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Monday 12 May 2014

4 युगों को मिलाकर 1 महायुग होता है । तप्तशिला पर काल पीङित जीवों की सत्यपुरुष को पुकार ...


4 युगों को मिलाकर 1 महायुग होता है ।
तप्तशिला पर काल पीङित जीवों की सत्यपुरुष को पुकार

कबीर साहब बोले - हे धर्मदास ! काल निरंजन का जाल फ़ैलाने के लिये बनाये गये 68 तीर्थ ये हैं - 1 काशी 2 प्रयाग 3 नैमिषारण्य 4 गया 5 कुरुक्षेत्र 6 प्रभास 7 पुष्कर 8 विश्वेश्वर 9 अट्टहास 10 महेंद्र 11 उज्जैन 12 मरुकोट 13 शंकुकर्ण 14 गोकर्ण 15 रुद्रकोट 16 स्थलेश्वर 17 हर्षित 18 वृषभध्वज 19 केदार 20 मध्यमेश्वर 21 सुपर्ण 22 कार्तिकेश्वर 23 रामेश्वर 24 कनखल 25 भद्रकर्ण 26 दंडक 27 चिदण्डा 28 कृमिजांगल 29 एकाग्र 30 छागलेय 31 कालिंजर 32 मंडकेश्वर 33 मथुरा 34 मरुकेश्वर 35 हरिश्चंद्र 36 सिद्धार्थ क्षेत्र 37 वामेश्वर 38 कुक्कुटेश्वर 39 भस्मगात्र 40 अमरकंटक 41 त्रिसंध्या 42 विरजा 43 अर्केश्वर 44 द्वारिका 45 दुष्कर्ण 46 करबीर 47 जलेश्वर 48 श्रीशैल 49 अयोध्या 50 जगन्नाथपुरी 51 कारोहण 52 देविका 53 भैरव 54 पूर्व सागर 55 सप्त गोदावरी 56 निमलेश्वर 57 कर्णिकार 58 कैलाश 59 गंगाद्वार 60 जललिंग 61 बङवागिन 62 बद्रिकाश्रम 63 श्रेष्ठ स्थान 64 विंध्याचल 65 हेमकूट 66 गंधमादन 67 लिंगेश्वर 68 हरिद्वार
और बारह राशियाँ - 1 मेष 2 वृष 3 मिथुन 4 कर्क 5 सिंह 6 कन्या 7 तुला 8 वृश्चिक 9 धनु 10 मकर 11 कुंभ 12 मीन..ये हैं ।
तथा सत्ताईस नक्षत्र - 1 अश्विनी 2 भरणी 3 कृत्तिका 4 रोहिणी 5 मृगशिरा 6 आर्द्रा 7 पुनर्वसु 8 पुष्य 9 आश्लेषा 10 मघा 11 पूर्वाफ़ाल्गुनी 12 उत्तराफ़ाल्गुनी 13 हस्त 14 चित्रा 15 स्वाति 16 विशाखा 17 अनुराधा 18 ज्येष्ठा 19 मूल 20 पूर्वाषाढा 21 उत्तराषाढा 22 श्रवण 23 धर्निष्ठा 24 शतभिषा 25 पूर्वाभाद्रप्रद 26 उत्तराभादप्रद 27 रेवती..ये हैं ।
सात दिन - 1 रविवार 2 सोमवार 3 मंगलवार 4 बुधवार 5 बृहस्पतिवार 6 शुक्रवार 7 शनिवार
पंद्रह तिथियाँ - 1 प्रथम या पङवा 2 दूज 3 तीज 4 चौथ 5 पंचमी 6 षष्ठी 7 सप्तमी 8 अष्टमी 9 नवमी 10 दशमी 11 एकादशी 12 द्वादशी 13 त्रयोदशी 14 चौदस 15 पूर्णिमा ( शुक्ल पक्ष ) दूसरा एक कृष्ण पक्ष भी होता है । जिसकी सभी तिथियाँ ऐसी ही होती हैं । केवल उसकी पंद्रहवी तिथि को पूर्णिमा के स्थान पर अमावस्या कहते हैं ।

हे धनी धर्मदास ! फ़िर बृह्मा ने चारों युगों के समय को एक नियम से विस्तार करते हुये बाँध दिया । एक पलक झपकने में जितना समय लगता है । उसे पल कहते हैं । 60 पलक को 1 घङी कहते हैं । 1 घङी 24 मिनट की होती है । साढे 7 घङी का 1 पहर होता है । 8 पहर का दिन रात 24 घंटे होते हैं । 7 दिनों का 1 सप्ताह और 15 दिनों का 1 पक्ष होता है । 2 पक्ष का 1 महीना । और 12 महीने का 1 वर्ष होता है । 17 लाख 28 हजार वर्ष का सतयुग । 12 लाख 96 हजार का त्रेता । और 8 लाख 64 हजार का द्वापर । 4 लाख 32 हजार का कलियुग होता है । 4 युगों को मिलाकर 1 महायुग होता है ।



हे धर्मदास 12 महीने में कार्तिक और माघ इन दो महीनों को पुण्य वाला कह दिया । जिससे जीव विभिन्न धर्म कर्म करे । और उलझा रहे । जीवों को इस प्रकार भृम में डालने वाले काल निरंजन ( एन्ड फ़ैमिली ) की चालाकी कोई बिरला साधक ही समझ पाता है ।

प्रत्येक तीर्थ धाम का बहुत महात्मय ( महिमा ) बताया । जिससे कि मोहवश जीव लालच में तीर्थों की ओर भागने लगे । अपनी बहुत सी कामनाओं की पूर्ति के लिये लोग तीर्थों में नहाकर पानी और पत्थर से बनी देवी देवता की मूर्तियों को पूजने लगे । लोग आत्मा परमात्मा ( के ज्ञान ) को भूलकर इस झूठ पूजा के भृम में पङ गये । इस तरह काल ने सब जीवों को बुरी तरह उलझा दिया ।

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