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Wednesday 7 May 2014

सत्य ही प्रेम है और प्रेम ही सत्य है क्योंकि सत्य एवँ प्रेम दोनों ही प्राकृतिक अथवा मौलिक अनुभूतियाँ हैं .............


सत्य ही प्रेम है और प्रेम ही सत्य है क्योंकि सत्य एवँ प्रेम दोनों ही प्राकृतिक अथवा मौलिक अनुभूतियाँ हैं और प्रकृति ईश्वर का ही दूसरा रूप है .... दरअसल जीवन-मृत्यु, प्रकृति, प्रेम और सत्य परस्पर अनुपूरक नहीं अपितु पर्यायवाची हैं एवँ ईश्वर के ही विभिन्न आयाम हैं :~~
प्रेम ही जीवन है और घृणा ही मृत्यु. 
धर्म ही जीवन है और अधर्म ही मृत्यु. 
त्याग ही जीवन है और मोह ही मृत्यु.
हँसना ही जीवन है और क्रंदन है मृत्यु.
जीवन एक तथ्य है और सत्य है मृत्यु.
अहिंसा ही जीवन है और हिंसा ही मृत्यु.
चेतन ही जीवन है और अचेतन ही मृत्यु.
दोस्ती ही जीवन है और दुश्मनी ही मृत्यु.
संयम ही जीवन है और असंयम ही मृत्यु.
विवेक ही जीवन है और अविवेक ही मृत्यु.
वीरत्व ही जीवन है और कायरता ही मृत्यु.
विद्या ही जीवन है और अविद्या ही मृत्यु.
परोपकार ही जीवन है और स्वार्थ ही मृत्यु. 
उदारता ही जीवन है और कृपणता ही मृत्यु. 
जागना ही जीवन है और सो जाना ही मृत्यु.
चलना ही जीवन है और ठहर जाना ही मृत्यु.
पुरुषार्थ ही जीवन है और आलस्यता ही मृत्यु. 
पवित्रता ही जीवन है और अपवित्रता ही मृत्यु. 
ब्रह्मचर्य ही जीवन है और व्यभिचार ही मृत्यु.
संतोष ही जीवन है और लोभ (तृष्णा) ही मृत्यु.

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