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Thursday, 3 April 2014

आज के युग में दान करे या न करे और दान क्या है ? दानं ग्रहणति दुआयम अर्तार्थ दान से दुआ मिलती है ....


आज के युग में दान करे या न करे और दान क्या है ?
दानं ग्रहणति दुआयम अर्तार्थ दान से दुआ मिलती है और दुआ से पुण्य मिलता है और पुण्य से आत्मबल मिलता है आत्मबल से संतोष मिलता है संतोष से शांति मिलती है शांति से चित प्रसन्न होता है चित प्रसन्न होने से शरीर के बिकार दूर होते है.दान किसको करे या न करे यह सबाल आज के युग में बहुत महत्व पूर्ण है ?. पहले दान ब्राह्मण को दिया जाता था क्योकि ब्राह्मण ही दान का अधिकारी था वो समाज को शिक्षा देता था और उसके बदले लोग ब्रामण को दान देते थे तथा ब्राह्मण की आत्म शक्ति इतनी प्रबल होती थी क़ि वो दान के बदले दुआ देता था. उस समय आपने ब्राह्मण को गाय दान दी उसने और उसके परिवार ने खूब गाय का दूध पीया, खीर खायी और पूरे परिवार ने आपको दुआ दी. लेकिन आज के ब्राह्मण की शराब ,तंम्बाकू , मुर्गा व अंडा खाने से आत्म शक्ति क्षीण हो गयी है और न वो शाधना रह गयी न वो जप और तप रह गया है आज वो तपश्वी ब्राह्मण है ही नहीं . आज आप ब्राह्मण को गाय दान दे दो वो कसाई को बेच देता है और कुछ दिन बाद वो कामधेनु गाय की हत्या कर दी जाती है.उस पाप के भागी आप होंगे.इसलिए गरीव ब्राह्मण, किसी ग्राम का ब्राह्मण को या किसी भी जाति के गरीव से गरीव को ही दान करे. भिखारी को कभी भी दान न करे इन लोगो क़ि आत्मा भीख मांग मांग कर इतनी मर चुकी होती है क़ि इनकी कोई दुआ आपको नहीं मिलेगी. कोढ़ी ,लंगड़ा ,अँधा ,काना ,बहरा और लूला इनको आप दान करते हो इनकी भी आपको कभी दुआ नहीं मिलेगी क्यों क़ि ये लोग पूर्ण मनुष्य से बहुत ईर्षा व घृणा करते है . अगर आप किसी भी कथाकार को लत्ते कपडे सोना चंडी दान करते हो तो वो भी आपकी दी हुई बस्तुओं को भेच देता है ये भी दुआ नहीं दे३त है इनकी नीयत में खोट होता है इनका आत्म बल क्षीण होता है. आज के युग में सबसे अच्छा है किसी भी अमीर गरीब को भंडारा के रूप में भोजन कराना.भोजन करने बाद मनुष्य दुआ अवश्य देता है भोजन के बाद कभी भी आत्मा से बद्दुआ नहीं निकलती है .…। पं म् डी वशिष्ट। .... 

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