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Wednesday 16 April 2014

योगनिद्रा तांत्रिक विधि है. तंत्र में शांति प्राप्त करने के जितने रास्ते बताये गये हैं उनमें योगनिद्रा बहुत ही सुगम और व्यावहारिक मार्ग है. योगनिद्रा का अभ्यास तीन चरणों में होता है. .....


यही ध्यान की स्थिति भी है।.……। 

योगनिद्रा तांत्रिक विधि है. तंत्र में शांति प्राप्त करने के जितने रास्ते बताये गये हैं उनमें योगनिद्रा बहुत ही सुगम और व्यावहारिक मार्ग है. योगनिद्रा का अभ्यास तीन चरणों में होता है. पहला चरण है शरीर का शिथलीकरण. दूसरा चरण है अनुभूति और तीसरा चरण है धारणा. अगर आप योग को समझते हैं तो ऐसे भी समझ सकते हैं कि पहला है आसन, दूसरा प्राणायाम और तीसरा चरण है धारणा. पहले चरण में आप भौतिक शरीर के स्तर पर मन को स्थापित करते हैं. दूसरे चरण में सूक्ष्म शरीर का अवलोकन करते हैं और तीसरे चरण में मन को अपनी इच्छा के मुताबिक निर्देशित करते हैं.

विधि : ढीले कपड़े पहनकर शवासन करें। जमीन पर दरी बिछाकर उस पर एक कंबल बिछाएँ। दोनों पैर लगभग एक फुट की दूरी पर हों, हथेली कमर से छह इंच दूरी पर हो। आँखे बंद रखें।

अपने शरीर व मन-मस्तिष्क को शिथिल कर दीजिए। सिर से पाँव तक पूरे शरीर को शिथिल कर दीजिए। पूरी साँस लेना व छोड़ना है। अब कल्पना करें आप के हाथ, पाँव, पेट, गर्दन, आँखें सब शिथिल हो गए हैं। अपने आप से कहें कि मैं योगनिद्रा का अभ्यास करने जा रहा हूँ।

अब अपने मन को शरीर के विभिन्न अंगों पर ले जाइए और उन्हें शिथिल व तनावरहित होने का निर्देश दें। पूरे शरीर को शांतिमय स्थिति में रखें। गहरी साँस ले।

फिर अपने मन को दाहिने पैर के अँगूठे पर ले जाइए। पाँव की सभी अँगुलियाँ कम से कम पाँव का तलवा, एड़ी, पिंडली, घुटना, जाँघ, नितंब, कमर, कंधा शिथिल होता जा रहा है। इसी तरह बायाँ पैर भी शिथिल करें। सहज साँस लें व छोड़ें। अब लेटे-लेटे पाँच बार पूरी साँस लें व छोड़ें। इसमें पेट व छाती चलेगी। पेट ऊपर-नीचे होगा।

मन चंचल होता है. और यह चंचलता ही उसका स्वभाव और ताकत है. मन निश्चल हो सकता है लेकिन वह कभी स्थिर नहीं हो सकता. योगनिद्रा के पहले चरण में हम मन को बहुत प्राथमिक स्तर पर निर्देशित करते हैं. इसलिए हम शरीर के विभिन्न हिस्सों को बंद आखों से अवलोकन करते हैं. योगनिद्रा का प्रशिक्षक आपको निर्देश करता है कि दाहिने पैर का अंगूठा. तो आपका पूरा मन वहां उस दाहिने पैर के अंगूठे पर केन्द्रत हो जाता है. फिर इसी क्रम में वह आपके पूरे शरीर का मानस दर्शन कराता है. तंत्र में जिस अन्नमय कोश की बात की गयी है उस शरीर पर ही सबसे पहले मन को स्थापित करना जरूरी होता है. एक बार मन शरीर पर स्थित हो गया तो फिर वह आगे आपको सूक्ष्म अवस्थाओं में ले जाने के लिए तैयार होता है.

