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Saturday 9 August 2014

आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ। रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ, आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ।..................


आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ।
रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ,
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ।
माना की मुहब्बत का छिपाना है मुहब्बत,
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ।
जैसे तुझे आते हैं न आने के बहाने,
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ।
पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी,
तो रस्म-ओ-राहे दुनिया ही निभाने के लिए आ।
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम,
तू मुझ से खफा है तो ज़माने के लिए आ।
कुछ तो मेरे पिन्दार-इ-मुहब्बत का भरम रख,
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ।
एक उम्र से हूँ लज़्ज़त-इ-गिरिया से भी महरूम,
ऐ राहत-इ-जान मुझ को रुलाने के लिए आ।
अब तक दिल-इ-खुशफ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें,
ये आखिरी शम्में भी बुझाने के लिए

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