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Tuesday 4 November 2014

चौथे भाव के शनि का फल ४- चौथे भाव के शनि का फल- चौथे भाव का मुख्य प्रभाव व्यक्ति के लिये काफ़ी कष्ट देने वाला होता है, माता, मन, मकान, और पानी वाले साधन, तथा शरीर का पानी इस शनि के प्रभाव से गंदला जाता है....


चौथे भाव के शनि का फल
४- चौथे भाव के शनि का फल-

चौथे भाव का मुख्य प्रभाव व्यक्ति के लिये काफ़ी कष्ट देने वाला होता है, माता, मन, मकान, और पानी वाले साधन, तथा शरीर का पानी इस शनि के प्रभाव से गंदला जाता है, आजीवन कष्टदेने वाला होने से पुराणो मे इस शनि वाले व्यक्ति का जीवन नर्क मय ही बताया जाता है। अगर यह शनि तुला,मकर,कुम्भ या मीन का होता है, तो इस के फ़ल में कष्टों मे कुछ कमी आ जाती है।यदि जन्म कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में होतो जातक गृहहीन औरमाता नहीं होती या उसको कष्ट होता हैं । ऐसाव्यक्ति बचपन में रोगी भी रहता है । यह भाव सुख का भाव माना जाता हैं । अतः इधर शनिबैठ कर सुख को नष्ट करता है । इसी कारण जातक सदा दुखी रहता है ।
चतुर्थ भावस्थ शनि मातृ हीन, भवन हीन बनाता है। ऐसा व्यक्ति घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी नहीं निभाता और अंत में संन्यासी बन जाता है। लेकिन, चतुर्थ में शनि तुला, मकर या कुंभ राशि का हो तो जातक को पूर्वजों की संपत्ति प्राप्त होती है।
जातक तथा उसके माता – पिता के मध्य हमेशा कलह रहती हैं । जातकबंधु विरोध तथा झूठे आरोपो से दुखी रहता है ।चौथे भाव में शनि पित्त तथा वायु विकार से ग्रस्त रखता है । चौथे घर में शनि से अनुमान लगाया जाता है की माता की म्रत्युपिता से पहले होती है ।अभिभावक से जातक के विचार और सोच एक दूसरे से विरुद्ध होते है । मेष , व्रष , सिंह , तुला , धनु , व्रश्चिक , मीन और मिथुन वालों को सरकारी सेवाए प्रदान करता है । जातक की रुचि वैज्ञानिकविषयों में होती हैं । जातक को व्यापार के प्रारम्भ में अनेक घोर संकट प्रकट होते है। जातक का 36वें तथा 56वें वर्ष उत्तम होते है । पश्चिम दिशा प्रगति के अनुकूल होती है । शनि अपनी राशि या अपनीउच्च राशि पर होतो दोषो का परिहार हो जाता है । पेत्रक स्थान त्यागने पर भीजातक की दुर्भाग्य से मुक्ति नहीं मिल पाती ।

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