इसके बाद दूसरी अवस्था होती है अनुभूति की. अनुभूति के स्तर को पाने के लिए आपके शरीर और स्वांस के साथ-साथ शरीर के अंदर में स्थित सूक्ष्म चक्रों की भी अनुभूति सिखाई जाती है. हमारे शरीर के अंदर में जो षट्चक्र हैं वे सब उर्जा के किसी न किसी स्वरूप को धारण किये हुए हैं. उन चक्रों का पदार्थ के साथ भी गहरा नाता होता है. मसलन आप मूलाधार चक्र की बात करें तो यह भू-पदार्थ का प्रतिनिधित्व करता है. इसी तरह स्वाधिस्ठान चक्र जल का प्रतिनिधित्व करता है. अब आपके मन में यह सवाल आना स्वाभाविक है कि अगर पदार्थ पांच हैं तो चक्र छह क्यों है? छठा चक्र पदार्थ नहीं परमानंद का प्रतीक है. जब पांच पदार्थ सम अवस्था में आ जाते हैं तो छठे चक्र का जागरण होता है जो कि परमानंद धारण किये हुए है. इसीलिए इसे अनाहत चक्र कहते हैं.

योगनिद्रा की तीसरी अवस्था धारणा की है. एक बार आप अपने शरीर को शिथिल करके चक्रों का भेदन करते हुए शांति की गहरी अवस्था में पहुंचते हैं तो आपका मन निश्चल अवस्था में होता है. यहां यह जरूरी है कि आप उस निश्चल अवस्था का उपयोग किसी श्रेष्ठ कर्म के लिए करें. योगनिद्रा करने के पूर्व संकल्प इसीलिए लिया जाता है कि जब आप मन की इस निश्चल अवस्था में पहुंचे आप किसी श्रेष्ठ कर्म की तरह अग्रसर हो. धारणा के वक्त आपको विभिन्न प्रकार की धारणा का अभ्यास कराया जाता है ताकि आप अनुभूति के स्तर पर वह सब अनुभव कर सकें जो यथार्थ के स्तर पर चारों ओर मौजूद है. एक बात समझ लीजिए जो कुछ भी भौतिक रूप में हमारे आस-पास मौजूद है वह सूक्ष्म रूप में भी उपलब्ध है.

सावधानी : योगनिद्रा में सोना नहीं है। योगनिद्रा 10 से 45 मिनट तक की जा सकती है। योगनिद्रा के लिए खुली जगह का चयन किया जाए। यदि किसी बंद कमरे में करते हैं तो उसके दरवाजे, खिड़की खुले रखें। शरीर को हिलाना नहीं है, नींद नहीं निकालना, यह एक मनोवैज्ञानिक नींद है, विचारों से जूझना नहीं है। सोचना नहीं है साँसों के आवागमन को महसूस करना हूँ।

लाभ : योगनिद्रा द्वारा मनुष्य से अच्छे काम भी कराए जा सकते हैं। बुरी आदतें भी इससे छूट जाती हैं। योगनिद्रा का प्रयोग रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, सिरदर्द, तनाव, पेट में घाव, दमे की बीमारी, गर्दन दर्द, कमर दर्द, घुटनों, जोड़ों का दर्द, साइटिका, अनिद्रा, थकान, अवसाद, प्रसवकाल की पीड़ा में बहुत ही लाभदायक है।

योगनिद्रा में किया गया संकल्प बहुत ही शक्तिशाली होता है। योगनिद्रा द्वारा शरीर व मस्तिष्क स्वस्थ रहते हैं। यह नींद की कमी को भी पूरा कर देती है। इससे थकान, तनाव व अवसाद भी दूर हो जाता है।

योगनिद्रा के कई आध्यात्मिक लाभ भी है, लेकिन आधुनिक चंचल, उत्तेजित और तनावग्रस्त मन के लिए यह बहुत ही लाभदायक है। यही ध्यान की स्थिति भी है।

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