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Friday 18 April 2014

मुक्त हो जाता है। चौरंगी नाथ (चन्द्रमा) सातवें स्थान पर वनस्पतियों के जीवनदाता चन्द्रमा को चौरंगीनाथ नाम दिया है। .....


मुक्त हो जाता है।
चौरंगी नाथ (चन्द्रमा)
सातवें स्थान पर वनस्पतियों के जीवनदाता चन्द्रमा को चौरंगीनाथ नाम दिया है। शाबिदक अर्थ के सन्दर्भ में चौरंगीनाथ एक अंगविहीन पुरूष किन्तु पूर्ण ज्ञान का प्रतीक है। नाथ सम्प्रदाय में चन्द्रमा भ्रूमध्य में सिथत आज्ञा चक्र से संबंधित है और तीसरे नेत्र के रूप में भी जाना जाता है। नाथ साहित्य और साधना के सन्दर्भ से देखें तो आज्ञा चक्र (भ्रूमध्य) ही वह स्थान है जहां से निरन्तर अमृत निसृत होकर सूर्य (स्वाधिष्ठान चक्र) में गिर कर नष्ट हो रहा है। इसी अमृत को नष्ट होने से बचाना योगियों और हठयोग (सूर्य और चन्द्रमा की युति) का ध्येय है जो स्वाधिष्ठान चक्र और आज्ञा चक्र को नियनित्रत किया जाकर संभव है। जब कुण्डलिनी शकित जागृत होकर सुषुम्णा मार्ग में प्रवृत होती है तो शरीर विदेह अवस्था (वह अवस्था जिसमें शरीर के अंग व इनिद्रयां इस प्रकार अन्तर्मुखी होकर निष्चेष्ट हो जाती है जैसे कि उनका असितत्व ही न हो) को प्राप्त होकर विषुद्ध रूप से केवल मसितष्क चेतन रहता है। नवनाथों की सूचियों में कहीं-कहीं चौरंगीनाथ को कूर्मनाथ भी अंकित किया गया है जो श्रीमदभगवदगीता के दूसरे अध्याय के 58वें श्लोक में चर्चित व उपदेषित कूर्म युकित को प्रतिबिमिबत करता है। तदनुसार यदा संहरते चायं कूर्मो∙ंगानीव सर्वष:, इनिद्रयाणीन्द्रयार्थे प्रज्ञा प्रतिषिठता।। अर्थात जिस प्रकार कछुआ अपने अंगों को सब ओर से समेट लेता है उसी भांति जो पुरूष अपनी इनिद्रयों को इनिद्रयविषयों से हटा लेता है, उसकी बुद्धि सिथर है।
आज्ञा चक्र (चन्द्र स्थान) से निसृत होने वाले अमृत (सोमरस) के प्रसंग में हठयोग प्रदीपिका के तीसरे अध्याय का 45वां और 46वां श्लोक उल्लेखनीय है। तदनुसार नित्यं सोम-कला-पूर्णं शरीरं यस्य योगिन:, तक्ष्हकेणापि दष्टस्य विषं तस्य न सर्पति।। और इन्धनानि यथा वहनिस्तैल-वर्ती छ दीपक: तथा सोम-कला-पूर्णं देही देहं ना मुनछति। अर्थात जिस योगी का शरीर सोमरस (आज्ञाचक्र से निसृत होने वाला अमृत) से पूर्ण है उसका शरीर तक्षक नाग के विष से भी अप्रभावित रहता है। इसी प्रकार जैसे तेल और बाती से पूर्ण दीपक में ज्योती बनी रहती है वैसे ही सोमरस से पूर्ण देह (शरीर) को देही (शरीरी) नहीं त्यागता। ज्ञातव्य है कि आध्यातिमक साहित्य एवं योगियों द्वारा बताये अनुसार जीव के मसितष्क में सहस्त्रदल वाले अधोमुखी कमल सहस्त्रार चक्र में सोम (चन्द्रमा) का स्थान है जिसको पीने वाला नित्य-प्रति की आवष्यकताओं से मुक्त हो जाता है।

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