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Saturday 26 April 2014

अन्त में मौत का आना...... आत्मा अमर है वह कभी मरती नही है हम अपनी आयु उपरान्त अपना शरीर त्याग देते है ...............


अन्त में मौत का आना......
आत्मा अमर है वह कभी मरती नही है हम अपनी आयु उपरान्त अपना शरीर त्याग देते है और अपने कर्मो के अनुसार दुसरी योनी में प्रवेश करते है इसी क्रिया को शरीर छोडना बोलते है ।
शास्त्रों में कई ऐसे प्रमाण मिलते है जिनमें उल्लेख किया गया है कि मनुष्य जीवन में मौत एक अटल सत्य है जिसे झुठलाया नही जा सकता है । और आत्मा अमर ही वह मृत्यु पश्चात शरीर का त्याग कर देती है ।
आज जो हमारा शरीर है वह कुछ ही वर्ष पश्चात बिलकुल बदल चुका होता है बाल्यावस्था में हमारे कोमल अंग, सुरीली आवाज, मासुमियता जवानी के समय बदली सी नजर आती है आवाज में भारीपन, अन्गों का कठोर होना, इत्यादि बदलाव समय के साथ आना कोई नई बात नही । बुढापा फिर अन्त में मौत का आना यह सब हमारे शरीरिक परिवर्तन है, लेकिन बाल्यावस्था के समय हमारी आत्मा जो थी वही बुढापे में भी होती है यहाँ तक कि मृत्यु के अतिम क्षण तक हमारी आत्मा में कोई परिवर्तन नही आता है । भगवानकृष्ण ने गीता में आत्मा की अमरता के बारे में उल्लेख किया -
"बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन ।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परंतप ।।"
चौथे अध्याय में भगवन अर्जुन से कहते है - हे अर्जुन, मेरे और तेरे बहुत से जन्म हो चुके है । उन सब को तु नही जानता, परन्तु मैं जानता हुँ ।
"वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्माति नरोअपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ।।" (२।२२गीता)
मनुष्य जैसे पुराने वस्त्र का त्याग कर नवीन वस्त्रो को ग्रहण करता है, उसी तरह जीवात्मा पुराने शरीर का त्याग कर दूसरे नवीन शरीर को ग्रहण करती है

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