प्राप्त करते हैं। साथ ही साथ इन्हे भोजन से कोई खास लगाव नही होता है। लेकिन विपरीत लिंग इन्हे अधिक आकर्षित करते हैं।

गाल:

१> जिस व्यक्ति के बाएँ गाल,नाक तथा ठुड्डी पर तीनो जगह तिल हो तो ऐसे व्यक्ति के पास स्थायी धन हमेशा रहता है। परन्तु अगर सिर्फ़ कही एक जगह ही तिल हो तो उसे पैसे का आभाव नही होता।

२> इसी प्रकार दाँए गाल,नाक तथा ठुड्डी पर तीनो जगह तिल हो तो ऐसे व्यक्ति भी धनवान होते हैं परन्तु घमंडी भी होते हैं। एसऐ व्यक्ति अपना धन किसी भी सामाजिक कार्य में नही लगते हैं। परन्तु अगर सिर्फ़ कही एक जगह ही तिल हो तो उसे पैसे का आभाव नही होता।

३> दाँए गाल पर तिल होना व्यक्ति के घमंडी होने का सूचक है।

कंठ,गला तथा गर्दन:

१> कंठ पर तिल का होना सुरीली आवाज़ का सूचक है तथा ऐसा व्यक्ति संगीत में रूचि रखता है।

२> गले पर और कहीं भी तिल होने वाले व्यक्ति संगीत के शौखिन होते हैं परन्तु उन्हे गले सम्बंधित रोग एवं कुछ व्यक्तियों में दमा जैसे रोग भी पाए गए हैं।

३> अगर गले के नीचे तिल हो तो ऐसा व्यक्ति गायक होता है। एवं उसकी आवाज़ बहुत सुरीली होती है। ४> गले के पीछे अगर तिल हो तो रीढ़ सम्बंधित रोग होते हैं।

सीना अथवा छाती:

1> बाएँ तरफ़ सीने में तिल का होना सीने या ह्रदय रोग की शिकायत होने एवं मध्यस्तर के जीवनसाथी का मिलना तथा अधिक उम्र में शादी होने की स्थिति को दर्शाता है। वक्ष स्थल पर यदि तिल हो तो वह व्यक्ति अधिक कामुक होता है और अनेको प्रकार की बदनामी को झेलता है।

२> दाँए तरफ़ सीने में तिल का होने से सुंदर जीवनसाथी मिलता है एवं यह व्यक्ति धनवान भी होता है। परन्तु यदि तिल वक्ष स्थल पर है तो इसका प्रभाव भी बाएँ तिल के सामान होता है।

उदर अथवा पेट:

१> उदर के बाएँ तरफ़ तिल होना पेट सम्बन्धी रोगों का सूचक है एवं अधिकतम लोगो में पाया गया है की उन्हे शल्य चिकित्सा भी करनी पड़ी है। ऐसे लोग भोजन अधिक नही कर पाते है।

२> उदर के दाँए तरफ़ तिल होना व्यक्ति के भोजन के प्रति अधिक लगाव को दर्शाता है। साथ ही साथ यह आरामदेह व्यक्ति होते हैं।

३> नाडी के बीचोबीच तिल का होना नाडी सम्बंधित रोगों तथा लकवे की बीमारी के होने का सूचक है।

४> नाडी के नीचे तिल यदि हो तो वह व्यक्ति कम आयु में ही मैथुन क्रिया में कमजोर हो जाता है एवं अप्पेंधिक्स और होर्निया जैसे रोगों से पीड़ित होने की संभावना अधिक रहती है।

गुप्तांग:

१> पुरूष के गुप्तांग पर यदि तिल हो तो वह पुरूष अधिक कामुक एवं एक से अधिक स्त्रियों के संपर्क में रहता है।साथ ही साथ उस व्यक्ति हो पुत्र प्राप्ति की सम्भावना अधिक होती है एवं ४५-५० के बीच की आयु में उसे शिथिल इन्द्रियों का रोग हो जाता है।

२> स्त्री के गुप्तांग पर यदि बाएँ तरफ़ तिल है तो वह स्त्री अधिक कामुक, कम आयु से ही विपरीत लिंग के संपर्क में अधिक रहना अथवा इन्द्रियों सम्बंधित रोगों से पीड़ित होती हैं।ऐसी स्त्रियाँ कन्या को अधिक जनम देती हैं।यदि तिल दाँए तरफ़ है तो यह भी अधिक कामुक होती है तथा गुप्तांग में किसी प्रकार की फंगल रोग से पीड़ित हो जाती हैं। परन्तु ऐसी स्त्रियाँ कन्या से अधिक पुत्र को जनम देती हैं। तिल के अग्र्र भाग में नीचे होने पर वह स्त्री भी कामुक होती है पर वह कम आयु में ही विधवा हो जाती है।

हाथ, उंगलियाँ अथवा भुजा:

१> हाथ के पंजे में अगर किसी भी ग्रह के स्थान पर यदि तिल है तो वह उसे ग्रह को कमजोर करता है तथा हानि ही करता है। तिल हाथपर अन्दर की तरफ हो या फ़िर बहार की तरफ़ प्रभाव यही रहता है। कुछ लोगों को यह भ्रान्ति है की हाथ के पंजे का तिल शुभ होता है। परन्तु ऐसा नही होता।

२> तर्जनी ऊँगली (पहली ऊँगली ) पर कहीं भी तिल हों तो ऐसा व्यक्ति कितना भी धन कमाए उसके पास पैसा कभी नही टिकता। ऐसे व्यक्ति को आँखों में कमजोरी की शिकायत रहती है तथा कम आत्मविश्वाशी होता है।

तर्जनी ऊँगली के नीचे बृहस्पत का पर्वत होता है इसलिए अगर उस पर्वत पर तिल है तो वह व्यक्ति अपने पूर्वजो के रखे हुए धन को भी गवा देता है तथा अंत समय में दरिद्र होके रहता है।

३> मध्यमा ऊँगली में कही भी तिल है तो यह व्यक्ति अनेको बार दुर्घटना का शिकार होता है, एवं पुलिस, थाना अथवा कचहरी का आना जाना लगा रहता है। ऐसे व्यक्ति को जीवन भर हर कार्य के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है साथ ही साथ कोई भी काम में स्थिर नही रह पता है। मध्यमा उंगली के नीचे शनि का पर्वत होता है। शनि पर यदि तिल है तो इस व्यक्ति की आकाल मृत्यु अवश्य निश्चित हैअन्यथा उसे आजीवन कारावास झेलना निश्चित है।

४> अनामिका ऊँगली में कही भी तिल होंतो ऐसे व्यक्ति का पढ़ाई में मन कम लगता है तथा उसकी प्रतिभा धूमिल होती है। ऐसे व्यक्ति ह्रदय सम्बन्धी रोग का शिकार होते हैं। अनामिका ऊँगली के नीचे सूर्य का पर्वत होता है। अगर इस पर्वत पर तिल है तो यह व्यक्ति अपने जीवन में किसी भी कार्य में सफल नही होता है। साथ ही साथ बदनामी भी झेलनी पड़ती है और मृत्यु ह्रदय रोग से होती है।

