बर्ह्म को जानने के लिए बर्ह्म ही होना पड़ता है
बर्ह्म को जानने के लिए बर्ह्म ही होना पड़ता है ओर आत्मा के सिवाए ओर कोई बर्ह्म हो ही नहीं सकता कियूं की यदि बर्ह्म सूर्य है तो आत्मा एक किरण है यदि बर्ह्म सागर है तो आत्मा उसकी एक बूँद है ओर बूँद बिना सागर के रह नहीं सकती चलती ही रहती है पर्वत् से के बूँद चली ओर बूँदों के साथ मिल कर नली का रूप हुई फिर नाला बना ओर फिर नदी नदी से दरिया बना ओर दरिया सागर मैं मिल कर रह गया ओर सागरहो गया बाकी की बूँदें तालाब बाते छपड़ बने कुछ धरती मैं समा गये पीछे छूट गये......
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