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Saturday 12 April 2014

स्वयं को भूल गया है कि आखिर वह है कौन?.... हम सभी मनुष्य उस एक परमपिता परमेश्वर की संतान हैं, उसके अंश हैं। ......


स्वयं को भूल गया है कि आखिर वह है कौन?....
हम सभी मनुष्य उस एक परमपिता परमेश्वर की संतान हैं, उसके अंश हैं। आज हर व्यक्ति भाग रहा है, एक जगह से दूसरे जगह की ओर, एक तत्व से दूसरे तत्व की ओर। व्यक्ति शायद स्वयं को खोज रहा है, क्योंकि उसने स्वयं को खो दिया है। स्वयं के साथ संबंधों को तोड़ लिया है और अब उसे ही खोज रहा है। यदि आप अपने आसपास के हर व्यक्ति की तरफ ध्यान देंगे, तो तकरीबन सबमें यही बात नजर आएगी। हर एक व्यक्ति स्वयं को भूलकर एक व्यर्थ की दौड़ में भागता चला जा रहा है। वह स्वयं को भूल गया है कि आखिर वह है कौन? क्या खोज रहा है, कहां खोज रहा है? उसे स्वयं पता नहीं, परंतु फिर भी हरेक से पूछ रहा है, हरेक के बारे में पूछ रहा है।1आज आवश्यकता है, इस झंझावात से निकलने की, स्वयं के अस्तित्व को समझने की। परिवर्तन की इस सतत प्रक्रिया में स्थिर होने की। यात्र हो परंतु शून्य से महाशून्य की, परिधि से केंद्र की, अज्ञान से ज्ञान की, अंधकार से प्रकाश की, असत्य से सत्य की। स्वयं के अस्तित्व को तलाश कर ही हम जीवन के सही मूल्यों को समझ सकेंगे। हम प्राय: अपना जीवन कंकड़-पत्थर बटोरने में व्यर्थ गंवा देते हैं। सत्ता, संपत्ति, सत्कार और बहुत कुछ पाकर भी अंतत: शून्य ही हाथ लगता है। तो हम क्यों न आज ही जग जाएं। स्वयं की खोज करके अपनी अंतरात्मा को प्रकाशित करें। हमारा ध्यान दुनिया में है, परंतु स्वयं के अंदर छिपी विराटता में नहीं। स्वयं को समझकर ही हम उस एक परमात्म तत्व में विलीन हो सकते हैं। अपने परमेश्वर के प्रति हम कृतज्ञता तक ज्ञापित नहीं करते, जिसने अपनी परम कृपा से हमें अपना अंश बनाकर इस धरा पर मनुष्य रूप में भेजा है। यदि हम स्वयं के प्रति सचेत हो जाएं, तो बात बनते देर नहीं लगेगी। तमाम ऐसे लोग जिन्होंने जीवन में कुछ गौरवशाली कार्य किया, वे सभी स्वयं के अंदर छिपे अथाह सागर को समझने की बात करते हैं। जो कृत्रिमता से कोसों दूर हो, जहां हो एक गहन शांति। शांति मिलती है, कामनाओं को शांत करने से। कामनाएं भी उसी की शांत होती हैं, जो जीवन का सही मूल्य समझ सके। जीवन मात्र चलते रहने का नाम नहीं है, बल्कि जीवन में रहते हुए कुछ अच्छा कर गुजरने का नाम है....पं  म डी वशिष्ट। … 

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