५> कानी अथवा कनिष्क ऊँगली पर यदि तिल हों तो ऐसे व्यक्ति का अपने जीवनसाथी के साथ हमेशा विवाद होता रहता है, साथ ही उसे चर्म रोग ( सफ़ेद दाग ) की शिकायत रहती है। कानी ऊँगली के नीचे बुद्ध का पर्वत होता है.यदि तिल इस पर्वत पर है तो ऐसे व्यक्ति की शल्य चिकित्सा जरुर होती है। ऐसे स्त्रियों के बच्चे भी शल्य चिकत्सा के बाद होते है।

६> अंगूठे पर तिल होने पर उस व्यक्ति को यश नही मिलता। अंगूठे के नीचे शुक्र का पर्वत होता है। यदि शुक्र पर्वत पर तिल है तो ऐसे व्यक्ति को गुप्त रोगों की शिकायत रहती है।ऐसे लोगों को पुत्र कष्ट होता है।

७> यदि जीवनरेखा पर तिल हो तो ऐसे व्यक्ति की कम आयु में ही किसी विशेष रोग से मृत्यु होती है। शुक्र और बृहस्पत पर्वत के बीच में मंगल का स्थान होता है, इस स्थान पर यदि तिल हो तो उस व्यक्ति को मानसिक बीमारी होने की सम्भावना रहती है। यदि दिमाग रेखा पर तिल हो ऐसे व्यक्ति भी मस्तक सम्बन्धी रोग से पीड़ित होते है साथ ही साथ नौकरी में अनेको प्रकार की बाधाएं होती हैं। ह्रदय रेखा पर यदि तिल हो तो ह्रदय सम्बन्धी रोगों के कारन कम आयु में ही मृत्यु होती है। चन्द्र रेखा पर तिल होने पर ऐसे व्यक्ति मानसिक रोग से पीड़ित होते है एवं इनके शरीर पर तापमान का अधिक प्रभाव होता है। राहू ग्रह के पर्वत पर तिल होने पर ऐसे व्यक्ति किसी भी व्यवसाय में सफल नही होते और आजीवन उदर रोग से परेशान रहते हैं। केतु ग्रह पर यदि तिल हो तो ऐसे व्यक्ति पर चरित्रहीनता का आरोप लगता रहता है तथा जोडो में आजीवन दर्द रहता है।

८ > मणिबंध ( कलाई ) पर अगर तिल हो तो ऐसे व्यक्ति को यश नही मिलता है। ऐसे व्यक्ति को पुत्र कष्ट भी होता है।

यदि यही सारे तिल हाथ, उँगलियों पर ऊपर की तरफ़ हो तो सारे वही प्रभाव रहते है परन्तु उनका असर ५० प्रतिषत कम हो जाता है। यदि तिल दाँए हाथ में है तो किसी पूजा या अनुष्ठान से उसके प्रभाव को कम किया जा सकता है परन्तु यदि वही तिल बाएँ हाथ में है तो उसका प्रभाव कम नही हो सकता और व्यक्ति को उस तिल के प्रभाव झेलने ही पड़ते हैं।

९>बाएँ भुजा ( कोहनी से नीचे ) यदि कही भी तिल है तो उस व्यक्ति की पढ़ाई में बाधा उत्पन होती है एवं कई लोगों में ऐसा भी पाया गया है की उनका मन पढ़ाई से भाग जाता है। कोहनी से ऊपर अगर कही भी तिल है तो यह व्यक्ति

शारीरिक रूप से कमजोर होता है।

१०> दाँए भुजा (कोहनि से नीचे ) यदि कही भी तिल है तो यह व्यक्ति अपने कलम की कमाई खाते है यानि अपना जीवन यापन स्वयम करते हैं। यदि कोहनी से ऊपर की तरफ़ कही भी तिल है तो यह व्यक्ति बहुत साहसी होता है।

११> यदि कोहनी पर तिल है तो उस व्यक्ति को हमेशा जोडो के दर्द की तकलीफ रहेगी। बाएँ हाथ के तिल का असर कभी ख़त्म नही हो सकता है। यदि दाँए हाथ की कोहनी पर तिल है तो पूजा या उपचार करने से कष्ट दूर हो सकता है।

पैर:

१> यदि पैर पर भी हाथ की तरह उन्ही जगह पर तिल है तो सारे प्रभाव हाथ जैसे ही होते है। परन्तु माना गया है की हाथ के तिल का प्रभाव पैर के तिल से ज्यादा होता है।

२> बाएँ पैर की जांघ पर यदि तिल हो तो यह व्यक्ति भोगी होता है। एवं कुछ लोगों में बवासीर होने की शिकायत भी पाई गई है। दाँए पैर की जांघ पर यदि तिल हो तो ऐसे व्यक्ति भी भोगी विलासी होते है। ऐसे व्यक्तियों को विपरीत लिंग के प्रति अधिक आकर्षण रहता है।

३> यदि घुटने पर तिल हो तो जोडो के दर्द अथवा मूत्र सम्बन्धी रोग हो सकते हैं।

पीठ:

पीठ के रीढ़ के दाए हिस्से पर उपर की तरफ़ यदि तिल हो तो यह व्यक्ति धनवान होता है एवम अपनो द्वारा अनेको बार मुसीबत आने पर मदद पता है.दाए ओर कमर से उपर यदि तिल हो तो ऐसा व्यक्ति खाने पीने का शौखिन होता है। तथा पेट के रोगों से ग्रस्त रह सकता है।यदि तिल कमर पर दाईं तरफ़ हो तो यह व्यक्ति अधिक कामुक होता है.बाएँ तरफ़ ऊपर की तरफ़ यदि तिल हो तो यह व्यक्ति बहुत कठिन परिश्रम के बाद ही पैसा कमाता है एवं अपने लोग इसे धोखा दिया करते हैं। यदि नीचे बैएँ तरफ़ तिल हो तो यह व्यक्ति आजीवन उदर रोग से ग्रस्त रहता है। तथा शल्य चिकित्सा की सम्भावना अधिक होती है। यदि तिल कमर पर हो तो यह व्यक्ति आजीवन कमर के दर्द से परेशान रहता है। तथा यदि स्त्री है तो उसे श्वेत प्रदर का रोग हो सकता है और पुरूष हो तो स्वप्नदोष की बेमारी अधिक होती है। रीढ़ पर ऊपर से नीचे यदि कहीं भी तिल हो तो रीढ़ की बीमारी या शरीर में जोडो के दर्द की शिकायत होती है। तथा ऐसे लोग हमेशा अपनों से ही धोखा खाते हैं और इनके पीठ पीछे हमेशा वार होता है। अधिकतर पाया गया है ऐसे लोग अपनों से ही धोखा खाते हैं।

