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Saturday, 5 April 2014

कौन सा ग्रह किस रोग के लिए जिम्मेदार है.......


कौन सा ग्रह किस रोग के लिए जिम्मेदार है.......
ग्रहों का रोग कारकत्व एवं उनका शरीर के विभिन्न अंगों पर प्रभाव
प्रत्येक ग्रह में विभिन्न रोगों को उत्पादन करने वाले निहित गुण होते हैं | कौन सा ग्रह किस रोग के लिए जिम्मेदार है या यह कहिये किस रोग का कारक है इस बात का जानना आवश्यक है | ताकि किसी व्यक्ति को कौन सी बीमारी होने की संभावना हे पता लगाया जा सके और उसका उचित उपचार किया जा सके | 
१.सूर्य : हृदय रोग,उदररोग,मस्तिष्क,स्नायु,जीवनी शक्ति,मर्मस्थल,हड्डियों में कमजोरी व स्राव, पित्त, उष्णज्वर, शरीर में दाह व शरीर का टूटना, सिरदर्द, मस्तक या मुख के पास कष्ट,पुरुष की दांयीं आँख व स्त्री की बाईं आँख, अस्त,शस्त्र व विष से पीड़ा,चौपाये पशुओं से भय,सर्प से भय,जलने का घाव,गंजापन,अपस्मार,मूर्छा,चक्कर आना,पीठ या पैरों में दर्द, रक्तप्रवाह के विकार तथा छोटी छोटी बातों पर चिडचिडापन ----इन समस्त पीडाओं की संभावना सूर्य निर्बल या पीड़ित होने पर रहती हैं |
२.चन्द्रमा : मानसिक विकार, विकलता (nervousness), छाती का विकार, पुरुष की बाईं आँख व स्त्री की दायीं आँख, कफ,फेफड़े,तपेदिक, शीतज्वर, जलोदर (dropsy), रक्ताल्पता, मन्दाग्नि,अतिसार,मुख रोग, तरल- बहाव (serous effusions),रक्तविकार,मूत्रकृच्छ,; नासिका,स्त्री को प्रदर,ऋतु की बीमारी, हिस्टीरिया; गर्भाशय,पाचनक्रिया तथा त्वचा संबंधी रोग -----इन रोगों व पीडाओं की संभावना चन्द्रमा के निर्बल या पीड़ित होने पर रहती है |
३.मंगल : पित्त ज्वर, तृषा, जानवरों द्वारा काटे जाना, आपरेशन, दुर्घटना, उच्चरक्तचाप , गर्भपात, रक्तविकार, मानसिक विचलन, कातरता, फोड़े-फुंसी, मज्जा का रोग, खुजली, देह्भंग(शरीर गिरा या टूटा सा रहना), घाव, कुष्ट, शोथ, कफविकार, अंडवृद्धि, अग्निदाह, स्नायविक उत्तेजना, पित्त वायु विकार, वमन, मृगी, ट्यूमर, अग्निदाह और शस्त्राघात और शरीर के ऊपर के भाग में पीड़ा आदि -----ये रोग व व्याधियाँ निर्बल वा पीड़ित मंगल के कारण होती हैं |
४.बुध : भ्रान्ति, खराब वचन, अत्यधिक पसीना आना, नसों का दर्द, संवेदनशीलता, बहरापन, नपुंसकता, आँत, जीभ, मुँह, गले व नाक से उत्पन्न रोग, चर्मरोग, मस्तिष्क व तंत्रिकाओं सम्बन्धी विकार, दमा, श्वास- नली में अवरोध(Bronchitis), नर्वस ब्रेकडाउन, ल्यूकोडर्मा,अग्नि में गिरने का भय, दु:स्वप्नशीलता, वाणी में दोष, सिर घूमना, मानसिक कष्ट, प्रेतादि भय, आदि -------- ये व्याधियाँ निर्बल व पीड़ित बुध के कारण होने की संभावना रहती हैं |“५.गुरु : दंतरोग, स्मृतिहीनता, अंतड़ियों का ज्वर, कर्णपीड़ा, पीलिया, लीवर की बीमारी, सिर का चक्कर (वर्टिगो), तंद्रा, रोगों की चिरकालिकता (chronicity of diseases), पित्ताशय (gallbladder) के रोग, रक्ताल्पता, नींद न आने की बीमारी, शोक, विद्वान गुरु आदि के तांत्रिक कृत्य के कारण कष्ट-कठिनाइयाँ, बवासीर, धमनियां-नसों से सम्बंधित रोग, फुफ्फुस पर आवरण, रक्त मिर्गी, ट्यूमर, प्लीहा, गुर्दा, आदि से सम्बंधित रोग, आदि | -------ये रोग निर्बल व पीड़ित गुरु के कारण संभावित हैं |
६.शुक्र : मधुमेह, पित्ताशय या गुर्दे में पथरी, मूत्रकृच्छ, प्रमेह, अन्य गुह्यस्थान के रोग, मोतियाबिन्द, पांडुरोग, धातुक्षीणता, गले के रोग, महाधमनी (aorta), त्वचा, मज्जा सम्बन्धी रोग, आँखों का बहना, आदि | -------ये रोग निर्बल व पीड़ित शुक्र के कारण संभावित हैं |
७.शनि : पैर की पीड़ा, कुक्षिरोग, अर्धांग (लकवा), गठिया, अस्थमा, यक्ष्मा, आतंरिक उष्णता, गिल्टी सम्बन्धी रोग, पागलपन, शठता (idiocy), मज्जा विकार, दाढ का दर्द, कुक्षिरोग, नाखून, पसलियों या ग्रंथी सम्बंधित रोग, केंसर तथा दूसरे ट्यूमर्स, तिल्ली, सर्दी- ज़ुकाम, गर्म-सर्द शरीर के किसी अंग में दर्द, हृदय में परिताप-जलन, दीर्घ काल के रोग, वृक्ष या पत्थर के कारण क्षति या पीड़ा, भूत, पिशाच या निम्नयोनि वा कोटि की आत्माओं से पीड़ा, आदि | -------ये रोग निर्बल व पीड़ित शनि के कारण संभावित हैं |
८.राहू : हृदय में ताप, अशांति, कृत्रिम जहर का भय, पैर की पीड़ा, अशुभ बुद्धि, कुष्ट रोग, पिशाच और सर्प दंश का भय, इत्यादि |

1 comment:

  1. सभी मनिसियो को मेरा प्रणाम
    मेरे पैरो पर खडा होने के पांच मिनट मै पैरों पर टखना के नीचे सूजन आ जाती है तथा रीड की हड्डी मैं कमर के उपर हिस्से मे तेज दर्द होता है तथा थोडासा काम करने पर हाथ दर्द करने लगते कृपया जानकारी दे की कौन से रोग से मैं पीड़ित हू तथा क्या उपचार है

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