Advt

Saturday 17 May 2014

रेचक एवं पूरक क्रिया कोई भी व्यक्ति कर सकता है परंतु इसे फेफड़ों की क्षमता एवं सामर्थ से अधिक न किया जाए......


मन पर नियंत्रण न रहने से
                      रेचक एवं पूरक क्रिया कोई भी व्यक्ति कर सकता है परंतु इसे फेफड़ों की क्षमता एवं सामर्थ से अधिक न किया जाए, कुम्भक क्रिया हमेशा योग्य प्रशिक्षित व्यक्ति से ही सीखना चाहिए क्योंकि इससे मस्तिष्क में आक्सीजन की कमी होती है जो कि मस्तिष्क एवं शरीर के लिए नुकसानदायक हो सकती है फेफड़ों की क्षमता एवं व्यक्ति के स्वास्थ के आधार पर इसकी एक निश्चित समय तालिका बनाई जाती है उस के अनुसार प्राणायाम की चारों क्रियाओं के समय को घीरे धीरे बढ़ाया जाता है जिससे प्रति मिनिट स्वांस लेने की संख्या कम होती है। लगातार कई वर्षों तक अभ्यास करते रहने से मस्तिष्क धीरे धीरे त्वचा से आक्सीजन अवशोषित करने में अभ्यस्त होने लगता है तब मनुष्य समाधि के लिए पात्र बनता है या प्राण को मस्तिष्क में रोककर लम्बे समय तक बिना स्वांस लिए रह सकता है। प्राण की गति कम करने से मन की चंचलता भी कम होती है इससे एकाग्र होने या ध्यान करने में भी सहायता मिलती है।

           प्राणायाम कई प्रकार का होता है जिनमें निम्न प्रमुख हैं।



 1. साधारण या उज्जायी प्रणायाम

 2. विलोम प्राणायाम

 3. भ्रामरी प्राणायाम

 4. मूर्च्छा प्राणायाम

 5. प्लाविनी प्राणायाम

 6. आंगुलिक प्राणायाम

 7. भत्रिका प्राणायाम

 8. कपालभाति प्राणायाम

 9. शीतली प्राणायाम

10. शीतकारी प्राणायाम

11. अनुलोम प्राणायाम

12. प्रतिलोम प्राणायाम

13. सूर्यभेदन प्राणायाम

14. चंद्रभेदन प्राणायाम

15. नाड़ी शोधन प्राणायाम आदि।

                 उपरोक्त में मूर्च्छा प्राणायाम और प्लाविनी प्राणायाम अब प्रचलन में नहीं हैं।



                  हमारे शरीर में वायु और प्राण नर्वस् अर्थात नाड़ियों के माध्यम से गतिशील रहते हैं इन्हें हम शरीर की वायरिंग कह सकते हैं। हमारे शरीर में लाखों नाड़ियां होती है। धार्मिक ग्रथों के अनुसार शरीर में 101 मुख्य नाड़ियां होतीं हैं इनमें प्रत्येक नाड़ी में से 72 हजार नाड़ियां निकलकर संपूर्ण शरीर अर्थात पैर के तलवों से सिर के सर्वोच्च स्थान एवं शरीर के रोम रोम तक जातीं है। ये सभी नाड़ियां रीड़ की हड्डी के बीच में सुरक्षित रहकर यहां से शरीर के अलग अलग भागों में जातीं हैं। रीड़ की हड्डी में  ये नाड़ियां मस्तिष्क में उपर ब्रह्मरंध एवं नीचे कुंडलनी तक जातीं हैं, उपर ब्रह्मरंध एवं नीचे कुंडलनी तक तीन नाड़ियां ही पहुंचतीं हैं जिन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना कहते हैं। इड़ा का शरीर में अंतिम स्थान बायां नासारंध्र एवं पिगला का अतिम स्थान दायां नासारंध्र है, सिर का सर्वोच्च अर्थात ब्रह्मरंध्र सुषुम्ना का अंतिम स्थान है। इड़ा को चंद्र एवं पिंगला को सूर्य नाड़ी भी कहते हैं। इसमें इड़ा का कार्य शीतलन, पिंगला का कार्य ज्वलन एवं सुषुम्ना का कार्य सत्व है। इन नाड़ियों की कार्यप्रणाली में बाधा उतपन्न होने से कई बीमारियां जैसे लकवा, अंगों का शून्य होना, वात रोग, दर्द आदि उतपन्न होते हैं। नाड़ियों की कार्य प्रणाली को आसन के द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

                  हमारी रीड़ में 33 डिस्क होते हैं जिससे रीड़ में लचीलापन बना रहता है। इन डिस्क के बीच में सभी नाड़ियां सुरक्षित रहतीं हैं, यह डिस्क एक्सल पर लगी वियरिंग के समान कार्य करते हैं इनकी गति से नाड़ियों में कोई खिचाव या दबाव उतपन्न नहीं होता चूंकि वियरिंग तो सिर्फ आगे पीछे ही घूम सकती है परंतु डिस्क चार दिशाओं अर्थात उपर नीचे दायें वायें गति कर सकते हैं परंतु इनकी गति कुछ डिग्री तक ही सीमित रहती है। इसके बीच में आठ चक्र होते हैं जिन्हें विज्ञान की भाषा में ग्लेंडस् कहते हैं। ये ग्लेंडस् शरीर के लिए हार्मोन्स का उत्सर्जन करते हैं इनके सही काम न करने से मानसिक एवं शारीरिक विकृतियां उतपन्न होतीं है ।




    हमारा शरीर द्रव्य के पांच रूपों अर्थात ठोस, द्रव, वायु, उर्जा एवं तरंग रूप से बना हुआ है। इन पांच रूपों को नियंत्रित करने के लिए निम्न पांच अलग अलग साधन होते हैं।
1. तरंग रूप अर्थात मन को नियंत्रित करने के लिए - ध्यान।
            आत्मा भी हमारे शरीर में तरंग रूप है परंतु इसे नियंत्रित करने की कोई आवश्यकता नहीं होती न ही कोई इसे नियंत्रित कर सकता है। यह स्वतः नियंत्रित होती है, क्योंकि मन जैसी क्रिया करता है आत्मा उसी के अनुसार प्रतिक्रिया करती है।

2. उर्जा रूप अर्थात प्राण को नियंत्रित करने के लिए - प्राणायाम।

3. वायु रूप को नियंत्रित करने के लिए - आसन।

4. द्रव रूप को नियंत्रित करने के लिए - उपवास पंचकर्म आदि। इसे प्रशिक्षित आयुर्वेदिक डॉक्टर ही करवा सकते हैं।

5. ठोस रूप को नियंत्रित करने के लिए - व्यायाम।   पैदल चलना, तैरना, साइकिल चलाना सर्वोत्तम एवं सर्व सुलभ व्यायाम हैं।
यदि मनुष्य सिर्फ मन पर नियंत्रित रखना सीख ले तब भी वह पूर्ण स्वस्थ सुखी एवं दीर्धायु जीवन व्यतीत कर सकता है। मन पर नियंत्रण न रहने से बाकी चार रूपों पर नियंत्रण का प्रयास करने से कोई विशेष फायदा नहीं होगा।

No comments:

Post a Comment