हाथ के कांख:

दाँए कांख में यदि तिल हो तो यह व्यक्ति बहुत धनवान होता है तथा कंजूस भी होता है। बाएँ कांख में तिल हो तो यह व्यक्ति पैसे तो कमाते हैं लेकिन रोग और भोग में ही पैसो का नाश हो जाता है।

हिप:

यदि बाएँ हिप पर तिल हो तो यह व्यक्ति बवासीर सम्बन्धी या भगंदर सम्बन्धी रोगों से पीड़ित हो सकता है। यदि दाँए हिप पर तिल हो तो यह व्यक्ति व्यापारी है तो अपने व्यापर में बहुत आगे बढ़ता है

बरसात में जामुन खाने से होता है इन सारी बीमारियों का इलाज ------ _____________________________________________________ सामान्यत: बरसात के मौसम में आने वाला फल जामुन सेहत के लिए बहुत लाभदायक होता है। जामुन अम्लीय प्रवृति वाला होता है यही कारण है...

बरसात में जामुन खाने से होता है इन सारी बीमारियों का इलाज ------
_____________________________________________________

सामान्यत: बरसात के मौसम में आने वाला फल जामुन सेहत के लिए बहुत लाभदायक होता है। जामुन अम्लीय प्रवृति वाला होता है यही कारण है कि जामुन को नमक के साथ खाया जाता है। जामुन में ग्लूकोज और फ्रक्टोज पाया जाता है।जामुन में आयरन, विटामिन और फाइबर भी पाया जाता है इसमें खनिजों की मात्रा अधिक होती है।

इसके बीज में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम पाया जाता है। जामुन के इन्हीं गुणों के कारण हम आपको बताने जा रहे हैं जामुन से जुड़े कुछ खास नुस्खे जो रोगों में रामबाण की तरह काम करते हैं।......

- गठिया के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है। इसकी छाल को खूब उबालकर बचे हुए घोल का लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम मिलता है।

-गले के रोगों में जामुन की छाल को बारीक पीसकर सत बना लें। इस सत को पानी में घोलकर 'माउथ वॉश' की तरह गरारा करना चाहिए। इससे गला तो साफ होगा ही, साँस की दुर्गंध भी बंद हो जाएगी और मसूढ़ों की बीमारी भी दूर हो जाएगी।

-जामुन का गूदा पानी में घोलकर या शरबत बनाकर पीने से उल्टी, दस्त, जी-मिचलाना, खूनी दस्त और खूनी बावासीर में लाभ होता है। है। जामुन की गुठली के चूर्ण 1-2 ग्राम पानी के साथ सुबह लेने से मधुमेह रोग ठीक हो जाता है।

- इसके ताजे, नरम पत्तों को गाय के पाव-भर दूध में पीसकर प्रतिदिन सुबह पीने से खून बवासीर में लाभ होता है। जामुन का रस, शहद, आँवले या गुलाब के फूल के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर एक-दो माह तक प्रतिदिन सुबह के वक्त सेवन करने से रक्त की कमी एवं शारीरिक दुर्बलता दूर होती है। यौन तथा स्मरण शक्ति भी बढ़ जाती है।

-जामुन के एक किलोग्राम ताजे फलों का रस निकालकर उसमें ढाई किलोग्राम चीनी मिलाकर शरबत जैसी चाशनी बना लें। इसे एक साफ बोतल में भरकर रख लें। जब कभी उल्टी-दस्त या हैजा जैसी बीमारी की शिकायत हो, तब दो चम्मच शरबत और एक चम्मच अमृतधारा मिलाकर पिलाने से तुरंत राहत मिल जाती है।

- जामुन और आम का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से मधुमेह के रोगियों को लाभ होता है। जामुन की गुठली के चूर्ण को एक चम्मच मात्रा में दिन में दो-तीन बार लेने पर पेचिश में आराम मिलता है। पथरी हो जाने पर इसके चूर्ण का उपयोग चिकित्सकीय निर्देशन में दही के साथ करें।

- दांतों, मसूढ़ों से खून आता हो, पानी लगता हो, मसूढ़े फूलते हों तो इसके पत्तों की राख को दांतों पर मलने से मसूढ़े मजबूत होते हैं, दांत चमकीले बन जाते हैं।गला बैठ गया हो, आवाज बेसुरी हो गयी हो, गले में छाले हो गये हों तो इसके पत्ते पानी में उबाल कर उसे थोड़ा ठंडा कर उससे गरारे करें।

- रक्तप्रदर की समस्या होने पर जामुन की गुठली के चूर्ण में पच्चीस प्रतिशत पीपल की छाल का चूर्ण मिलाएं और दिन में दो से तीन बार एक चम्मच की मात्रा में ठंडे पानी से लें। गठिया के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है। इसकी छाल को खूब उबालकर बचे हुए घोल का लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम मिलता है।

Wednesday 18 June 2014

तुलसी अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई है वीर्यरक्षक चूर्ण बहुत कम खर्च में आप यह चूर्ण बना सकते हैं | कुछ सुखे आँवलों से बीज अलग करके उनके छिलकों को कूटकर उसका चूर्ण बना लो |.....

तुलसी अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई है
वीर्यरक्षक चूर्ण
बहुत कम खर्च में आप यह चूर्ण बना सकते हैं | कुछ सुखे आँवलों से बीज अलग करके उनके छिलकों को कूटकर उसका चूर्ण बना लो | आजकल बाजार में आँवलों का तैयार चूर्ण भी मिलता है | जितना चूर्ण हो, उससे दुगुनी मात्रा में मिश्री का चूर्ण उसमें मिला दो | यह चूर्ण उनके लिए भी हितकर है जिन्हें स्वप्नदोष नहीं होता हो |
रोज रात्रि को सोने से आधा घंटा पूर्व पानी के साथ एक चम्मच यह चूर्ण ले लिया करो | यह चूर्ण वीर्य को गाढ़ा करता है, कब्ज दूर करता है, वात-पित्त-कफ के दोष मिटाता है और संयम को मजबूत करता है |
नोट :- दूध और आवला चूर्ण में लगभग २ घंटे का अंतराल रखे यानि दूध और आवला चूर्ण साथ न ले और या रात में सिर्फ आवला चूर्ण ही ले पानी के साथ दूध उस रात न ले
गोंद का प्रयोग
6 ग्राम खेरी गोंद रात्रि को पानी में भिगो दो | इसे सुबह खाली पेट ले लो | इस प्रयोग के दौरान अगर भूख कम लगती हो तो दोपहर को भोजन के पहले अदरक व नींबू का रस मिलाकर लेना चाहिए |
तुलसी: एक अदभुत औषधि
प्रेन्च डॉक्टर विक्टर रेसीन ने कहा है : “तुलसी एक अदभुत औषधि है | तुलसी पर किये गये प्रयोगों ने यह सिद्ध कर दिया है कि रक्तचाप और पाचनतंत्र के नियमन में तथा मानसिक रोगों में तुलसी अत्यंत लाभकारी है | इससे रक्तकणों की वृद्धि होती है | मलेरिया तथा अन्य प्रकार के बुखारों में तुलसी अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई है |
तुलसी रोगों को तो दूर करती ही है, इसके अतिरिक्त ब्रह्मचर्य की रक्षा करने एवं यादशक्ति बढ़ाने में भी अनुपम सहायता करती है | तुलसीदल एक उत्कृष्ट रसायन है | यह त्रिदोषनाशक है | रक्तविकार, वायु, खाँसी, कृमि आदि की निवारक है तथा हृदय के लिये बहुत हितकारी है |

