MAA. AASKANKANDA JI.. |
पंचम नवरात्रीः- स्कंद माता " 4th April 2014"
मां दुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता का रूप है। दुर्गा पूजा के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा होती है। स्कंद कुमार अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। स्कंदमाता मातृस्वरूप में होती हैं तथा इनकी चार भुजाएं हैं। स्कंदमात अपनी दाहिनी ओर की ऊपरी भुजा से कुमार स्कंद को बालस्वरूप में गोद मे लेकर बैठी हैं तथा दाहिनी आरे की निचली भुजा में एवं बायीं ओर की ऊपरी भुजा में कमल सुशोभित है। माता की चौथी भुजा भक्तों को आशीर्वाद देने की मुद्रा में उठा हुआ है। मां के मुख पे सूर्य का इतना तेज है कि जो भी देखे देखता ही रह जाए। इनका वाहन सिंह है। जो व्यक्ति स्कंद माता की पूजा करता है, मां उससे खुश होकर उसे हर प्रकार का वरदान देती हैं।
व्यक्ति 28 साल की उम्र से लेकर 45 साल के उम्र के बीच में इंसान अपने जीवन में इतना निपुण हो जाता है अपने ज्ञान का इतना अच्छा उपयोग करने लगता है कि वो कार्तिकेय जी जैसे युवा शक्ति को अपने साथ जोड़ कर उनसे कैसे काम करवाना है और उनकी ताकत और अपने ज्ञान का प्रयोग करके जीवन मे कैसे ऊंची पदवी तक पहुंचना है। कैसे चाणक्य बनने से पहले का ज्ञान उसको प्राप्त होना आरंभ हो चुका होता है और शक्ति को प्रयोग करने का तरीका इंसान सीख जाता है। इन शक्तियों का प्रयोग इंसान इस तरह सीखता है जैसे किसी कंपनी के सीईओ पद पर बैठा इंसान या एमएलए से मंत्री बनने का सफर इसी उम्र में पूरा होता है। स्कंद माता इस प्रकार की शक्तियों की स्वामिनी हैं। 28 से 45 की उम्र में जो लोग जीवन में सफल नही हो पाते, एक ऊंची पदवी पाने से वंचित रह जाते है और उनको कामयाबी नही मिलती, यदि वे लोग आज से स्कंद माता की पूजा-अर्चना शास्त्रों के अनुसार आरंभ करके 18 महीने तक निरंतर हर रोज करते रहें तो उनको जीवन में अच्छा पद एवं मान-सम्मान प्राप्त होता है।
माता रानी सदा सुखी रखे.....पं म् डी वशिष्ट। ....
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