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Tuesday 5 August 2014

अशुभता से बच सके ये संसार समय के अनुसार चलता है. लोगों के जीवन में शुभ अशुभ सभी प्रकार के समय का आवागमन होता हे रहता है. ये स्थितियां मानव जीवन पर अपना गहरा प्रभाव डालती हैं. हर व्यक्ति चाहता है की अपना कार्य किसी शुभ समय में करे ....


अशुभता से बच सके
ये संसार समय के अनुसार चलता है. लोगों के जीवन में शुभ अशुभ सभी प्रकार के समय का आवागमन होता हे रहता है. ये स्थितियां मानव जीवन पर अपना गहरा प्रभाव डालती हैं. हर व्यक्ति चाहता है की अपना कार्य किसी शुभ समय में करे और अशुभता से बच सके. 
बस इसी विषय पर आधारित है ये मेरा आज का लेख.
आज में आप को बताऊंगा पंचांग कहते किसे हैं और इसके अंग कौन कौन से है जिनके मेल से पंचांग बनता है.

पंचांग और उसके मूलभूत अंग
पंचांग का निर्माण वैदिक काल में हुआ. आर्यभट , वराहमिहिर और भास्कर आचार्य जैसे महान ज्योतिषी और ज्ञानी पंडितों ने पंचांग को विकसित किया.
पंचांग की सभी गणनाएं सूर्य सिद्धांत पर आधारित होती हैं.
पंचांग के अंग निम्नवत हैं
(१)तिथि (२)वार (३)नक्षत्र (४)योग (५)कारन 
इन्ही पांच अंगो को मिलकर इसका नाम पंचांग पड़ा.
हम इन्ही पांचो की गणना से दिन के शुभ और अशुभ समय को जानकार उसके अनुसार कार्यों को करते हैं और बाकी तो सुब प्रभु की इच्छा.
(अ) हिंदी माह-हिन्दू पंचांग को बारह चन्द्र माशो के आधार पैर वर्णित करते है . हिंदी माहो के नाम निम्नवत है
(१)चैत्र (२)बैसाख (३)ज्येष्ठा (४)असाढ़ (५)श्रावण (६)भाद्रपद (७)अश्विन (८)कार्तिक (९)मार्गशीर्ष (१०)पौषा (११)माघ (१२)फाल्गुन

(बी) तिथियाँ-चन्द्र मॉस में कुल ३० तिथियाँ होती है जिसमे १५ तिथियाँ शुक्ल पक्ष की और १५ तिथियाँ कृष्णा पक्ष की होती हैं. तिथियाँ के नाम निम्नवत हैं.
(१)प्रतिपदा (२)द्वितीय (३)तृतीया (४)चतुर्थी (५)पंचमी (६)षष्ठी (७)सप्तमी (८)अष्टमी (९)नवमी (१०)दशमी (११)एकादशी (१२)द्वादशी (१३)त्रयोदशी (१४)चतुर्दशी (१५)पूर्णिमा (३०)अमावश्या

टिप: जब हम तिथियों की गिनती करते हैं तो याद रखते हैं की इनकी गिनती की शुरुवात शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से की जाती है. 
पूर्णिमा को पंद्रहवी और अमावश्या को तीस्वी तिथि कहते हैं. जिस दिन सूर्या और चन्द्रमा में १८० अंश का अंतर(दूरी) होती है उस तिथि को पूर्णिमा तिथि कहते हैं. 
इस तिथि को सूर्या व चन्द्रमा आमने सामने होते हैं. इसके विपरीत जब सूर्या और चन्द्रमा में शून्य अंश का अंतर(दूरी) होती है उस तिथि को अमावश्या कहते हैं.
इस तिथि में सूर्या और चन्द्रमा एक ही स्थान पैर होते हैं.

(सी) नक्षत्र- ज्योतिष शास्त्र में २७ नक्षत्र हैं. ३६० अंश के भचक्र को २७ भागो में विभक्त करने पैर प्रत्येक भाग का मान १३-२० अंश आता है. एक नक्षत्र सामान्यता २४ घंटे तक रहता है.
परन्तु कभी-कभी १३-२० अंश पार करने में नक्षत्र २४ घंटे से काम या अधिक समय भी ले लेता है. चन्द्रमा को जो समय १३-२० अंश पार करने में लगता है उसे नक्षत्र कहते है. सवा दो नक्षत्रो की एक चन्द्र राशि होती है.
प्रत्येक नक्षत्र को चार चरणो में विभाजित किया गया है. कुल २७ नक्षत्रो में ६ नक्षत्र गण्डमूल के होते हैं. ग्रहो की संख्या ९ होती है और प्रतयेक गृह ३ नक्षत्रो का स्वामी होता है.
नक्षत्रो के नाम निम्नवत हैं.
(१) कृतिका (२)उत्तर फाल्गुनी (३)उत्तराषाढ़ा (४)रोहिणी (५)हस्ता (६) श्रवण (७)मृगशिरा (८)चित्रा (९)धनिष्ठा (१०)अश्लेषा (११) ज्येस्था (१२)रेवती (१३)पुनर्वसु (१४)विशाखा
(१५)पूर्व भाद्रपद (१६)भरणी (१७)पूर्व फाल्गुनी (१८)पूर्वाषाढ़ा (१९)पुष्य (२०)अनुराधा (२१)उत्तर भाद्रपद (२२)आर्द्रा (२३)स्वाति (२४)सतभिषा (२५)अश्विनी (२६)मघा (२७)मूल

(दी) योग- जब सूर्या और चन्द्रमा की गति में १३-२० अंश का अंतर होता है तो एक योग बनता है. योग संख्या में कुल २७ होते हैं. योग शुभ भी होते हैं और अशुभ भी.
योगों की आवश्यकता यात्रा,मुहूर्त आदि कार्यों में पड़ती है. योगों के नाम निम्नवत हैं
(१)विष्कुम्भा (२)प्रीती (३)आयुष्मान (४)सौभाग्य (५)शोभन (६)अतिगण्ड (७)सुकर्मा (८)घृति (९)शूल (१०)गांड (११)वृद्धि (१२)ध्रुव 
(१३)व्याघात (१४)हर्षण (१५)वज्रा (१६)सिद्धि (१७)व्यतिपात (१८)वरीयान (१९)परिधि (२०)शिव (२१)सिद्ध (२२)साध्य (२३)शुभ 
(२४)शुक्ल (२५)ब्रह्मा (२६)ऐन्द्र (२७)वैधृति

(इ) कारन- ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार एक योग दो कारन के मेल से बनता है. एक कारन आधे योग से बनता है. कारन की संख्या मूलतः ११ होती है.
कारणों के नाम निम्नवत है
(१)बव (२)बालव (३)कौलव (४)टाइटिल (५)गर (६)वणिज (७)वृष्टि (८)शकुनि (९)चतुष्पद (१०)नाग (११)किंस्तुघ्न 

(फ) वार- जब हम वार की बात करते हैं. तो स्पष्ट है की हर सप्ताह में सात वार होते हैं. वारों के नाम निम्नवत हैं.
(१)रविवार (२)सोमवार (३)मंगलवार (४)बुद्धवार (५)गुरूवार (६)शुक्रवार (७)शनिवार

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