इसका अपमान / अनादर न करें तुलसी के तंत्रिकीय और औषधीय उपयोग...[१] तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ लेने से शीघ्र वीर्य पतन अथवा वीर्य की कमी की समस्या दूर होती है |...

इसका अपमान / अनादर न करें
तुलसी के तंत्रिकीय और औषधीय उपयोग...

[१] तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ
लेने से शीघ्र वीर्य पतन अथवा वीर्य की कमी की समस्या दूर
होती है |

[२] तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ
लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में
बढोतरि होती है।

[३] मासिक धर्म में अनियमियता:: जिस दिन मासिक आए उस
दिन से जब तक मासिक रहे उस दिन तक तुलसी के बीज 5-5
ग्राम सुबह और शाम पानी या दूध के साथ लेने से मासिक
की समस्या ठीक होती है और जिन महिलाओ को गर्भधारण में
समस्या है वो भी ठीक होती है

[४] तुलसी के पत्ते गर्म तासीर के होते है पर सब्जा शीतल
होता है . इसे फालूदा में इस्तेमाल किया जाता है . इसे भिगाने से
यह जेली की तरह फुल जाता है . इसे हम दूध या लस्सी के
साथ थोड़ी देशी गुलाब की पंखुड़ियां दाल कर ले तो गर्मी में बहुत
ठंडक देता है .इसके अलावा यह पाचन
सम्बन्धी गड़बड़ी को भी दूर करता है .यह पित्त घटाता है ये
त्रीदोषनाशक , क्षुधावर्धक है

[५] प्रतिदिन चार पत्तियां तुलसी की सुबह खाली पेट ग्रहण
करने से मधुमेह,रक्त विकार ,वाट-पित्त दोष आदि दूर होते हैं |

[६] तुलसी के समीप आसन लगाकर कुछ दिन बैठने से श्वास के
रोग ,अस्थमा आदि से जल्दी छुटकारा मिल सकता है |

[७] तुलसी का गमला रसोई के पास रखने से पारिवारिक कलह
समाप्त होती है |

[८] वास्तु दोष दूर करने के लिए तुलसी के पौधे अग्नि कोण
अर्थात दक्षिण पूर्व से लेकर वायव्य अर्थात उत्तर-पश्चिम
तक के खली स्थान में लगा सकते हैं ,अथवा गमले में रख सकते
हैं |

[९] पूर्व दिशा की खिड़की के पास रखने से जिद्दी पुत्र का हठ
दूर होता है |

[१०] पूर्व दिशा में रखे तुलसी के पौधे में से तीन पत्ते कुछ दिन
खिलाने से अनियंत्रित संतान आज्ञानुसार व्यवहार कर
सकती है |

[११] अग्नि कोण में स्थापित तुलसी के पौधे को कन्या अगर
नित्य अगर जल अर्पित कर प्रदक्षिणा करे तो उसके विवाह
की बाधाएं दूर होती हैं और शीघ्र उत्तम विवाह की संभावनाएं
बनती हैं |

[१२] दक्षिण -पश्चिम में रखे तुलसी के गमले पर
प्रति शुक्रवार को सुबह कच्चा दूध अर्पण करने और मिठाई
का भोग लगा किसी सुहागिन स्त्री को मीठी वस्तु देने से
व्यवसाय की सफ़लता बढती है और कारोबार ठीक होता है |

[१३] नित्य पंचामृत में तुलसी मिलाकर शालिग्राम का अभिषेक
करने से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं|
[१४] तुलसी के १६ बीज किसी सफ़ेद कपडे में बांधकर सोमवार
को कार्यस्थल पर सुबह दबा देने से वहां सम्मान
की वृद्धि होती है और अधिकारियों की अनुकूलता प्राप्त होती है|

[१५] ८ तुलसी के पत्ते और ८ काली मिर्च की पोटली बनाकर
बांह में बाँधने से भूत-प्रेत आदि की समस्या दूर होती है |

ध्यान रहे तुलसी पूजनीय हें , इसका अपमान / अनादर न करें !

जीवन खुशियों से भर जाए कौन सा रत्न धारण करें कि जीवन खुशियों से भर जाए... मेष राशि और मेष लग्न वालें कौन सा रत्न धारण करें? मूंगा:- मंगल लग्नेश और अष्टमेश होने से लग्न और अष्टम भाव को बलवान करेगा। आयु, स्वास्थ्य, बुद्धि, धन और यश में वृद्धि करेगा।....

जीवन खुशियों से भर जाए
कौन सा रत्न धारण करें कि जीवन खुशियों से भर जाए...

मेष राशि और मेष लग्न वालें कौन सा रत्न धारण करें?
मूंगा:- मंगल लग्नेश और अष्टमेश होने से लग्न और अष्टम भाव को बलवान करेगा। आयु, स्वास्थ्य, बुद्धि, धन और यश में वृद्धि करेगा।
माणिक:- सूर्य पंचमेश होने के कारण मंत्रणा शक्ति को बढ़ायेगा। सरकार से लाभ दिलायेगा। संतान प्राप्ति में सहयोग देगा। भाग्य में वृद्धि करेगा।
पुखराज:- नवमेश और द्वादशेश है। इन भावों की पुष्टि करेगा। राजनीति में सफलता। राज्य अधिकारियों को अनुकूल बनाएगा। धन, आयु, स्वास्थ्य में वृद्धि करेगा। पारिवारिक समस्याओं को भी दूर करेगा। भाग्य उज्जवल करेगा।
विशेष नोट:- परंतु षडबल में इष्ट फल और कष्ट फल के देखें बिना रत्न धारण नहीं करना चाहिए। जिस ग्रह के इष्ट फल ज्यादा हो वहीं रत्न धारण करना शुभ रहता है।

