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Wednesday 28 May 2014

कुंडली मिलान पर एक टिपण्णी विवाह के लिए किये जाने वाले कुंडली मिलान पर एक टिपण्णी ज्योतिष शास्त्र में गुण मिलान करके विवाह करवाने कि परंपरा की ......


कुंडली मिलान पर एक टिपण्णी
विवाह के लिए किये जाने वाले कुंडली मिलान पर एक टिपण्णी
ज्योतिष शास्त्र में गुण मिलान करके विवाह करवाने कि परंपरा की 
उत्पत्ति कब से हुई इसका उल्लेख कही भी पढने में नहीं आता हे,जो 36 
गुणो कि संख्या कुंडली मिलान के लिए मानी गई हे इसके बारे में कोई भी 
शास्त्र सम्मत या शास्त्र शुद्ध कारण नहीं मिलता,नाडी,योनि,गण इन जैसी नक्षत्रों कि सांकेतिक जानकारी देने वाली मूल संकल्पना का विचित्र अर्थ 
लगाकर उसका विवाह मिलान के कोष्ठक में उपयोग करना यंह सिर्फ 
गलत तर्को पर आधारित हे,आध्य,मध्य,अन्त्य आदि नाड़ियां राक्षस 
मनुष्य,देव आदि गण और राशी कूट के कोष्ठक को देखें तो प्रत्येक राशी 
का बारा राशीयों में से 6 राशीयों से मिलान होता हे.
ऊपर लिखे चार माध्यमों के अनुक्रम में नाड़ी-8, योनि-4,गण-६,गुण 
राशी कूट-7 गुण मिलाकर कुल 25 गुण होते हें,बाकी बचे 11 गुण वर्ण,वश्य 
तारा व गृह मैत्री को दिए हें,इस प्रकार दिए हुए नाड़ी,योनि,गण,राशी 
कूट इन में से कोई भी तीन भाग का मिलान होने पर वर-वधु दोनों कि 
कुंडली मेच हो गई हे ऐसा कहा जाता हे जेसे कि ---
(1) नाड़ी - 8 + योनि - 4 + गण - 6 = 18 गुण 
(2) नाड़ी - 8 + योनि - 4 + राशी कूट - 7= 19 गुण 
(3) गण - 6 + नाड़ी -8 + राशी कूट - 7 = 21 गुण
इसका अर्थ ऊपर लिखे- 4 मुख्य भागो में से कोई भी तीन भाग का मिलान होने पर कुंडली मिलान हो जाती हे,क्यों कि कम से कम 18 गुण 
तो मिलते ही हें,बाकी बचे वर्ण,वश्य,तारा तथा गृह मैत्री इनमे से 2 - 4
गुण तो मिल ही जाते हें,इस प्रकार गुण मिलने पर भी नाड़ी,गण व मंगल 
दोष के बारे में सामान्य व्यक्ति या "अधूरे ज्ञान वाला व्यक्ति" जिनको 
ज्योतिष शास्त्र कि कोई समझ नहीं प्रति प्रश्न करते हे,अपनी राय देने 
लगते हें,मेरा प्रथम आक्षेप यह हे कि जिन नक्षत्रों व राशीयों पर यह गुण मिलान कोष्ठक आधारित हे व सामान्य रूप से इसके पीछे जो संकल्पना 
कही जाती हे वह ज्योतिष शास्त्र कि कसोटी पर कितनी खरी उतरती हे-?
नाड़ी का अर्थ लगते समय आयुर्वेद में कही गई तीन प्रकृति वात,कफ,पित्त 
इत्यादि का सम्बन्ध जोड़ा जाता हे व सम प्रकृति का विवाह त्याज्य माना 
किन्तु शास्त्रों में नाड़ी दोष का परिहार (१ ) दोनों कि राशि एक और नक्षत्र 
भिन्न हो (२) दोनों का नक्षत्र एक और राशीयाँ भिन्न भिन्न-भिन्न हो 
(३) दोनों का नक्षत्र एक और चरण भिन्न-भिन्न हो किन्तु क्या इस प्रकार 
का समझोता करके मिलान करने से होनेवाले दुष्परिणाम का परिहार हो 
जाता हे ? कुछ ज्योतिष के "विद्वान" ? ऐसा भी बोलते हुए देखे गए हें कि 
लडके का ब्लड ग्रुप देखो और यदि ब्लड ग्रुप अलग-अलग हे तो नाड़ी दोष 
होने पर भी विवाह कर सकते हें,ब्लड ग्रुप का और ज्योतिष शास्त्र में वर्णित नाड़ी के सम्बन्ध का चिकित्सा शास्त्र में कही भी उल्लेख नहीं हे 
नाड़ी का चिकित्सा शास्त्र में कहीं भी उल्लेख नहीं हे
सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह हे कि जिस नक्षत्र व राशी का आधार गुण 
मिलानके लिए किया जाता हे उस राशी नक्षत्र के सर्व गुणधर्म उस 
जातक में होते हें क्या ? देवगण वाला जातक क्या वास्तव में देवगुणी 
या सत्वगुणी होता हे ? कम से कम अपने वैवाहिक जोड़ीदार के साथ 
सत्वगुणी धर्म का पालन करता हे क्या ?अनेक देवगण वाले जातकों 
के विवाह बाह्य सम्बन्ध देखने में आते हें, राक्षस गण वाला जातक क्या 
रजोगुणी होता हे ? आज के आधुनिक युग के परिपेक्ष में यह सारी
बातें गलत प्रतीत होती हें,इस विषय पर ज्योतिर्विदों द्वारा और भी 
संशोधन होना अति आवश्यक हे.
99% से अधिक विवाहितों कि कुंडली में निश्चित रूप से विधुर या 
विधवा योग होता ही हे,उंगली पर गिनती करने जैसी विवाहित जोड़ों 
कि एक साथ मृत्यु होती हे,इसका यह अर्थ नहीं हे कि अकाल आने 
वाले वैधव्य या विधुर अवस्था का विचार ही न किया जाये,किन्तु 
उसके लिए जो तर्क दिए जाते हें वह निश्चित ही आक्षेपार्ह हें,एक ही 
नक्षत्र राशी में नहीं अपितु एक ही नवमांश में जन्मे दो भिन्न व्यक्तियों 
के गुणधर्म अलग-अलग देखने में आते हें तो उस आधार पर किये गए 
गुण मिलान यह विवाह के लिए निश्चित ही बेकार हें
इसलिए वर - वधु कि कुंडलियों का ज्योतिर्विद द्वारा सम्पूर्ण अभ्यास 
करने के बाद ही अंतिम निर्णय लेना चाहिए,इसमे गुणो के मिलान 
करने के बजाय दोनों के स्वभाव,आयुष्मान,धन स्थिति,आरोग्य 
संतति व विवाह के बाद कि स्थिति,विवाह के लिए योग्य समय इन 
सब परिस्थितियों का विचार करना आवश्यक हे,ये सब बातें मिलने 
के बाद पंचांग में देखकर गुण मिलान करने कि कोई आवश्यकता 
नहीं रहती यह में अपने आज तक के अनुभव के आधार पर कह रहा 
हूँ,लेकिन पंचांग देखने के अतिरिक्त ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान न होने 
होने वाले विद्वान ? सिर्फ पंचांग में गुण देखकर कुंडली रख देते हें 
छाती ठोककर कहतें हें कि तीस गुण मिल रहे हें,बिनधास्त होकर 
विवाह करो बाद में विवाहित जोड़े का कुछ भी नुकसान हो उनको तो 
अपनी फीस मिल जाती हे

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