जिसे सुनकर भगवान के चरणों मैं प्रेमाभक्ति हो जाती है,,,
भक्ति की एसी महिमा विचार कर जो ज्ञानी मुनि हैं,, वे भी सब गुणों की ख़ान भक्ति को ही माँगते हैं,,, यह भक्ति का रहस्य किरपा से ही समझ मैं आ सकता है,,अन्यथा यह मन बुद्धि से परे अचिंत्य विषय है,,,
ज्ञान ओर भक्ति का ओर भी अंतर सुनिये,,,,, जिसे सुनकर भगवान के चरणों मैं प्रेमाभक्ति हो जाती है,,, ज्ञान मार्ग की कठिनाईयों व भक्ति मार्ग की सुगमता का वर्णन करते हैं,,,
यह जीव इशवर का अंश है,, यह अविनाशी,,, चेतन,, निर्मल ओर स्वभाव से ही सुख की राशि है,,,यह माया के वशीभूत होकर अपने सहज स्वरूप को भूल गया है,,, यह अपने आप को अविनाशी,, चेतन,, निर्मल ओर सुख स्वरूप आत्मा न मानकर जड़ देह मानने लग गया है,,, यह पाँच भोतिक शरीर मैं इतना आसक्त हो गया की अपने को शरीर से अलग अनुभव नहीं कर पाता जड़ शरीर ओर चेतन आत्मा मैं गाँठ पड़ गई ,,,यडपयेह गाँठ भी भर्म ही है,,,,वास्तविक नहीं,,,मैं शरीर हूँ ,इसी भर्म के कारण यह नाना प्रकार के दुख भोग रहा है,,पाप पुण्य के ,भँवर् मैं पड़ा है,,अपने आप को कभी सुखी कभी दुखी अनुभव करने लगा है,,जबकि सुख दुख दोनो ही माया का पसारा है,,वेद,, पुराणों,, मैं इस गाँठ को छुड़ाने के बहुत उपाय बताये हैं,परन्तु यह गाँठ छूटती नहीं,,,भगवान की शरण मैं यदि सचे मन से समर्पण करदे तो उनकी किरपा से एसा संयोग बन जाये तो शायेद यह छूट जाय.…। पं मं डी वशिष्ट। …
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