वृषभ राशि और वृषभ लग्न वालें कौन सा रत्न धारण करें?
हीरा:- शुक्र लग्नेश और षष्ठेश होने के कारण स्वास्थ्य और आयु में वृद्धि। जीवन साथी के स्वास्थ्य में लाभ। ऋण से मुक्ति। शत्रु समस्याओं का समाधान। धन स्रोतों में वृद्धि।
पन्ना:- द्वितीयेश और पंचमेश होने के कारण संतान सुख में वृद्धि। भाग्य में बढ़ोतरी। अकस्मात धन लाभ। शिक्षा में सफलता। वाणी दोषों से मुक्ति।
नीलम:- शनि नवमेश और दशमेश राजयोग कारक बनता है। स्नायु तंत्र मजबूत करेगा। टांगों में बल देगा। धन में वृद्धि कराएगा। मान-सम्मान व भाग्य को बढ़ाएगा।
विशेष नोट:- परंतु षडबल में इष्ट फल और कष्ट फल के देखें बिना रत्न धारण नहीं करना चाहिए। जिस ग्रह के इष्ट फल ज्यादा हो वहीं रत्न धारण करना शुभ रहता है।

मिथुन राशि और मिथुन लग्न वालें कौन सा रत्न धारण करें?
पन्ना:- बुध लग्नेश और चतुर्थेश बनता है। पन्ना धारण करने से बुध बलवान होगा। स्वास्थ्य ठीक रहेगा। मस्तिष्क रोगों से मुक्ति मिलेगी। जनता में वर्चस्व बढ़ेगा।
हीरा:- शुक्र पंचमेश और द्वादशेश होने के कारण यहां पंचम भाव का मुख्य फल प्रदान करता है। बुद्धि, विवेक, संतान सुख में वृद्धि व स्वास्थ्य में सुख देता है। दीर्घ आयु बनाता है। दांपत्य सुख में वृद्धि होती है।
नीलम:- शनि अष्टमेश और नवमेश बनता है। पिता के लिए योग कारक, आयु, धन और स्वास्थ्य में लाभकारी वृद्धि करता है। मकान का लाभ दिलाता है। सरकार में सफलता मिलती है।
विशेष नोट:- परंतु षडबल में इष्ट फल और कष्ट फल के देखें बिना रत्न धारण नहीं करना चाहिए। जिस ग्रह के इष्ट फल ज्यादा हो वहीं रत्न धारण करना शुभ रहता है।

कर्क राशि और कर्क लग्न वालें कौन सा रत्न धारण करें?
मोती:- चंद्रमा लग्न का स्वामी है। मानसिक शक्ति बढ़ेगी। मन शांत रहेगा। वाणी में मधुरता आएगी। रक्त विकार से मुक्ति मिलेगी। सेवा भाव जागृत होगा। संतान के भाग्य में वृद्धि होगी।
मंूगा:- मंगल पंचम और दशम भाव का स्वामी होकर संतान सुख में वृद्धि करेगा। पति के कार्यों में लाभ की आशा भी जगाता है। सूझबूझ में वृद्धि करेगा। धन और भाग्य में बढ़ोतरी होगी।
पुखराज:- बृहस्पति छठे और नवम भाव का स्वामी होकर आय में वृद्धि, स्वास्थ्य में सुधार व सरकार से लाभ दिलाएगा। ननिहाल पक्ष से भी सुख की प्राप्ति होती है।
विशेष नोट:- परंतु षडबल में इष्ट फल और कष्ट फल के देखें बिना रत्न धारण नहीं करना चाहिए। जिस ग्रह के इष्ट फल ज्यादा हो वहीं रत्न धारण करना शुभ रहता है।

सिंह राशि और सिंह लग्न वालें कौन सा रत्न धारण करें?
माणिक:- सूर्य लग्न का स्वामी होकर सरकार से लाभ दिलाएगा। मान-सम्मान में वृद्धि कराएगा। पाचन शक्ति, हार्ट व हड्डी संबंधी परेशानियों से छुटकारा दिलाएगा। धन आयु कीर्ति में बढ़ोतरी होगी।
पुखराज:- पंचम और अष्टम भाव का स्वामी होकर धन और भाग्य में वृद्धि करेगा। अमाशय संबंधी सभी रोगों से मुक्ति दिलाएगा।
मंूगा:- चतुर्थ और नवम भाव का स्वामी होकर राजकारक योग बनाता है। धन, यश, सुख, संपत्ति पदोन्नति और भाग्य में वृद्धि करेगा।
विशेष नोट:- परंतु षडबल में इष्ट फल और कष्ट फल के देखें बिना रत्न धारण नहीं करना चाहिए। जिस ग्रह के इष्ट फल ज्यादा हो वहीं रत्न धारण करना शुभ रहता है।

कन्या राशि और कन्या लग्न वालें कौन सा रत्न धारण करें?
पन्ना:- लग्नेश और दशमेश होकर पुरुषार्थ में वृद्धि करेगा। पिता के कारोबार को बढ़ाएगा। आंतों के रोग से छुटकारा दिलाएगा। राज्य सत्ता में लाभ।
नीलम:- शनि देव और पांचवें और छठे भाव के स्वामी होकर स्वास्थ्य, संतान और धन में वृद्धि करेगा।
हीरा:- दूसरे और नवम भाव का स्वामी बनकर भाग्य में वृद्धि करेगा। जीवन को उन्नति के मार्ग पर लेकर जाएगा। रोगों से छुटकारा दिलाएगा। शिक्षा में उन्नति के अवसर। संगीत और कला के क्षेत्र में आगे बढ़ाएगा।
विशेष नोट:- परंतु षडबल में इष्ट फल और कष्ट फल के देखें बिना रत्न धारण नहीं करना चाहिए। जिस ग्रह के इष्ट फल ज्यादा हो वहीं रत्न धारण करना शुभ रहता है।

तुला राशि और तुला लग्न वालें कौन सा रत्न धारण करें?
हीरा:- लग्न और अष्टम भाव का स्वामी होकर दांपत्य सुख, आयु और स्वास्थ्य के लिए शुभ रहता है।
नीलम:- चौथे और पांचवें भाव का स्वामी होकर माता के सुख को बढ़ाएगा। सामाजिक सेवाओं से जोड़ेगा। पैतृक संपत्ति का लाभ, राजनीति में सफलता, धन पद, सुख सभी में वृद्धि करेगा।
पन्ना:- नवम और द्वादश भाव का स्वामी होकर भाग्य में वृद्धि, अध्यात्मक रूझान, सरकार से लाभ व उच्च पदो की प्राप्ति का प्रबल योग दिलाता है।
विशेष नोट:- परंतु षडबल में इष्ट फल और कष्ट फल के देखें बिना रत्न धारण नहीं करना चाहिए। जिस ग्रह के इष्ट फल ज्यादा हो वहीं रत्न धारण करना शुभ रहता है।

