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Friday 25 April 2014

अपनी पहचान चाहते हो ..? यदि हाँ तो ''स्वयं'' का साथ दे जीवन की ओर बढ़ो ..''ध्यान-धारणा और प्रेम'' को स्वयं में शामिल करो ..माता-पिता ,सगे-सम्बंधी सबमें ''प्रेम'' की ,''ध्यान'' की लहर भर दो ..''सुख'' तुम्हारे अन्दर व्याप्त है ..............


इसमें किसी प्रयास की आवश्यकता नहीं
  १- नित्य अपना अवलोकन करना है ..रात्रि में सोने से पहले आसन पे बैठ शरीर को एकदम फ्री कर ,अपने दिन भर की क्रिया कलापों पे अपना ध्यान इंगित करना है ,जो तुम्हारे स्वभाव में तुम्हारे लिए और तुम्हारे अपने लोग ,अपने समाज के हित में नहीं लगता अपनी उन आदतों को त्याग करने का चिंतन और उसी पल से ह्रदय से प्रार्थना ,मन में संकल्प कि मुझे अपने इस बुराई का त्याग करना है और अपनी अछि आदतों को अपने में पूरी तरह शामिल करना है ......
                                                           २- एकांत में बैठ ''इश्वर'' जिससे आप अनभिग्य हो ,जिसके बारे में आप कुछ नहीं जानते ,कुछ समय उस ''विराट-सत्ता'' के सम्बन्ध में चिंतन करना है ......
                                                           ३- अब आपको अपने को कुछ समय के लिए प्रयोग में लाना है ..प्रयोग के कई साधन हैं ,आप अपने रुचिनुसार किसी भी एक साधन को अपना लो ..हम आपको आपके स्वभावानुसार साधन देना चाहेगें क्योंकि जो आपका स्वभाव होगा उस अनुसार पथ चुनोगे तो मार्ग सहज होगा ..वेसे तो मूलतः हर जीव का स्वभाव सिर्फ ''आनंद'' है ,पर उस आनंद को प्राप्त करने के मार्ग अलग-अलग है ......
                                                           ४- किसी के लिए ''ध्यान'' सर्वोत्तम ,किसी के लिए ''प्रेम'' सहज सरल है ..इसमें किसी प्रयास की आवश्यकता नहीं ,ये अपने आप घटता है ..''ध्यान'' में थोड़े प्रयास से सफल होनें की संभावना है ,पर ''प्रेम'' आपके अन्तः के दिव्य भाव-भूमि पर निर्भर होता है ..''ध्यान'' आपको एक दिशा की ओर अग्रसर करता है ,जिसमें आपको अपना लक्ष्य निर्धारित होता चला जाता है ..''ध्यान'' के माध्यम से आपका मन शांत ,विकार रहित कहीं ''शून्य'' की ओर चलता चला जाता है ,जहाँ सिर्फ ''शांति-आनंद'' ,जीवन का उल्लास ,जीवन का उत्सव और महोत्सव होता है .......
                                                           ५- जब आप ध्यान की ओर बढ़ते हो तो शरीर की पूरी उर्जा एक सकारात्मक दृष्टिकोण लिए होती है ..ध्यान के माध्यम से आप सृजनात्मक ,रचनात्मक कार्यों को करनें में पूर्ण सक्षम हो सकते हो ..मनुष्य को ''परमात्मा'' ने जो पावर दिया है उसका १०% हिस्सा ही मात्र ''सकारात्मकता'' को सिद्ध होती है और ९०% उर्जा नाना प्रकार के विकृत विचारों के करण नष्ट हो जाती है .......
                                                           ६- हम आपको युक्ति बता रहें हैं ''ऊर्जा'' का सही सदुपयोग में लानें की ..पावर आपके पास है ,पर उपयोग करना आपको पता नहीं ..''ध्यान'' के माध्यम से शरीर के एक-एक अंग में प्रवेश किया जा सकता है और जो ''नस-नाड़ियाँ'' हमारे प्रयोग में नहीं हैं ,जिनमें नाना प्रकार के रहस्य छुपे हैं उन्हें भी चैतन्य कर ,उससे लाभ प्राप्त किया जा सकता है ......
                                                           ७- ''अध्यात्म'' ध्यान के माध्यम से ''प्रार्थना'' करना सिखाता है और ''विज्ञान'' आपको वाह्य प्रक्रियाओं की ओर अग्रसर कर प्रयोग में लाता है ..आपका जीवन आज अध्यात्म से कोसों दूर और उससे जो निर्मित उसके करीब है ,यही कारण है कि मनुष्य अपने आपको खोता चला जा रहा है ,अपने मूलाधिकारों से वंचित होता जा रहा है और पागलपन जैसी स्थिति में जीते हुए ''स्वयं'' को पहचाननें से इंकार कर गया है ..सिर्फ पागल व्यक्ति ही अपने वजूद अपने अस्तित्व को नहीं ढूढता ,एक समझदार व्यक्ति हमेशा अपनी पहचान चाहता है .......
                                                           ८- आप भी अपनी पहचान चाहते हो ..? यदि हाँ तो ''स्वयं'' का साथ दे जीवन की ओर बढ़ो ..''ध्यान-धारणा और प्रेम'' को स्वयं में शामिल करो ..माता-पिता ,सगे-सम्बंधी सबमें ''प्रेम'' की  ,''ध्यान'' की लहर भर दो ..''सुख'' तुम्हारे अन्दर व्याप्त है ,नवीन चेतना ,नई खोज सब तुममें है ,पर ये सब तब प्राप्त होगा जब तुम स्वयं की ओर चलोगे ..आओ चलो अपनी ओर .

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