वृश्चिक राशि और वृश्चिक लग्न वालें कौन सा रत्न धारण करें?
मूंगा:- मंगल लग्न और छठे भाव का स्वामी होकर पुरुषार्थ में वृद्धि करेगा। शत्रु षडयंत्र से बचाएगा। स्वास्थ्य और धन का लाभ, रक्त संबंधी बीमारियों से छुटकारा और पिता के भाग्य में भी वृद्धि करेगा।
पुखराज:- बृहस्पति दूसरे और पांचवें भाव का स्वामी होने से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता मिलेगी। लाभ, मान-सम्मान, शिक्षा में सफलता, धर्म में रुचि और सरकार से लाभ भी दिलाएगा।
मोती:- नवम भाव का स्वामी होकर पिता की आयु, स्वास्थ्य, धन और मानसिक शक्ति को मजबूत करेगा।
विशेष नोट:- परंतु षडबल में इष्ट फल और कष्ट फल के देखें बिना रत्न धारण नहीं करना चाहिए। जिस ग्रह के इष्ट फल ज्यादा हो वहीं रत्न धारण करना शुभ रहता है।

धनु राशि और धनु लग्न वालें कौन सा रत्न धारण करें?
पुखराज:- बृहस्पति लग्नेश और चौथे भाव का स्वामी होकर सुख और सौभाग्य में वृद्धि, मान-सम्मान में बढ़ोतरी, कारोबार में उन्नति के अवसर। बुद्धिमान व विवेकमान बनाता है। संतान के भाग्य में भी वृद्धि करता है।
मूंगा:- मंगल द्वादशेश और पंचम भाव का स्वामी होकर संतान सुख में वृद्धि, मजबूत याददाशत व पुरुषार्थ में वृद्धि, भाग्य में बढ़ोतरी, परिवार में वृद्धि करता है।
माणिक:- सूर्य नवमेश होने से स्वास्थ्य, आयु में लाभ। सरकार में वर्चस्व बढ़ाएगा। सात्विक कर्मों का उदय और रोगों से पीछा छुड़ाएगा।

मकर लग्न वालें कौन सा रत्न धारण करें?
नीलम:- शनि लग्नेश और दूसरे भाव का स्वामी बनकर धन, स्वास्थ्य, व्यापार और आयु में वृद्धि करेगा। वाणी में सुधार लाएगा।
हीरा:- शुक्र पंचम और दशम भाव का स्वामी होकर राजकारक योग बनाता है। राजनीति में सफलता, पिता के धन में वृद्धि, अध्यात्म में विशेष रूचि, आकस्मिक धन लाभ और दांपत्य सुख में बढ़ोतरी।
पन्ना:- छठे और नवम भाव का स्वामी होकर भाग्य में वृद्धि, स्वास्थ्य का लाभ, सरकार में सफलता, अकस्मात कार्यों में विशेष लाभ के योग, सौभाग्य में वृद्धि, नौकरी में पदोन्नति, जीवन साथी का पूर्ण सुख प्राप्त होता है।

कुंभ राशि और कुंभ लग्न वालें कौन सा रत्न धारण करें?
नीलम:- शनि बारहवें और लग्न का स्वामी होकर खर्चों में कमी करेगा। व्यापार में लाभ दिलाएगा। संतान सुख में बढ़ोतरी, शारीरिक रोगों से छुटकारा और भौतिक सुख साधनों का लाभ।
पन्ना:- बुध यहां पंचमेश व अष्टमेश होकर कारोबार में धन लाभ दिलाएगा। एक बात का ध्यान रखना, बुध की मूल त्रिकोण राशि कन्या यहां अष्टम भाव में पड़ेगी। इसीलिए यहां पन्ना सोच-समझ कर धारण करना चाहिए। फिर भी मैंने कई बार देखा है यहां बुध शोध के कार्यों में विशेष प्रबल योग बनाता है।
हीरा:- चतुर्थ और नवमेश होकर आयु, धनु व सरकारी उच्च पदों का लाभ दिलाता है। वाहन आदि का सुख व दु:खों को सुखों में बदलने की ताकत यहां हीरे में होती है।
विशेष नोट:- परंतु षडबल में इष्ट फल और कष्ट फल के देखें बिना रत्न धारण नहीं करना चाहिए। जिस ग्रह के इष्ट फल ज्यादा हो वहीं रत्न धारण करना शुभ रहता है।

मीन राशि और मीन लग्न वालें कौन सा रत्न धारण करें?
पुखराज:- गुरु यहां लग्नेश और दशमेश होकर व्यक्ति को सरकार से लाभ, शुभ कर्मों में वृद्धि, संतान के भाग्य में वृद्धि, धर्म में रुचि बढ़ाता है।
मोती:- चंद्रमा यहां पंचम भाव का स्वामी होकर माता के कष्ट को दूर करता है। साथ ही स्मरण शक्ति और विवेक में बढ़ोतरी करता है।
मूंगा:- दूसरे और नवम भाव का स्वामी होकर धन, विद्या, आयु, स्वास्थ्य सुख को बढ़ाएगा। साथ ही नेत्र रोगों से मुक्ति दिलाता है। बड़े मामा से धन लाभ होता है और पत्नी का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है।
विशेष नोट:- परंतु षडबल में इष्ट फल और कष्ट फल के देखें बिना रत्न धारण नहीं करना चाहिए। जिस ग्रह के इष्ट फल ज्यादा हो वहीं रत्न धारण करना शुभ रहता है।

अनियमित दिनचर्या और जीवन शैली की वजह से होने वाला तनाव आज शहरी आबादी और खासकर युवाओं में हाई ब्लड प्रेशर( हाईपरटेंशन) की समस्या के रूप में तेजी से सामने आ रहा है। .....

अनियमित दिनचर्या और जीवन शैली की वजह से होने वाला तनाव आज शहरी आबादी और खासकर युवाओं में हाई ब्लड प्रेशर( हाईपरटेंशन) की समस्या के रूप में तेजी से सामने आ रहा है। थोड़ी सी टेंशन या जम्मेदारियों को पूरा न कर पाने का दबाव इस बीमारी को लगातार बढ़ावा दे रहा है। आयुर्वेद के कुछ घरेलू नुस्खों को अपनाकर आप काफी हद तक इस बीमारी से बच सकते हैं :
-खसखस का सेवन भी ब्लडप्रेशर के रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। तरबूज के बीज की गिरि और खसखस दोनों को बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें रोज सुबह-शाम एक चम्मच खाली पेट पानी के साथ लें। यह प्रयोग करीब एक महीने तक नियमित करें।
-ताजे दही को ब्लडप्रेशर पेशेन्ट्स के लिए बहुत फायदेमंद माना गया है। एक शोध के अनुसार ब्लडप्रेशर से परेशान लोगों को खाने के साथ दोनों समय ताजा दही खाना चाहिए। खाने में उचित मात्रा या कुछ अधिक दही का सेवन करने से हाई ब्लड प्रेशर के खतरे को कम किया जा सकता है।
- हाल ही सामने आने वाले एक चिकित्सा अनुसंधान में बताया गया है कि लाल टमाटरों का प्रयोग उच्च रक्तचाप और ख़ून में पाए जाने वाले कोलेस्ट्रोल के स्तर को कम करने में सहायक सिद्ध होता है।इसीलिए उच्चरक्तचाप से पीडि़त लोगों को रोजाना खाने के साथ सलाद के रूप में टमाटर जरूर खाना चाहिए।

Monday 16 June 2014

बीमारियों पर कंट्रोल किया जा सकता है। ध्यान की शुरुआत के पूर्व की क्रिय मैं क्यों सोच रहा हूँ' इस पर ध्यान दें हाल ही में पेनीसिल्‍वेनिया विश्विविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा कराई गए एक शोध में ध्यान व योग से व्यक्तित्व के विकास की बात मानी गई है। ....

बीमारियों पर कंट्रोल किया जा सकता है।
ध्यान की शुरुआत के पूर्व की क्रिय

मैं क्यों सोच रहा हूँ' इस पर ध्यान दें

हाल ही में पेनीसिल्‍वेनिया विश्विविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा कराई गए एक शोध में ध्यान व योग से व्यक्तित्व के विकास की बात मानी गई है। इस शोध में शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि किस तरह से ध्यान द्वारा मस्तिष्क को तीन चरणों में एकाग्रचित किया जा सकता है। साथ ही सक्रिय रहते हुए मस्तिष्‍क को प्रत्येक बिंदु पर क्रियाशील बनाया जा सकता है।

इस शोध के दौरान प्रतिभागियों को एक महीने तक 30 मिनट की ध्यान की अवस्था में रखा गया। एक महीने के पश्चात उनके मस्तिष्क की क्रियाओं को मापा गया और उनकी मानसिक गतिविधियों का निरीक्षण किया गया। इस शोध के निष्कर्ष स्वरूप इन प्रतिभागियों के मस्तिष्क और व्यवहार में काफी सकारात्मक परिवर्तन सामने आए। इस शोध का विस्तृत निष्कर्ष ‘कॉग्नीटिव, इफेक्ट्स एंड बिहेवियरल न्यूरोसाइंस’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

वर्तमान में ध्यान की आवश्यकता बढ़ गई है। व्यग्र और बैचेन मन के चलते जहाँ व्यक्ति मानसिक तनाव से घिरा रहता हैं वहीं यह मौसमी और अन्य गंभीर रोगों की चपेट में भी आ जाता है। दवाई से कुछ हद तक रोग का निदान हो जाता है, लेकिन जीवनभर कमजोरी रह जाती है। ध्यान तो दवा, दुआ और टॉनिक तीनों का काम करता है।

ध्यान की‍ शुरुआती हिदायत : शुरुआत में शरीर और मन की सभी हलचलों पर ध्यान दें और उनका निरीक्षण करें। शरीर पर, मन पर और आस-पास जो भी घटित हो रहा है उस पर गौर करें। विचारों के क्रिया-कलापों पर और भावों पर चुपचाप गौर करें। इस ध्यान देने के जरा से प्रयास से ही चित्त स्थिर होकर शांत होता है तथा जागरूकता बढ़ती। वर्तमान में जीने से ही जागरूकता जन्मती है। भविष्य की कल्पनाओं और अतीत के सुख-दुख में जीना ध्यान विरूद्ध है।

ध्यान की शुरुआती विधि : प्रारंभ में सिद्धासन में बैठकर आँखें बंद कर लें और दाएँ हाथ को दाएँ घुटने पर तथा बाएँ हाथ को बाएँ घुटने पर रखकर, रीढ़ सीधी रखते हुए गहरी श्वास लें और छोड़े। सिर्फ पाँच मिनट श्वासों के इस आवागमन पर ध्यान दें कि कैसे यह श्वास भीतर कहाँ तक जाती है और फिर कैसे यह श्वास बाहर कहाँ तक आती है। पूर्णत: भीतर कर मौन का मजा लें। मौन जब घटित होता है तो व्यक्ति में साक्षी भाव का उदय होता है। सोचना शरीर की व्यर्थ क्रिया है और बोध करना मन का स्वभाव है।

ध्यान की अवधि : उपरोक्त ध्यान विधि को नियमित 30 दिनों तक करते रहें। 30 दिनों बाद इसकी समय अवधि 5 मिनट से बढ़ाकर अगले 30 दिनों के लिए 10 मिनट और फिर अगले 30 दिनों के लिए 20 मिनट कर दें। शक्ति को संवरक्षित करने के लिए 90 दिन काफी है। इससे जारी रखें।

सावधानी : ध्यान किसी स्वच्छ और शांत वातावरण में करें। ध्यान करते वक्त सोना मना है। ध्यान करते वक्त सोचना बहुत होता है। लेकिन यह सोचने पर कि 'मैं क्यों सोच रहा हूँ' कुछ देर के लिए सोच रुक जाती है। सिर्फ श्वास पर ही ध्यान दें और संकल्प कर लें कि 20 मिनट के लिए मैं अपने दिमाग को शून्य कर देना चाहता हूँ।

ध्यान के लाभ : जो व्यक्ति ध्यान करना शुरू करते हैं, वह शांत होने लगते हैं। यह शांति ही मन और शरीर को मजबूती प्रदान करती है। ध्यान आपके होश पर से भावना और विचारों के बादल को हटाकर शुद्ध रूप से आपको वर्तमान में खड़ा कर देता है।

ध्यान से ब्लडप्रेशर, घबराहट, हार्टअटैक जै‍सी बीमारियों पर कंट्रोल किया जा सकता है। ध्यान से सभी तरह के मानसिक रोग, टेंशन और डिप्रेशन दूर होते हैं। ध्यान से रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता हैं। स्मृति दोष में लाभ मिलता है। तेज और एकाग्र दिमाग के लिए ध्यान करना एक उत्तम और कारगर उपाय है। ध्यान से आँखों को राहत मिलती है जिससे उसकी देखने की क्षमता का विकास होता है।

यह उतना ही प्रभावकारी भी है. सरदर्द के लिए अचूक "प्राकृतिक चिकित्सा "मात्र पांच मिनट में सरदर्द "गायब" ....................

यह उतना ही प्रभावकारी भी है.
सरदर्द के लिए अचूक "प्राकृतिक चिकित्सा "मात्र पांच मिनट में सरदर्द "गायब"
=================
नाक के दो हिस्से हैं दायाँ स्वर और बायां स्वर जिससे हम सांस लेते और छोड़ते हैं ,
पर यह बिलकुल अलग - अलग असर डालते हैं और आप फर्क महसूस कर सकते हैं |
दाहिना नासिका छिद्र "सूर्य" और बायां नासिका छिद्र"चन्द्र" के लक्षण को दर्शाता है
या प्रतिनिधित्व करता है |
सरदर्द के दौरान, दाहिने नासिका छिद्र को बंद करें और बाएं से सांस लें|
और बस ! पांच मिनट में आपका सरदर्द "गायब" है ना आसान ?? और यकीन मानिए
यह उतना ही प्रभावकारी भी है..
=================
अगर आप थकान महसूस कर रहे हैं तो बस इसका उल्टा करें...
यानि बायीं नासिका छिद्र को बंद करें और दायें से सांस लें ,और बस ! थोड़ी ही देर में "तरोताजा" महसूस करें |
=================
दाहिना नासिका छिद्र "गर्म प्रकृति" रखता है और बायां "ठंडी प्रकृति"
Aधिकांश महिलाएं बाएं और पुरुष दाहिने नासिका छिद्र से सांस लेते हैं और तदनरूप क्रमशः ठन्डे और गर्म प्रकृति के होते हैं सूर्य और चन्द्रमा की तरह |
================
प्रातः काल में उठते समय अगर आप बायीं नासिका छिद्र से सांस लेने में बेहतर
महसूस कर रहे हैं तो आपको थकान जैसा महसूस होगा ,तो बस बायीं नासिका
छिद्र को बंद करें, दायीं से सांस लेने का प्रयास करें और तरोताजा हो जाएँ |
================
अगर आप प्रायः सरदर्द से परेशान रहते हैं तो इसे आजमायें ,दाहिने को बंद कर
बायीं नासिका छिद्र से सांस लें
बस इसे नियमित रूप से एक महिना करें और स्वास्थ्य लाभ लें |
तो बस इन्हें आजमाइए और बिना दवाओं के स्वस्थ महसूस करें

Friday 13 June 2014

LIFE VAN BE CHANGED....IF U WANT.........K...NAM KI FILE BANWAOO....EK BAR JAROR...

हमेशा चिंता करते हुए जीते हैं जिन व्यक्ति का जन्म किसी भी महीने की 5,14,व 23 तारीख को हुआ हो उनका मूलांक 5 होता है. मूलांक 5 का मुख्य ग्रह बुध है.......

हमेशा चिंता करते हुए जीते हैं
जिन व्यक्ति का जन्म किसी भी महीने की 5,14,व 23 तारीख को हुआ हो उनका मूलांक 5 होता है. मूलांक 5 का मुख्य ग्रह बुध है, जो बुद्धि का प्रतीक है. इस मूलांक के व्यक्ति बहुत सचेत एवं विनोद प्रिय, झगडों से दूर रहने वाले तथा ज्ञान से पूर्ण होते हैं. मूलांक 5 के लोगों में कुछ लोग हठी स्वभाव के भी होते हैं, यह जन्म-जात भाग्यशाली होते हैं. इस मूलांक वाले व्यक्ति विलक्षण प्रतिभा और सुझबुझ वाले होते है .विचारवान ,बुद्धिमान ,विनोदप्रिय ,और भौतिक सुखों का ग्रह करने वाले होते हैं. बुध के प्रभाव के कारण इनमें तर्कशास्त्र के गुण विराजमान होते हैं यह एक सफल व्यापारी हो सकते हैं.
मूलांक पांच के स्वाभाव और गुण |
इस मूलांक वाले व्यक्तियों का बौद्धिकता के प्रति झुकाव होता है .विचारों और निर्णय लेने मे ये व्यक्ति निपुण होते है .ऐसे व्यक्ति परिश्रम करने से करने से बचते है .
मूलांक पांच शीघ्रता से धन कमा लेने के स्रोत खोजने का प्रयत्न करते हैं. धनोपार्जन के नये रास्ते और तरीके खोजने का प्रयास करते हैं. मूलांक 5 वालों के स्वभाव में चंचलता होती है तथा यह जल्दबाजी से कार्य करते हैं.
मूलांक 5 की विशेषताएं |
मूलांक पांच वालों के विचारों में तेजी देखी जा सकती है. इनके विचार बहुत ही द्रुतगामी होते है .निर्णय तुरंत लेते है तथा कार्य को बड़ी तेजी के साथ पूर्ण करते है .
इन्हें अधिक धन कमाने की चाह होती है तथा ऐसे कार्य करने मे विश्वास होता है जिससे धन जल्दी प्राप्त हो सके, इन्हें व्यवसाय करना अच्छा लगता है बंधी बंधाई नौकरी ओर आय इन्हें पसंद नहीं होती अत: यह बहु-व्यवसायी होते हैं व एक साथ कई कार्य करने की चाहत रखते हैं.
मूलांक पांच के व्यक्ति में कर्मठता का वास होता है यह अपना काम दूसरों पर नहीं छोड़ते इन्हें नए कार्य करने का एवं सिखने का शौक होता है. किसी भी कार्य को बहुत ही जल्दी सीख लेते है. यह कर्म तो करते है लेकिन भाग्यवादी भी होते है और भाग्य के महत्व को स्वीकार करते हैं.
बुध-ग्रह के प्रभाव स्वरूप इनमें वाक्‌पटुता एवं तर्कशक्ति अच्छी होती है इससे यह लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं.
ऐसे रोजगार की ओर उन्मुख होते हैं जिसमें कम मेहनत तथा शीघ्र सफलता से अधिक लाभ प्राप्त हो. बुध से प्रभावित जातक कुशल व्यवसायी, बुद्धिमान, विद्वान, सट्‌टेबाज तथा शीघ्र लाभ होने वाले व्यवसाय की ओर विशेष आकर्षित होते हैं.
मूलांक 5 की कमियां |
आवश्यकता से अधिक कार्य करने से इन्हें बचने का प्रयास करना चाहिए, अधिक मानसिक एवं शारीरिक श्रम करने से स्नायु दुर्बलता से पीड़ित हो सकते हैं व मूर्छा आदि रोग होने की आशंका उत्पन्न हो सकती है तथा व्यक्ति को चिड़चिडा़पन और गुस्सा अधिक आता है. बुध ग्रह स्नायु मंडल का अधिष्ठाता है और इससे प्रभावित व्यक्ति अपनी स्नायविक क्रियाओं का अधिक व्यय कर लेते हैं.
मूलांक 5 के व्यक्ति बुध की भाँति चंचल और अस्थिर प्रकृति के होते हैं. हमेशा चिंता करते हुए जीते हैं, क्रोध वाले होते है.
मूलांक पांच वालों को घर से ज्यादा बाहर रहना अधिक पसंद आता है. मूलांक 5 वाले जातक अनेक बार सत्य को जानने के बावजूद भी अपना हठ नहीं छोड़ पाते तथा झूठी कल्पना तथा चिंता करते हुए जीवन में दुखी रहते हैं.
विद्या में इनकी अच्छी रुचि होती है, परन्तु ये पूर्ण विद्या ग्रहण नहीं कर पाते या बीच में ही अध्ययन कार्य छोड़ना पड़ता है.
मूलांक पांच वाले व्यक्तियों का शरीर नाज़ुक होता है अत: अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने की बहुत आवश्यकता होती है